सैन्य सेवा की अनिवार्यता पर विचार हो

By: Jul 16th, 2020 12:06 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं

वर्तमान में विश्व में इजराइल, तुर्की, ग्रीस, ताईवान, साइप्रस, उत्तर कोरिया, ईरान, क्यूबा, फिनलैंड व हंगरी जैसे देशों में कुछ शर्तों सहित अनिवार्य ‘मिलिट्री सेवा’ (कन्सक्रिप्सन) का प्रावधान है। लिहाजा रक्षा क्षेत्र में यदि दुनिया के ऐसे मुल्कों की मिसाल कायम करनी है तो देश के शासकों को युवाओं की सैन्य सेवा की अनिवार्यता पर विचार करना होगा। यह कदम सैन्य अधिकारियों की कमी से जूझ रही भारतीय सेना के लिए फायदेमंद साबित होगा। हमारे देश की सीमाएं कई ऐसे देशों से लगती हैं, जिनके साथ भारत के सीमा संबंधी व अन्य विवाद चल रहे हैं…

जब देश की सरहदें जंगी जुनून के नशे में मदहोश एटमी ताकत वाले दुश्मन देशों से सटी हों जहां एक तरफ एलओसी पर पाकिस्तान अपनी सेना के साथ मोर्चाबंदी करके आतंकियों का जमावड़ा बढ़ा रहा हो, वहीं दूसरी तरफ  भू-माफिया चीन की सुपर पावर बनने की सनक में एलएसी पर नापाक कदमों की आहट बढ़ रही हो तथा पड़ोस में कुछ मुल्क गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर हों तो लाजिमी है कि देश की युवाशक्ति को ऐसे दुश्मन देशों से निपटने में सेना की तरह प्रशिक्षित व सक्षम होना चाहिए। भारत की अपने हमसाया मुल्कों में चीन के साथ 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियत्रण रेखा, पाकिस्तान के साथ 3323 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा में 740 किलोमीटर एलओसी, बांग्लादेश के साथ 4096 किलोमीटर सीमा, नेपाल 1751, भुटान 699, म्यामांर 1640 तथा अफगानिस्तान के साथ 106 किलोमीटर लंबी सरहद की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे देश के सुरक्षा बलों के कंधों पर है।

इसी तरह 7516 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमाओं की निगरानी का दायित्व नौसेना तथा भारतीय कोस्टगार्ड संभाल रहे हैं। इसके अलावा देश की आंतरिक सुरक्षा में राष्ट्रीय राइफल, असम राइफल तथा केंद्रीय पुलिस बल के जवान तैनात हैं। भारतीय सेना के साबिक जनरल दीपक कपूर (2007-2010) ने सेनाध्यक्ष रहते देश में ‘आवश्यक मिलिट्री सेवा’ की जरूरत का सुझाव दिया था जो हमारे कई सियासी रहनुमाओं और अफसरशाही को नागवार गुजरा था। मगर सुरक्षा के  मौजूदा हालात ने इस मशवरे को दोबारा विचारणीय कर दिया है। देश में कुछ वर्षों से कुछ सेलिब्रिटीज को भारतीय सेना का ब्रांड एंबेसेडर बनाने की रिवायत भी चली आ रही है तथा कुछ दिनों पहले सेना की तरफ  से देश के युवाओं के लिए सेना में तीन वर्ष का ‘टूर ऑफ  डयूटी’ का सुझाव भी आया था। अब चूंकि एक आम युवा के सैन्य प्रशिक्षण पर कई लाख खर्च करने के साथ कडे़ परिश्रम के बाद एक प्रशिक्षित सैनिक रक्षा क्षेत्र के लिए तैयार होता है और भारतीय सैनिकों का प्रशिक्षण ‘स्वयं से पहले देश’ की संस्कृति में होता आया है। सेना कोई रोजगार का साधन नहीं है, बल्कि मसला सीधा देशरक्षा, समर्पण व सैन्य निष्ठा से जुड़ा है। देश में लोग अकसर भ्रमित रहते हैं कि एलओसी, एलएसी, अंतरराष्ट्रीय सीमा आखिर क्या है?

सामरिक विषयों की जानकारी के बिना कई बार लोग देश के रक्षा विशेषज्ञों पर तन्कीदगी के नश्तर बरसाते हैं। सैन्य आपरेशनों व कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं, मगर डिफेंस से संबंधित चीजों की हकीकत को जानने के लिए जमीनी स्तर पर रू-ब-रू होना पड़ता है। इसलिए देशहित में अच्छा होगा यदि तीन वर्ष के सैनिकों के बजाय सैन्य सेलेक्शन प्रक्रिया के पूरे मापदंडों के बाद सैन्य कार्यकाल को कम से कम 10 से 15 वर्ष तक जरूरी किया जाए। सरकारों को युवा वर्ग को शिक्षण संस्थानों से ही सैन्य प्रशिक्षण के विषय को तवज्जो देकर देश के सरकारी विभागों के शीर्ष पदों पर आसीन होने वाले अधिकारियों के लिए 10 वर्ष की सैन्य सेवा की अनिवार्यता पर भी विचार करना चाहिए ताकि उन्हें भी सैनिक बनने पर गर्व महसूस हो तथा शौर्य पराक्रम दिखाने का मौका भी मिले। बहरहाल हिमाचल सरकार ने राज्य में डिफेंस ट्रेनिंग अकादमी खोलने का ऐलान किया है। लेकिन शिक्षण संस्थानों में एनसीसी की तर्ज पर सैन्य प्रशिक्षण व सैन्य तालीम जरूरी करने से सेना में जाने वाले युवाओं को प्रशिक्षण की जद्दोजहद नहीं करनी पडे़गी। सैन्य प्रशिक्षण के लिए सरकारें लाखों सेवानिवृत्त सैनिकों के अनुभव का लाभ ले सकती हैं।

देश में युद्धों के इतिहास में हिमाचल सामारिक दृष्टि से अहम भूमिका निभाता आया है। वर्तमान में राज्य के लाखों सैनिक देश के सुरक्षा बलों में कई महाज पर मुस्तैद हैं। चीन के साथ चल रहे कसीदगी के मौजूदा दौर में 13 जून 2020 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी में पासआउट हुए 333 भारतीय सैन्य अधिकारियों में 14 ऑफिसर का संबंध हिमाचल से है। प्रदेश में कई पूर्व सैनिक प्रशासनिक पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। राज्य की मौजूदा विधानसभा में चार पूर्व सैनिक विधायक हैं। बल्कि राज्य के सैनिक कल्याण मंत्री खुद पूर्व सैनिक हैं। देश की राजनीति में दो पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल शंकर राय चौधरी व जनरल वीके सिंह तथा मेजर जनरल  बीएस खंडूरी, कर्नल राज्यवर्धन राठौर, कैप्टन अमरेंदर सिंह वे दमदार सैनिक चेहरे हैं जिन्होंने सरहदों से लेकर देश की संसद तक पहचान बनाकर लोकतंत्र में भी अपने हुनर का लोहा मनवाया है। हमारी सियासत को रक्षा क्षेत्र के अनुभवी अपने जरनैलों का रक्षा मंत्रालय में योगदान लेने के लिए भी दिलचस्पी दिखानी चाहिए। देश में कई आतंकी घटनाओं या सरहदों पर कई खूनी वारदातें होने पर देश में कई बुद्धिजीवी वर्ग के लोग अखबारों व टीवी डिबेट में इन घटनाओं से निपटने में इजराइल जैसे देशों का उदाहरण देते हैं, मगर गौर रहे चारों तरफ  से दुश्मन देशों से घिरे इजराइल में पुरुषों के अलावा महिलाओं के लिए भी दो वर्ष की सैन्य सेवा जरूरी है। इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू खुद उनकी सेना के पूर्व कमांडो रह चुके हैं तथा उनका बेटा भी उनकी सेना में सेवाएं दे रहा है। ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसेनारो भी उनकी सेना की ‘स्पेशल फोर्स’ के पूर्व सैनिक रह चुके हैं। वर्तमान में विश्व में इजराइल, तुर्की, ग्रीस, ताईवान, साइप्रस, उत्तर कोरिया, ईरान, क्यूबा, फिनलैंड व हंगरी जैसे देशों में कुछ शर्तों सहित अनिवार्य ‘मिलिट्री सेवा’ (कन्सक्रिप्सन) का प्रावधान है। लिहाजा रक्षा क्षेत्र में यदि दुनिया के ऐसे मुल्कों की मिसाल कायम करनी है तो देश के शासकों को युवाओं की सैन्य सेवा की अनिवार्यता पर विचार करना होगा। यह कदम सैन्य अधिकारियों की कमी से जूझ रही भारतीय सेना के लिए फायदेमंद साबित होगा।


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