सुख और आनंद

By: Jul 25th, 2020 12:20 am

ओशो

आनंद तो यूं ही मिलता है, मुफ्त मिलता है, क्योंकि आनंद स्वभाव है। दुख अर्जित करना पड़ता है और दुख अर्जित करने का पहला नियम क्या है? सुख मांगो और दुख मिलेगा। सफलता मांगो, विफलता मिलेगी। सम्मान मांगो, अपमान मिलेगा। तुम जो चाहोगे उससे विपरीत घटित होगा। क्योंकि यह संसार तुम्हारी चाह के अनुसार नहीं चलता। यह चलता है उस परमात्मा की मर्जी से। अपनी मर्जी को हटाओ, उसकी मर्जी पूरी होने दो।

फिर दुख भी अगर हो, तो दुख मालूम नहीं होगा। जिसने सब कुछ उस पर छोड़ दिया, अगर दुख भी हो तो वह समझेगा कि जरूर उसके इरादे नेक होंगे। अगर वह कांटा चुभाता है, तो जगाने के लिए चुभाता होगा और अगर रास्तों पर पत्थर डाल रखे हैं उसने तो सीढि़यां बनाने के लिए डाल रखे होंगे और अगर मुझे बेचैनी देता है, परेशानी देता है तो जरूर मेरे भीतर कोई सोई हुई अभीप्सा को प्रज्वलित कर रहा होगा, मेरे भीतर कोई आग जलाने की चेष्टा कर रहा होगा। जिसने सब परमात्मा पर छोड़ा उसके लिए दुख भी सुख हो जाते हैं और जिसने सब अपने हाथ में रखा, उसके लिए सुख भी दुख हो जाते हैं। जिसे तुम जीवन समझ रहे हो, वह जीवन नहीं है, टुकड़े-टुकड़े मौत है। जन्म के बाद तुमने मरने के सिवाय और किया ही क्या है?

रोज-रोज मर रहे हो और जिम्मेदार कौन है? अस्तित्व ने जीवन दिया है, मृत्यु हमारा आविष्कार है। अस्तित्व ने आनंद दिया है, दुख हमारी खोज है। प्रत्येक बच्चा आनंद लेकर पैदा होता है और बहुत कम बूढ़े हैं जो आनंद लेकर विदा होते हैं। जो विदा होते हैं उन्हीं को हम बुद्ध कहते हैं। सभी यहां आनंद लेकर जन्मते हैं, आश्चर्यविमुग्ध आंखें लेकर जन्मते हैं, आह्लाद से भरा हुआ हृदय लेकर जन्मते हैं। हर बच्चे की आंख में झांक कर देखो, नहीं दिखती तुम्हें निर्मल गहराई और हर बच्चे के चेहरे पर देखो, नहीं दिखता तुम्हें आनंद का आलोक और फिर क्या हो जाता है? फूल की तरह जो जन्मते हैं, वे कांटे क्यों हो जाते हैं? जरूर कहीं हमारे जीवन की पूरी शिक्षण की व्यवस्था भ्रांत है। हमारा पूरा संस्कार गलत है। हमारा पूरा समाज रुग्ण है। हमें गलत सिखाया जा रहा है। हमें सुख पाने के लिए दौड़ सिखाई जा रही है। दौड़ो! ज्यादा धन होगा, तो ज्यादा सुख होगा। ज्यादा बड़ा पद होगा तो ज्यादा सुख होगा। गलत हैं ये बातें। न धन से सुख होता है, न पद से सुख होता है और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि धन छोड़ दो या पद छोड़ दो। मैं इतना ही कह रहा हूं, इनसे सुख का कोई नाता नहीं।

सुख तो होता है भीतर डुबकी मारने से। हां, अगर भीतर डुबकी मारे हुए आदमी के हाथ में धन हो, तो धन भी सुख देता है। अगर भीतर डुबकी मारे हुए आदमी के हाथ में दुख हो, तो दुख भी सुख बन जाता है। जिसने भीतर डुबकी मारी, उसके हाथ में जादू की छड़ी आ गई। वह शोरगुल में ऐसे रहता है जैसे संगीत में। वह जल में चलता है, लेकिन जल में उसके पैर नहीं भीगते। यह मैं नहीं कह सकता कि ये दुख अगर मिल रहे हैं तो पिछले जन्मों के हैं। पिछले जन्मों के दुख पिछले जन्मों में मिल गए होंगे। परमात्मा उधारी में भरोसा नहीं करता। अभी आग में हाथ डालोगे, अभी जलेगा, अगले जन्म में नहीं और अभी किसी को दुख दोगे, तो अभी दुख पाओगे, अगले जन्म में नहीं। पहले तो मेरी बात सुन कर चोट लगेगी, क्योंकि सांत्वना नहीं मिलेगी। लेकिन अगर मेरी बात समझे तो छुटकारे का उपाय भी है।  बाहर से कभी सुख नहीं मिलता। सुख की सारी आकांक्षा को ध्यान की आकांक्षा में रूपांतरित करो। सुख नहीं चाहिए, आनंद चाहिए और आनंद भीतर है। तो भीतर जितना समय मिल जाए डुबकी मारो।


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