भारत की आजादी और विकास: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार Aug 21st, 2020 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

विश्व में भारत का पहली बार नोटिस उस समय लिया गया जब अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में परमाणु विस्फोट किया गया। राजस्थान के पोखरण में हुए इस परीक्षण के बाद विश्व की नजर भारत की ओर गई। जिस दिन यह परीक्षण किया गया, उस दिन मैं ब्रूसेल्स में था तथा मैंने वहां के हर अखबार में इस विषय पर समाचारों की भरमार देखी। मेरे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि मुझ में आत्म-सम्मान भर गया तथा जब विदेशी लोगों से मेरा सामना हुआ तो उन्होंने कहा कि क्या तुम उस भारत देश से हो जहां पर परमाणु परीक्षण किया गया है? मुझे यह एहसास हुआ कि हमने विश्व को दिखा दिया कि हम स्वतंत्र हैं तथा हम जो चाहते हैं, उसे कर भी सकते हैं। बेशक हमने अपने शांतिपूर्ण उद्देश्य उद्घोषित किए तथा यह हमारी क्षमता का मात्र एक सूचक था। अब हम विश्व में सिर उठा कर जी सकते हैं…

हाल में हमने अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाया। 15 अगस्त 1947 को अंगे्रजों ने भारत, जिसे मध्यकाल में सोने की चिडि़या कहा जाता था, को भिखारी बनाकर छोड़ दिया था। तब से लेकर देश का राजनीतिक वर्ग उस फसल को काटता रहा है, जिसे उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के दिनों में बोया था। इस बीच भ्रष्टाचार का एक अनियंत्रित युग भी चला। वे सभी जो मितव्ययिता में जीए तथा जिन्होंने लेने के बजाय और देश को लूटने के बजाय देने के मंत्र पर कार्य किया, समृद्ध हुए हैं। हमें आजादी को देश का निर्माण करने के लिए सही आर्थिक व उत्पादक दृष्टिकोण चुनने के लिए प्रयोग करना चाहिए था, किंतु हम विफल हुए। हालांकि समाजवाद तथा भारी उद्योग ने आधारभूत संरचनात्मक ढांचा खड़ा करने में मदद की, फिर भी देश मात्र ‘राशन’ पर जी रहा है। हमारे पास कारों के नाम पर ‘टिन बॉक्स’ थे तथा राष्ट्र का निर्माण करने से संबंधित हर चीज हम आयात कर रहे थे। वर्ष 1947 में आर्थिक विकास की दृष्टि से चीन, भारत से पीछे था, लेकिन उसने बेहतर नजरिया अपनाया और आज वह विश्व में शिखर के राष्ट्रों में पहुंच गया है। यह केवल पिछले दशक में हुआ कि हमने बदलाव किया तथा अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया। आर्थिक विकास की दृष्टि से अब हम विश्व के पांच प्रथम देशों में शामिल हैं। मुझे याद है जब कुछ वर्षों पहले मैं शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक सहयोग के तहत संयुक्त राष्ट्र के लिए कार्य कर रहा था, तो मैंने भारत को विश्व के किसी भी शिखर पर नहीं पाया। विकसित देश उस समय भारत की बात नहीं करते थे तथा कहते थे कि ओह, आप भारत से हैं? उन्होंने मुझसे सांपों और चीतों के बारे में पूछा।

बेशक उन्होंने हमारे अपने ही फोटोग्राफर्स द्वारा तैयार की गई भूखे लोगों अथवा भिखारियों की तस्वीरों को देखा था। उन्होंने भारतीय महिलाओं को साड़ी में देखा था तथा वे हमारी कारों को ‘टिन बॉक्स’ कहते थे। विश्व में भारत का पहली बार नोटिस उस समय लिया गया जब अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में परमाणु विस्फोट किया गया। राजस्थान के पोखरण में हुए इस परीक्षण के बाद विश्व की नजर भारत की ओर गई। जिस दिन यह परीक्षण किया गया, उस दिन मैं ब्रूसेल्स में था तथा मैंने वहां के हर अखबार में इस विषय पर समाचारों की भरमार देखी। मेरे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि मुझ में आत्म-सम्मान भर गया तथा जब विदेशी लोगों से मेरा सामना हुआ तो उन्होंने कहा कि क्या तुम उस भारत देश से हो जहां पर परमाणु परीक्षण किया गया है? मुझे यह एहसास हुआ कि हमने विश्व को दिखा दिया कि हम स्वतंत्र हैं तथा हम जो चाहते हैं, उसे कर भी सकते हैं। बेशक हमने अपने शांतिपूर्ण उद्देश्य उद्घोषित किए तथा यह हमारी क्षमता का मात्र एक सूचक था। अब हम विश्व में सिर उठा कर जी सकते हैं। भारत में उदारीकरण को अपनाया गया तथा हमने आर्थिक तथा उत्पादक क्षेत्रों में उभरना शुरू किया।

अब हमारी अंतरिक्ष और वैज्ञानिक क्षमता भी उभरने लगी। अब हमारा गणतंत्र ठीक ढंग से काम कर रहा है तथा हमारे उद्यमी संयुक्त राज्य अमरीका को करीब 50 फीसदी दवाएं तथा फार्मा प्रोडक्ट निर्यात करके एक बड़ा आर्थिक रुतबा बना रहे हैं। आर्थिक और वित्तीय विकास स्वतंत्रता के चिन्ह हैं, जबकि भिखारी स्वतंत्र नहीं हो सकते। हमारे प्रतिभाशाली युवकों और युवतियों ने कई देशों में अपनी ताकत प्रदर्शित की है तथा एक सम्मानजनक संख्या में वे अमरीका, कैनेडा तथा ऑस्ट्रेलिया में काम कर रहे हैं। इन युवाओं ने देश को सशक्त करने में अपना महती योगदान दिया है तथा विश्व भारत की तकनीकी और वैज्ञानिक प्रतिभा का कायल हो गया है। यह देश की स्वतंत्रता है जो विश्व को कई क्षेत्रों में ‘स्वीप’ कर सकती है। लेकिन उधर कांगे्रस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि देश में लिखने, बोलने, सवाल करने तथा असहमत होने की स्वतंत्रता नहीं है। यह एक बहुत ही सनसनीखेज वक्तव्य लगता है क्योंकि यह जेल जैसी स्थिति को लक्षित करता है। जब भी मैं विदेश से लौटता हूं तो हर बार मुझे यह एहसास होता है कि जितना मैंने विश्व के दूसरे देशों में देखा, उससे कहीं ज्यादा बोलने की स्वतंत्रता भारत में है।

क्या आप ऐसे देश की कल्पना कर सकते हैं जहां अर्नब गोस्वामी जैसे टेलीविजन एंकर इस तरह बेबाकी से बात करते हैं कि स्वतंत्रता देश में ‘बाढ़’ लाती दिखती है। उनके विरोध में बोलने वाले भी कई हैं और वे भी बिना किसी रोक के बोलते हैं। यह भी कोई गजब नहीं है कि सोनिया गांधी का वास्तविक नाम प्रयोग करने के खिलाफ अर्नब गोस्वामी पर देश के विभिन्न थानों में 112 प्राथमिकी दर्ज हैं। गैर सरकारी संगठनों का एक गिरोह तथा कई अभिव्यक्ति प्रकट करने वाले पत्रकार भी नरेंद्र मोदी को गालियां देते हैं। मैंने अपने जीवन में कभी भी कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं देखा जिसे निरंतर गालियां दी जा रही हों। इसके बावजूद मोदी इन लोगों के पीछे कोई खंजर या चाकू लेकर नहीं दौड़े। ऐसी गालियों के विरुद्ध विरोध प्रकट करते मैंने मोदी को कभी नहीं देखा। सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करने के कारण वकील प्रशांत भूषण को दोषी माना गया है। अब वह इस बात का विरोध कर रहे हैं। वह अब पूर्व न्यायाधीशों तथा एनजीओ को कोर्ट के खिलाफ ‘मार्शल’ कर रहे हैं। हमें किस प्रकार की सवाल उठाने तथा असहमत होने की आजादी चाहिए? वास्तव में जरूरत इस बात की है कि बेलगाम आजादी को छोड़कर हमें देश को आर्थिक रूप से आगे ले जाने पर फोकस करना चाहिए। कोरोना काल में लाखों की संख्या में लोगों की नौकरियां गई हैं। उनका पुनर्वास, उन्हें फिर से रोजगार दिलाना हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। यह काम अकेले कोई भी सरकार नहीं कर सकती है। इसलिए केंद्र तथा राज्यों को मिलकर इस काम को पूरा करना चाहिए। जहां प्राइवेट सेक्टर में रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे, वहीं खाली पड़े सरकारी पदों को भरने की प्रक्रिया भी तेज की जानी चाहिए। कोरोना काल में जो लोग प्रभावित हुए हैं, उन्हें तभी हम कोई राहत पहुंचा सकेंगे।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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