बढ़ता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

By: Aug 3rd, 2020 12:08 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

इसी तरह सोने के आयात में लगातार कमी से भी विदेशी मुद्रा के व्यय में कमी आई है। देश के आयात बिल में सोने के आयात का प्रमुख स्थान है। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सोने का आयात घटने से विदेशी मुद्रा की बड़ी बचत हुई है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि पिछले वर्ष 2019-20 में देश के व्यापार घाटे में भी कमी आई है। इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार को लाभ हुआ है। खासतौर से चीन से आयात कम हुए हैं और चीन के साथ व्यापार घाटे में कमी आने से भी विदेशी मुद्रा भंडार लाभान्वित हुआ है। देश में लॉकडाउन के कारण विभिन्न वस्तुओं की मांग में गिरावट के चलते आयात भी काफी कम हुआ है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार से कम व्यय करना पड़ा है। खास बात यह भी है कि कोविड-19 के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हुई है। भारतीय शेयर बाजार का रुख प्रतिकूल नहीं हुआ। भारत उभरते शेयर बाजारों में अच्छी स्थिति में बना रहा है…

इस समय कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता जा रहा है। रिजर्व बैंक के द्वारा प्रस्तुत नवीनतम आंकड़ों के अनुसार देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जुलाई को 516 अरब डॉलर से अधिक के ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। नि:संदेह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का अहम योगदान होता है। जब वर्ष 1991 में श्री चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे, तब हमारे देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। हमारी अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी। उस समय के गंभीर हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.1 अरब डॉलर ही रह गया था। इतनी कम रकम करीब दो-तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पूरी नहीं थी। ऐसे में हमारे देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ने 47 टन सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख कर कर्ज लिया था।

फिर देश के द्वारा वर्ष 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाई गई, जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण को बढ़ाना रहा। इस नई नीति के पश्चात धीरे-धीरे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधरने लगी। वर्ष 1994 से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा । 2002 के बाद इसने तेज गति पकड़ी। वर्ष 2004 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार पहुंचा। फिर इसमें लगातार वृद्धि होती गई और 5 जून 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार ने 501 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर को प्राप्त किया। इसके बाद जुलाई 2020 में विदेशी मुद्रा भंडार में और अधिक वृद्धि का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां हैं जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सकता है।

किसी भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में सामान्यतः चार तत्त्व शामिल होते हैं : विदेशी परिसंपत्तियां, विदेशी कंपनियों के शेयर, डिबेंचर, बॉण्ड इत्यादि विदेशी मुद्रा के रूप में, स्वर्ण भंडार, आईएमएफ के पास रिजर्व ट्रेंच तथा विशेष आहरण अधिकार। विदेशी मुद्रा भंडार को फॉरेक्स रिजर्व भी कहा जाता है। विदेशी मुद्रा भंडार को आमतौर पर किसी देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना काल में वैश्विक अर्थव्यवस्था की तरह देश की अर्थव्यवस्था में भी गिरावट का परिदृश्य दिखाई दे रहा है, लेकिन विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति विश्वास बना रहा और विदेशी निवेश संतोषजनक गति से बढ़ा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 22 जुलाई को अमरीका-भारत बिजनेस काउंसिल की इंडिया आइडियाज समिट में कहा कि कोविड-19 के बीच भारत के वैश्विक सहयोग की भूमिका से दुनिया का भारत में विश्वास बढ़ा है और लॉकलाडन के बीच अप्रैल से जून 2020 के तीन माह की अवधि में देश को बीस अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ है। देश को पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में करीब 74 अरब डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था, जो वित्त वर्ष 2018-19 में प्राप्त विदेशी निवेश से करीब 20 फीसदी अधिक था। उल्लेखनीय है कि इस समय हमारे देश के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने की कई और वजह भी हैं।

चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरतों का 80 से 85 प्रतिशत आयात करता है और इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में कमी विदेशी मुद्रा भंडार के लिए लाभप्रद रही है। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान कच्चे तेल के आयात पर भारत की विदेशी मुद्रा के व्यय में कमी आई। देश में कोविड-19 के कारण मार्च 2020 से लागू लॉकडाउन की वजह से जून 2020 तक पेट्रोल-डीजल की डिमांड कम हो गई थी। इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट ने भी विदेशी मुद्रा भंडार के व्यय में कमी की है। कच्चे तेल की सस्ती और कम खरीददारी की वजह से सरकार को कम विदेशी मुद्रा का भुगतान करना पड़ा है।

इसी तरह सोने के आयात में लगातार कमी से भी विदेशी मुद्रा के व्यय में कमी आई है। देश के आयात बिल में सोने के आयात का प्रमुख स्थान है। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सोने का आयात घटने से विदेशी मुद्रा की बड़ी बचत हुई है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि पिछले वर्ष 2019-20 में देश के व्यापार घाटे में भी कमी आई है। इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार को लाभ हुआ है। खासतौर से चीन से आयात कम हुए हैं और चीन के साथ व्यापार घाटे में कमी आने से भी विदेशी मुद्रा भंडार लाभान्वित हुआ है। देश में लॉकडाउन के कारण विभिन्न वस्तुओं की मांग में गिरावट के चलते आयात भी काफी कम हुआ है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार से कम व्यय करना पड़ा है। खास बात यह भी है कि कोविड-19 के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हुई है। भारतीय शेयर बाजार का रुख प्रतिकूल नहीं हुआ।

भारत उभरते शेयर बाजारों में अच्छी स्थिति में बना रहा है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी भारतीय शेयर बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ाया है। निश्चित रूप से कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचने से भारत के लिए कई लाभ चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के वर्तमान स्तर से देश के द्वारा एक साल से भी अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है। कोविड-19 के बीच विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए देश का विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से वैश्विक निवेशकों का विश्वास बढ़ा है और वे भारत में अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं। कोविड-19 की अकल्पनीय आपदा से बेहतर ढंग से निपटने में विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभावी भूमिका हो सकती है।

चीन से बढ़ते हुए सैन्य तनाव के मद्देनजर भारत सरकार जरूरी सैन्य हथियारों की तत्काल खरीदी का कोई भी निर्णय शीघ्रतापूर्वक ले सकती है। हम उम्मीद करें कि जुलाई 2020 से अर्थव्यवस्था में जिस तरह सुधार का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है, उससे विदेशी निवेश बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेंगे, आयात घटेंगे और विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर और बढ़ते हुए दिखाई देगा। कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनुकूल समय का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। विकास कार्यों के लिए सरकार जरूरी आबंटन कर पाएगी तथा विकास की धीमी गति में तेजी आएगी। कोरोना वायरस के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में जो मंदी आई है, उससे निटपने में सरकार को मदद मिल पाएगी। आशा की जानी चाहिए कि भारतीय आर्थिकी में मंदी जल्द ही खत्म होगी।


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