सृजन को कोरोना डरा सकता है मगर पराजित नहीं कर सकता…
डा. गंगाराम राजी, मो. 94180-01224
सृजन को कोरोना डरा सकता है, मगर पराजित नहीं कर सकता। साहित्यकारों के लेखन रुझान से यह बात तो स्पष्ट हो ही गई कि जिनकी नियति लेखन है, वे अनवरत कुछ न कुछ रचते रहेंगे। विख्यात साहित्यकार, कहानीकार गंगा राम राजी ऐसे ही शब्द शिल्पी हैं, जोे निडर होकर लेखन धर्म निभा रहे हैं। कोरोना काल में लिखी उनकी कहानी ‘नो ममा… नो’ एक पारिवारिक ड्रामा है। इसमें बच्चों की मस्ती है, मां-बाप का प्यार-दुलार और स्नेह भरी फटकार सब शामिल है। हां इसमें दादा और पोते का संवाद पूरी तरह छाया रहता है। गंगा राम राजी के विषय सदैव हमारे गिर्द घूमती जिंदगी के किरदारों में समाहित रहते हैं।
कोरोना काल के दौरान ढेरों दुश्वारियों में से गुजर रही दुनिया भर के बच्चों की मनो व्यथा कहती यह कहानी कहीं न कहीं साहित्यकार की आपबीती से भी मेल खाती होगी। लगातार महीनों से घरों में कैद बच्चों की मस्तियां और उनका संसार मानो कैदखानों में बंद हैं। ऐसे में इस दौरान लिखी गई कहानी ‘नो ममा… नो’ बहुत कुछ कहती है, प्रस्तुत हैं कहानी के कुछ अंश।
दादू राम के दो पोते एक कणव और दूसरा अनीश। दोनों बहुत प्यारे किसी को भी मोह लेने की कला उनमें न जाने कहां से आई है। आदमी एक बार उनके संपर्क में आया नहीं तो भूलता नहीं। दे दे प्यार दे की शूट में मनाली हम लोग गए हुए थे। अजय देवगण पर उनकी नजर पड़ी तो भाग कर पहुंच गए उनके पास।
‘‘ अंकल आप फिल्मों के हीरो हैं न ?’’ कणव ने पूछा। पहले तो अजय देवगण चुप हो गए। सोचने लगे कि आज तक तो किसी ने उनसे यह पूछा ही नहीं था। उन दोनों की ओर बड़े ध्यान से देखने लगे। अजय को दोनों ही हीरो लगने लगे, तुरन्त ही उत्तर देना पड़ा, ‘‘ हां … ’’ ‘‘ मैं आपका फैन हूं …. ’’ कणव आगे बोला। बड़े वाला पोता, उम्र सात वर्ष, बड़े स्टाइल से बोला। ‘‘ मैं भी तो … ’’ छोटे वाला भी वहीं था, उसने भी अपनी बात की पुष्टि की। वह कणव से दो साल छोटा है, वह थोड़े ही पीछे रहने वाला था।
अजय को अब उनमें कुछ दिलचस्पी होने लगी तो पूछा,
‘‘ अच्छा बताओ अगर मेरे फैन हो तो मेरी कौन सी फिल्में देखी हैं ?’’
बस एक बार पूछने की देर थी, दोनों ने बारी बारी उनकी कई फिल्मों के नाम ले लिए जिन्हें वे भी शायद भूल गए होंगे। बारी बारी दोनों फिल्मों के नाम ही नहीं लेने लगे उनमें उनकी एक्टिंग की भी बात करके तारीफ करने लगे। ‘‘ अंकल आपका फोटो दादू के साथ हमारे घर पर भी है … ’’ जब दादू का नाम लिया होगा तब जाकर उन्हें बच्चों के बारे में मालूम हुआ कि किस के बच्चे हैं।
अजय ने दोनों को बारी-बारी गोदी में अपने पास बाजु में भर लिया था और दोनों के साथ फोटो भी खिंचवाए। दिनचर्या यूं ही चलती रहती है। फिर एक दृश्य बदलता है। ‘‘बच्चे एक-दूसरे की शिकायत करते हैं। ममा यह मान ही नहीं रहा है और दादू को तंग कर रहा है, यह लो जरा ठीक कर दो न इसको ….. एक चौका लग जाए …. ’’
छोटे की हरकत देख मै अपनी हंसी रोक नहीं सका। ‘‘ आप दोनों इसी समय बुक्स निकालो और पढ़ने बैठ जाओ ….. ’’ उनकी ममी का आर्डर पास हुआ। ‘‘ ममी इसने मेरी सारी कापी फाड़ …. ’’
अभी नई कापी लाई थी, ममी ने देखते ही उसे कान से पकड़ लिया,
‘‘ अरे तेरे को मालूम है कि यह कापी कितने की है …… फेयर,स्कूल की ही कापी फाड़ डाली …. ’’
तभी कणव उसी बैट को ले आया और ममी को उसके लिए मारने के लिए देने लगा … बैट देखते ही बड़ा चुप हो गया, अपने आप ही कान पकड़ लिए और दूसरे कमरे में भाग गया। बात आई गई हो गई। अभी ममी किचन में शाम की सब्जी काटने लगी ही थी, बड़े ने चुपके से फ्रिज में से कोक की बोतल निकाली और पीने बैठ गया। छोटा अकेला था, उसका मन नहीं लग रहा था, बड़े को ढूंढते हुए जब उसके पास पहुंचा तो उसने देखा कि यह तो कोक पी रहा है। सुबह कणव जब उठता है तो उसे प्यास का आभास होता है, इधर-उधर देखता है तो न तो दादी दिखाई देती है न दादू। पास ही अनीश सोया हुआ होता है, उसका बैट साथ रखा है। पानी का जग देखता है तो उसमें पानी नहीं है …. वह दादी दादू ममा पापा सब को आवाज लगाता है परन्तु कोई उसकी आवाज नहीं सुन पाते, शायद सब बाथ रूम में होंगे।
वह किचन में जाता है। किचन की शैल्फ में शीशे के जग में पानी देख वह उसे पकड़ना चाहता है परन्तु वहां पर पहुंच नही पाता तो नीचे फर्श पर एक डोंगा रख कर उस पर पांव रख कर वह जग को पकड़ लेता है, उसे जब खींचने लगता है तो डोंगा खिसक जाता है और जग नीचे गिर कर कई टुकड़ों में बिखर जाता है।
जग के टूटने की आवाज सारे घर में गूंज जाती है। सब कमरों से आवाज आती है, ‘‘ क्या हुआ …. क्या हुआ ….. ’ कणव डर जाता है। अनीश भी उठ जाता है, दादी भी किचन में आ जाती है …. ममी .. पापा …. दादू सब किचन में पहुंच जाते हैं ….. ममी कणव को बुरी तरह से डांट रही होती है,‘‘..तूने पानी पीना था तो बोला क्यों नहीं …कितना महंगा जग तोड़ दिया, अभी एक महीना ही लाए हुए हुआ था ….. ’’ अनीश जो अपने साथ अपना बैट लाया था,दूर खड़ा यह दृश्य देखता है तो चुपके से बैट को भाग कर बैड के नीचे छिपा देता है और फिर से किचन में आ जाता है। दादू दादी एक ओर खड़े होकर चुप सब देख रहे होते हैं …. वे बहू के सामने कुछ नहीं बोल रहे होते हैं ….. गुस्से में कणव को जब ममी मारने लगती है तो अनीश उसके साथ चिपट जाता है ….. नो ममी …. नो ….
दादू दादी ने कणव और अनीश को अपनी बाहों में भर लिया, दादू गूस्से से बोलता है …… नो नो, कणव की ममी नो ..। इस तरह कोरोना काल में लिखी यह कहानी जीवन की कई पहेलियों और उनके ढूंढने का हल भी बनती हैं। गंगा राम राजी की यही खूबी है कि वे पाठक के जेहन में आसान पहुंच बना पाते हैं।
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