वाजपेयी को दूसरी पुण्यतिथि पर प्रदेश का नमन: गणेश दत्त, वरिष्ठ भाजपा नेता

By: गणेश दत्त, वरिष्ठ भाजपा नेता Aug 17th, 2020 12:07 am

गणेश दत्त

वरिष्ठ भाजपा नेता

देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वह जीवन भर प्रयास करते हैं। वह कहते थे ‘गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी है और विवशता का नाम संतोष कभी नहीं हो सकता।’ करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हरसंभव प्रयास किए। सब को अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्व स्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण तथा प्राणियों को जोड़ना आदि उनके संकल्पों से जुड़ा था…

हमें नहीं लगता कि अटल जी अब नहीं रहे। 16 अगस्त को उनकी दूसरी पुण्यतिथि आ गई, लेकिन मन नहीं मानता। अटल जी हमें आंखों के सामने दिखते हैं, वह स्थिर हैं। अटल जी की स्थिरता हमें झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है, लेकिन कह नहीं पा रहे हैं। हम खुद को बार-बार यकीन दिला रहे हैं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन यह विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहे हैं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं! नहीं! हम उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहे हैं, कैसे कहें, कैसे मान लें, वह अब नहीं हैं।

वह पंचतत्त्व हैं। वह आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वह अटल हैं, वह अब भी हैं। वह खुद ही कहते हैं कि ‘मौत से ठन गई, जूझने का मेरा कोई इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, मैं जी भर जिया! मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं।’ जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है, जैसे कल की ही बात हो। इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान। लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है। जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वह मेरे सामने थे। जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, मेरे पाने के लिए बस इतना ही बहुत है। बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही। मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब खामोश हो गई है। उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था, बाकी सबका कोई महत्त्व नहीं।

इंडिया फर्स्ट-भारत प्रथम, यह मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था। पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था। जब विदेशों से सुपर कम्प्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य को भी संभव कर दिखाएंगे। …और ऐसा किया भी। दुनिया को चकित कर दिया। सिर्फ  एक ताकत उनके भीतर काम करती थी ‘देश प्रथम’ की जिद। काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए, क्योंकि वह सीना ‘देश प्रथम’ के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी।

सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गई तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगनभेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे और ऐसा अनेकों बार हुआ। अटल जी कभी लीक पर नहीं चले। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय भी किए। ‘आंधियों में भी दीये जलाने’ की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से, वह जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल थी। राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान-सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले। देशवासियों ने उन्हें ‘भारत रत्न’ देकर अपना मान भी बढ़ाया तथा कृतज्ञता व्यक्त की, लेकिन वह किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से बहुत ऊपर थे। जीवन कैसे जीया जाए, राष्ट्र के काम कैसे आया जाए, यह उन्होंने अपने जीवन से दूसरों को सिखाया। वह कहते थे, ‘हम केवल अपने लिए न जीएं, औरों के लिए भी जीएं, हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता।

 किंतु हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं, तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी।’ देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वह जीवनभर प्रयास करते हैं। वह कहते थे ‘गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी है और विवशता का नाम संतोष कभी नहीं हो सकता।’ करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हरसंभव प्रयास किए। सबको अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्व स्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण तथा प्राणियों को जोड़ना आदि उनके संकल्पों से जुड़ा था। आज भारत जिस टैक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है, उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी। अपने पुरुषार्थ को, अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना उनके व्यक्तित्व की महानता है। यही देशवासियों के लिए उनका सबसे बड़ा और प्रखर संदेश है। देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए, हमें अब अटल जी के सपनों को पूरा करना है, उनके सपनों का ‘नया भारत’ बनाना है।


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