शिक्षकों का अधर में लटकता भविष्य: प्रवीण कुमार शर्मा, सतत विकास चिंतक

By: Jul 14th, 2020 12:06 am

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प्रवीण कुमार शर्मा

सतत विकास चिंतक

इसके आधार पर हिमाचल में अब बीएड पास युवा भी प्राथमिक  शिक्षक पद पर अपना अधिकार जताने लग पड़ा है और यही कारण है कि मामला अब अदालत की शरण में है। बिहार में भी यही स्थिति सामने  आई थी, पर बिहार सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि प्राथमिक शिक्षक के पदों पर समुचित प्रशिक्षण प्राप्त प्रशिक्षु का ही प्रथम अधिकार है। परंतु  हिमाचल में सरकार के ढुलमुल रवैये से दोनों पक्ष अधर में लटके हुए हैं…

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका के प्रति उत्तर में सरकार द्वारा शिक्षा विभाग में प्राथमिक शिक्षकों की कुल 1844  रिक्तियों की स्वीकारोक्ति के पश्चात प्रदेश में जेबीटी या समकक्ष परीक्षा पास कर चुके 42000 से अधिक युवाओं की आशाओं पर तुषारापात होना स्वाभाविक है। प्रदेश सरकार यदि प्रति वर्ष 2000 अतिरिक्त पद भी  सृजित  करती है तो भी अगले 20 वर्षों में इन सभी  युवाओं का सरकारी सेवा में  समायोजन संभव  नहीं है। पिछले दस वर्षों में प्राथमिक शिक्षकों की  कुल  2250 नियुक्तियों की पृष्ठभूमि में इन युवाओं को सरकारी क्षेत्र में रोजगार केवल और  केवल भागीरथी प्रयास से ही संभव है। यह महत्त्वपूर्ण है कि इन युवाओं को रोजगार से  कैसे जोड़ा जाए। परंतु उससे भी अधिक विचारणीय पहलू यह है कि किसकी लापरवाही ने प्रदेश में प्रशिक्षित प्राथमिक शिक्षकों की एक  फौज खड़ी कर दी है और वह भी तब जब सरकार के पास इन प्रशिक्षुओं को रोजगार देने की कोई ठोस कार्ययोजना ही नहीं थी।  सरकार की गलत नीतियों का ही परिणाम है कि इन युवाओं को अपना हक प्राप्त करने के लिए उच्च न्यायालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। जेबीटी पास करते ही सरकारी सेवा में नियुक्ति पा जाने वाले इस वर्ग में बेरोजगारी की यह स्थिति क्यों आई, यह जानने के लिए थोड़ा पीछे जाने की आवश्यकता है।

वर्ष 2000 के पश्चात प्रदेश में निजी स्कूलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। निजी शिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता को देखते हुए प्रदेश सरकार ने पहले 2003, तत्पश्चात 2008 में प्रदेश के कुछ निजी शिक्षण संस्थानों को जेबीटी का कोर्स करवाने की अनुमति प्रदान कर दी। शिक्षा विभाग व निजी शिक्षण संस्थानों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु वर्ष 2008 में  डाइट और  निजी शिक्षण  संस्थानों में जेबीटी कोर्स  शुरू किया गया। इस दौरान केंद्र सरकार ने  23 अगस्त 2010 को एक अधिसूचना जारी करके सभी  शिक्षकों के लिए अध्यापक पात्रता परीक्षा की अनिवार्यता कर दी। साथ में निजी स्कूलों में भी अध्यापकों के लिए न्यूनतम योग्यता के साथ-साथ टेट पास करने की शर्त जोड़ दी। यह संभव नहीं है कि जेबीटी पास सभी युवा टेट की परीक्षा भी पास कर लेते, इसलिए जरूरतों की पूर्ति हेतु अगले वर्ष भी सभी संस्थानों को जेबीटी कोर्स करवाने की अनुमति दे दी गई। सरकारी क्षेत्र में जेबीटी का कोर्स 12 जिलों में स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से करवाया जाता है। सभी डाइट संस्थानों की कुल क्षमता  1800 विद्यार्थी है जिन्हें मुफ्त  प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए सरकार प्रति वर्ष प्रति विद्यार्थी  एक लाख रुपए से अधिक खर्च करती है। वर्ष 2008 में 11  निजी शिक्षण संस्थानों को भी 700 छात्रों को जेबीटी का कोर्स करवाने की अनुमति दे दी गई थी। सरकारी क्षेत्र में तत्काल नौकरी की संभावनाओं के कारण निजी शिक्षण संस्थानों के लिए यह कोर्स सोने की खान साबित हुआ, जिसका असर यह हुआ कि प्रदेश की आवश्यकताएं पूर्ण होने के बावजूद निजी शिक्षण संस्थानों की संख्या वर्ष 2011 तक बढ़कर 29 हो गई। समय रहते यदि  इन कोर्सों को बंद कर दिया जाता तो प्रदेश में इस वर्ग में कभी बेरोजगारी नहीं होती, परंतु  शिक्षा माफिया के दबाव में अब हर वर्ष  इस कोर्स को शुरू करने की अनुमति दी जाने लगी। परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 3250 छात्र जेबीटी पास करने लगे। वर्ष 2020 आते-आते प्रदेश के शिक्षण संस्थानों से पास हुए  युवाओं की संख्या 32500 पहुंच गई। इसके अतिरिक्ति दूसरे   प्रदेशों से समकक्ष परीक्षा  पास करके आए हुए छात्रों के कारण  प्राथमिक शिक्षण के लिए पात्र  युवाओं की यह संख्या 42000 से अधिक पहुंच चुकी है। गत दस वर्षों में इस वर्ग में सरकारी क्षेत्र में वर्ष 2012 व 2017 में क्रमशः 700 व 1100 पद टेट मैरिट के आधार पर भरे गए। वर्ष 2018 में 844 पद विज्ञापित हुए, जिसमें 50 फीसदी बैच के अनुसार और 50 फीसदी  कमीशन के आधार पर भरे जाने थे। बैच के अनुसार पद भरे जा चुके हैं, परंतु कमीशन के आधार पर भरे जाने वाले पदों की परीक्षा का  परिणाम न्यायालय के स्थगनादेश के कारण अभी तक नहीं  निकाला गया है। फरवरी 2020 में 1225 पद और विज्ञापित हुए हैं, परंतु सरकार की स्पष्ट नीति न होने के कारण इन नियुक्तियों का भी न्यायालय में लटकना लगभग तय है।   उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों के एक लाख पद खाली चल रहे थे। लगभग यही स्थिति कुछ अन्य राज्यों की भी थी। इसके चलते वर्ष 2018 में  एनसीटीई ने इन प्रदेशों में प्राथमिक शिक्षकों के पद बीएड पास प्रशिक्षुओं के माध्यम से भरने की अनुमति दे दी। इसके आधार पर हिमाचल में अब बीएड पास युवा भी प्राथमिक  शिक्षक पद पर अपना अधिकार जताने लग पड़ा है और यही कारण है कि मामला अब अदालत की शरण में है। बिहार में भी यही स्थिति सामने  आई थी, पर बिहार सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि प्राथमिक शिक्षक के पदों पर समुचित प्रशिक्षण प्राप्त प्रशिक्षु का ही प्रथम अधिकार है। परंतु हिमाचल में सरकार के ढुलमुल रवैये से दोनों पक्ष अधर में लटके हुए हैं। विद्यार्थियों को शोषण से बचाना सरकार का प्रथम कर्त्तव्य है। लाखों रुपए खर्च करने के पश्चात भी सरकारी और निजी क्षेत्र में  नौकरियों की संभावनाएं यदि न के बराबर  हैं तो अगले कुछ समय तक जेबीटी कोर्स को बंद किया जाना चाहिए। हिमाचल के संदर्भ में एनसीटीई से बात करके पात्रता संबंधी नियम स्पष्ट किए जाएं।


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