कोरोना ने बिठाया शिक्षा का भट्ठा

By: Aug 5th, 2020 12:06 am

प्रदेश में 24 फरवरी के बाद लगभग सभी शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए थे। स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय बंद होने से अब शिक्षा का रूप ही बदल गया है। स्कूलों में कक्षाएं लगाकर जिन छात्रों को पढ़ाया जाता था, आज दस से बारह हर घर बने पाठशाला के माध्यम से ही पढ़ाई करने को मजबूर है। फरवरी से अप्रैल तक सरकारी स्कूलों में पहले पढ़ाई बिल्कुल ठप रही। हालांकि उसके बाद समग्र शिक्षा विभाग ने ऑनलाइन पोर्टल तैयार कर कक्षा पहली से 12वीं कक्षा तक के छात्रों के लिए ऑनलाइन सिलेबस तैयार किया। उसके बाद से ही सरकारी शिक्षा थोड़ी पटरी पर उतरी। हालांकि अभी भी ऑनलाइन स्टडी पूरी तरह से साढ़े आठ लाख छात्रों तक नहीं पहुंची है। सरकारी स्कूलों में 20 प्रतिशत छात्र अभी भी ऑनलाइन शिक्षा से दूर हैं।

कुछेक शिक्षकों के प्रयास से भले ही नोट्सस घर तक पहुंचाए जा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके व्यवहारिक शिक्षा न होने की वजह से छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पढ़ रहा है। बता दें कि छोटे बच्चों की भले ही ऑनलाइन कक्षाएं लगाई जा रही हैं, लेकिन उनके समझने की क्षमता कम होती जा रही है। प्राइवेट स्कूलों की भी यही हाल है, यहां छात्र ऑनलाइन पढ़ाई कर तो रहे हैं, लेकिन समझ  बहुत कम छात्रों को आ रहा है। शिक्षाविद खुद इस बात को मानते हैं कि ऑनलाइन स्टडी सॉल्यूशन नहीं है। वहीं, अगर लंबे समय तक इस तरह की शिक्षा चलती रही, तो शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा नुकसान हो सकता है। फिलहाल यह तो साफ है कि अभी प्रदेश में शिक्षण संस्थान नहीं खुलेंगे। वहीं, शिक्षा विभाग व सरकार डिजिटल स्टडी का और विकास करने का दावा कर रहा है। कोरोना के इस संकटकाल में खतरे में पड़ी हिमाचल की शिक्षा कब पटरी पर उतरेगी, यह देखना अहम होगा।

प्रदेश में इतने संस्थान

प्रदेश में मौजूदा समय में 15556 सरकारी स्कूल, 3252 निजी स्कूल, 126 डिग्री कालेज, पांच विश्वविद्यालय, एक केंद्रीय विश्वविद्यालय, एक आईआईटी, एक एम्स, 17 प्राइवेट विश्वविद्यालय, 170 कालेज, एडिड कालेजों की संख्या पांच है।

बदल दिए मायने

कोविड की वजह से शिक्षा के मायने ही बदल गए। हजारों छात्र जिनका लर्निंग आउटकम इस साल सुधारा जाना था, लेकिन कक्षाएं न होने की वजह से कुछ भी नहीं हो पा रहा। खासतौर पर पहली से लेकर पांचवीं तक के छात्रों का लर्निंग आउटकम प्लान बहुत नीचे जा रहा है। अगर समय रहते इन्हें शिक्षकों की गाइडलाइंस नहीं मिली, तो ऐसे में अंकों व शब्दों की पहचान करना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल शिक्षा के बदलते इन मायनों की वजह से आने वाले कुछ समय बाद सरकारी शिक्षा में गुणवत्ता का आंकड़ा काफी नीचे चला जाएगा। वहीं, दूसरी बार शिक्षा व्यवस्था पर पटरी पर लाने के लिए सरकार व शिक्षा विभाग को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

हजारों संस्थानों में सन्नाटा

जब से हिमाचल में भी कोरोना संक्रमण ने पांव पसारे हैं, तब से अभी तक स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय में सन्नाटा छाया हुआ है। जहां पहले पूरा दिन छात्रों की गतिविधियों से शिक्षण संस्थान में रौनक रहती थी, वहीं अब लंबे समय से नन्हे-मुन्ने छात्रों के कदमों के लिए शिक्षा के मंदिर तरस गए हैं। कोचिंग सेंटर व शिक्षण संस्थान ऐसे विराम पड़े हैं, जैसे लंबे समय से यहां छात्रों के कदम ही न पड़े हों। शिक्षण संस्थान के प्रबंधन भी इस तरह के सन्नाटे से हैरत में हैं।

प्रदेश में कुल इतने संस्थान

प्रदेश में मौजूदा समय में 15556 सरकारी स्कूल, 3252 निजी स्कूल, 126 डिग्री कालेज, पांच विश्वविद्यालय, एक केंद्रीय विश्वविद्यालय, एक आईआईटी, एक एम्स, 17 प्राइवेट विश्वविद्यालय, 170 कालेज, एडिड कालेजों की संख्या पांच है।

… 28 लाख छात्र

शिक्षा विभाग के अनुसार करीब 28 लाख के छात्र छोटे-बड़े सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों में साढ़े आठ लाख, निजी स्कूलों में लगभग 12 लाख से ज्यादा छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसके अलावा सरकारी व प्राइवेट कालेज विश्वविद्यालय में लगभग आठ लाख छात्र विभिन्न कोर्सेज में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। अब कोविड की वजह से छात्रों की पढ़ाई केवल ऑनलाइन के ही भरोसे है।

…नहीं हुए 50 हजार दाखिले

सरकारी स्कूलों की अगर बात करें, तो शिक्षा विभाग के अनुसार 60 हजार से एक लाख तक छात्र हर साल सरकारी स्कूलों में दाखिले लेते हैं। वहीं, इस बार की अगर बात करें, तो 50 हजार से ज्यादा दाखिले इस बार नहीं हुए हैं। अभी राज्य के सभी कालेजों में दाखिले का प्रोसेस शुरू हुआ है। शिक्षा विभाग की ओर से अभी जिलों से रिपोर्ट भी मांगी गई है कि कितने छात्रों ने कालेजों में दाखिला ले लिया है। हालांकि विभाग दावा कर रहा है कि अभी 40 प्रतिशत छात्रों ने ही ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया पूरी की है।

नहीं मिल पाए प्री नर्सरी के शिक्षक

कोविड ने सरकारी स्कूलों में प्री नर्सरी छात्रों के लिए भर्ती होने वाले प्री नर्सरी शिक्षकों की भर्ती भी रोक दी है। केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद अभी तक प्री नर्सरी शिक्षकों को लेकर कोई गाइडलाइन ही तय नहीं हो पाई है।

डराने वाले हैं ये नतीजे

ऑनलाइन स्टडी से तीन साल से पंद्रह साल तक के छात्रों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। आंखें लाल होना, सिरदर्द और कई ऐसी शिकायतें सामने आ रही हैं, जिससे कि उनके स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ने का खतरा बढ़ गया है। इसके अलावा ऑनलाइन स्टडी के रिजल्ट से अभी से ही अभिभावक घबराने लगे हैं। हैरत इस बात की है कि वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से पढ़ाई कर रहे छात्रों के दिमाग पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ने लगा है। बताया जा रहा है कि अब शिक्षा विभाग के अधिकारी भी ऑनलाइन स्टडी के परिणाम से डरने लगे हैं। जानकारी के अनुसार चिकित्सक भी अब छात्रों की दिन भर मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन पढ़ाई को घातक बता रहे हैं। दरअसल कई छात्रों के दिमाग पर इसका असर पड़ने लगा है। ऐसे भी कई छात्र हैं, जो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पढ़ तो जरूर रहे हैं, लेकिन अगर समझने की क्षमता की बात करें, तो उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। ऐसे में अब शिक्षाविद भी यह मान रहे हैं कि ऑनलाइन स्टडी को हमेशा के लिए नहीं रखा जा सकता।

तीन महीने का प्लान

अगर राज्य के स्कूल, कालेज व अन्य शिक्षण संस्थान खुलते, तो शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा बहुत से कार्यक्रम होने थे। स्कूलों की अगर बात करें, विंटर वेकेशन स्कूलों में इन दिनों हाउस टेस्ट शुरू हो जाने थे। इसी तरह समर स्कूलों में नए सत्र की पढ़ाई शुरू होनी थी। जमा एक व नौवीं की कक्षा में दाखिले की प्रक्रिया भी होनी थी।  कालेजों में फाइनल एग्जाम खत्म होने के बाद नया सत्र अब शुरू होना था। एचपीयू में भी पीजी के नए सत्र को  लेकर एंट्रेंस टेस्ट होने थे। इसके अलावा छात्रों के  कमीशन के तहत कई परीक्षाएं होनी थी, लेकिन कोविड की वजह से शैक्षणिक सभी प्रकार की गतिविधियों पर नजर लग गई।  अभी कालेज व विश्वविद्यालय में छात्रों की पुराने सेमेस्टर की फाइनल परीक्षाएं ही आयोजित नहीं हो पाई हैं। 16 अगस्त से ये परीक्षाएं करवानी तय की गई हैं, लेकिन जिस तरह कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, उससे लगता है कि सरकार व एचपीयू को अपना फैसला बदलना पड़े।

नहीं हो पाया ये कुछ

चार माह से शिक्षण संस्थानों में कई ऐसी गतिविधियां हैं, जो नहीं पाई। अगस्त माह शुरू होने वाला है, शिक्षण संस्थानों में किसी भी तरह के सांस्कृतिक, खेलकूद ओर अन्य प्रतियोगी कार्यक्रम नहीं हो पाए। इसके साथ ही कोरोना की ऐसी मार पड़ी, कि पिछले साल के मेधावी छात्रों को लैपटॉप तक नहीं मिल पाए। स्कूल बैग की योजना भी पूरी तरह अभी तक ठप पड़ी हुई है। इसके अलावा अगर बात करें, छात्रों के लिए होने वाले एजुकेशन टूअर भी नहीं हो पा रहे हैं। हाउस टेस्ट को लेकर भी किसी भी शिक्षण संस्थान में कोई गतिविधि नहीं हुई है। सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम का कार्य रुक गया है।

अभी दो-तीन महीने ऑनलाइन ही होगी पढ़ाई

यह बात सही है कि इस महामारी की वजह से छात्रों के साथ शिक्षकों की कनेक्टिविटी नहीं हो पाई। व्यवहारिक रूप से कक्षाएं न होने की वजह से शिक्षा का बड़ा नुकसान हुआ है। कई नए चैलेंज शिक्षा के क्षेत्र में हमारे पास इस बार हैं। हर घर बने पाठशाला के विकास को लेकर नए प्रयास किए जा रहे हैं। अब ऑनलाइन स्टडी के साथ छात्रों की टेस्टिंग पर ध्यान दिया जाएगा। वहीं, छात्र नई टेक्नोलॉजी के साथ जुड़कर ऑनलाइन स्टडी कर सकें, इसका पूरा प्रयास किया जा रहा है। छात्रों तक जो कंटेंट नहीं पहुंच रहे हैं, उसकी रिपोर्ट तैयार कर उन तक हर सिलेबस पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। फिलहाल शिक्षकों की भी मॉनिटरिंग की जा रही है।  वहीं, रोज नया मटीरियल भेजा जा रहा है, ताकि ऑनलाइन स्टडी में किसी भी तरह की कोई कमी न रहे। अभी शिक्षण संस्थानों में लगता है कि दो से तीन माह तक ऑनलाइन माध्यम से कक्षाएं लगानी होंगी

—राजीव शर्मा, शिक्षा सचिव

ऑनलाइन ज्यादा कुछ समझ भी नहीं पा रहे छात्र

अभिभावकों का खुद मानना है कि ऑनलाइन स्टडी से उनके नौनिहाल कुछ भी नहीं समझ पा रहे। हांलाकि 40 प्रतिशत छात्र जरूर ऑनलाइन स्टडी से पढ़ाई कर भी रहे हैं और उसके परिणाम भी ठीक आ रहे हैं। फिलहाल सरकार व शिक्षा विभाग के पास भी अब ऑनलाइन स्टडी के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है, ऐसे में शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने यही अपील की है कि जब तक स्कूल नहीं खुल जाते, तब तक पूरी सुरक्षा के साथ अपनी पढ़ाई सुचारू ढंग से करें।

हिमाचल प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में कोरोना की वजह से पढ़ाई पर बहुत बुरा असर पड़ा है। प्रदेश में स्कूल-कालेजों में दो सत्र बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। ऑनलाइन स्टडी भी एक छलावा है, स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय में जो ऑनलाइन स्टडी शुरू की गई है, छात्रों को इसका कोई लाभ नहीं। ऑनलाइन स्टडी ने एक विचित्र स्थिति खड़ी कर दी है। राज्य में अधिकतर लोगों के पास लैपटॉप, मोबाइल, इंटरनेट सुविधा नहीं है, ऐसे यहां ऑनलाइन स्टडी संभव ही नहीं है। जिस तरह कोविड की वजह से छात्रों के दो सत्र तबाह हो रहे हैं, उससे आने वाले समय में प्रदेश से बाहर नौकरी  पर जाने वाले छात्रों पर भी कई सवाल उठाए जा सकते हैं

—प्रो. अजय श्रीवास्तव, एचपीयू

ऑनलाइन पढ़ाई को इतना सफल नहीं मान सकते। शिक्षा पर बुरा असर तो पड़ा ही है। स्कूल-कालेजों में सभी इंतजाम होने के बाद भी मोबाइल, लैपटॉप पर पढ़ाई हो रही है। इससे छात्रों के दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है। पूरा दिन ऑनलाइन पढ़ाई करने के बाद फिर मोबाइल पर गेम खेलने से आंखों पर भी बुरा असर पड़ रहा है। छात्रों को जो कक्षाओं में पढ़ाया जा सकता था, उसे ऑनलाइन पढ़ाना मुश्किल है, लेकिन फिलहाल कोविड के इस संकट में ऑनलाइन तरीके से कुछ न कुछ तो छात्रों को पढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है

—प्रो. सरोज, आरकेएमवी कालेज

किसी तरह का स्ट्रेस न लें छात्र

मेरी हिमाचल के तमाम शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों से यही रहेगी कि वे घरों में स्ट्रेस न लें। जितना हो सके, अपनी पढ़ाई के साथ जुड़े रहें। ज्यादा से ज्यादा समय अपने घरवालों के साथ व्यतीत करें। वहीं पढ़ाई के साथ-साथ अपनी रुचि के अनुसार तरह-तरह की गेम्स भी खेलें। घर से बाहर न निकलें, जो ऑनलाइन मटीरियल स्टडी का दिया जा रहा है, उसे ध्यान से पढ़ें।

31 मई तक दूरदर्शन पर चलेंगी कक्षाएं

सरकारी स्कूलों में पहले से ही शिक्षा विभाग ने ऑनलाइन स्टडी बंद कर दी है। हालांकि प्राइवेट स्कूलों में अभी भी शिक्षक ऑनलाइन और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पढ़ा रहे हैं। दस से 12 हर घर बने पाठशाला ऑनलाइन साइट सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर सकते हैं। सरकार व शिक्षा विभाग ने राहत देते हुए कहा है कि अब शिक्षक आज से तेरह दिन के अवकाश में छात्रों को एक साथ होमवर्क दे सकते हैं। रोज घर से सुबह से दोपहर 12 बजे तक कक्षाएं लगाने की जरूरत उन्हें नहीं होगी। हालांकि इस बीच ये भी आदेश सरकार की ओर से हैं कि छात्रों से शिक्षक अपना संपर्क बिल्कुल भी न तोड़ें। वहीं, अगर कोई छात्र पढ़ाई से संबंधित कुछ शिक्षकों से पूछता है, तो ऐसे में उन्हें छात्रों को समय देना है। फिलहाल शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के मूताबिक दूरदर्शन पर 31 मई तक छुट्टियां होने के बावजूद कक्षाएं चलती रहेंगी। सरकार ने केवल ऑनलाइन स्टडी में ही रियायत दी है। फिलहाल ऑनलाइन स्टडी के परिणामों से घबरा रहे राजधानी के अभिभावक अब नोट्स के माध्यम से छात्रों को पढ़ाने पर जोर देने लगे हैं।

अभी तो शिक्षण संस्थान खुलने के बहुत कम हैं चांस

कोरोना काल में शिक्षा पर कैसा पड़ा असर… पेश हैं पूर्व शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज के साथ बातचीत के मुख्य अंश

दिव्य हिमाचल : कोरोना ने शिक्षा क्षेत्र का कितना और क्या-क्या नुकसान किया? सरकार ने क्या कोई रिपोर्ट बनाई?

सुरेश भारद्वाज : शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है। ऑनलाइन स्टडी तो हो रही है, लेकिन जो छात्रों को कक्षाओं में पढ़ाया जा सकता है, वह ऑनलाइन स्टडी में व्यवहारिक नहीं है। अगर एक माह बाद छात्रों की पढ़ाई शुरू की जाती है, तो इससे उनका साल बर्बाद हो जाएगा। वहीं, जो छात्र यूजी-पीजी की डिग्री के लिए पढ़ाई कर रहे हैं, उनकी डिग्री भी लटक जाएगी। छात्र नए कोचिंग सेंटर में एडमिशन नहीं ले पाएंगे। अगर सही ढंग से अभी पढ़ाई नहीं होती है, तो छात्रों के लर्निंग आउटकम्स खत्म हो जाएंगे। छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षकों के साथ व्यवहारिक होना जरूरी है। इसके साथ ही जरूरी है कि छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद और कई गतिविधियां होती रहनी चाहिए थी। इन सभी गतिविधियों के न होने की वजह से खासा नुकसान छात्रों को झेलना पड़ रहा है।

शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने से किस तरह उथल-पुथल हुई पढ़ाई?

फरवरी से शैक्षणिक संस्थान बंद होने की वजह से  शिक्षा उथल पुथल तो हुई है। स्कूल-कालेज एक दम बंद हो गए, वहीं छात्रों की कक्षाएं भी रुक गई। ऑनलाइन पढ़ाई से छात्रों की स्टडी तो शुरू की, लेकिन सभी जगह इंटरनेट सुविधा और स्मार्टफोन न होने की वजह से छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर तो पड़ा, लेकिन बावजूद इसके सरकार ने ये आदेश शिक्षकों को जारी किए हैं कि जहां ऑनलाइन स्टडी नहीं हो पा रही है, वहां नोट्स पहुंचाएं जाएं। लहुल-स्पीति में शिक्षक छात्रों को नोट्स के जरिए ही पढ़ा रहे हैं। वहीं, हिमाचल के सरकारी स्कूलों में छात्रों की ऑनलाइन स्टडी का रेशो दूसरी बार 72 से बढ़कर 80 प्रतिशत तक हो गया है। ऐसे में यह जरूर है कि व्यवहारिक रूप से छात्र पढ़ नहीं पा रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन स्टडी का माध्यम उन्हें उपलब्ध करवाया गया है।

सरकार ने फीस न लेने को लेकर आंख बंद कर आदेश दे दिए, पर सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों से क्यों नहीं पूरी फीस ली जा सकती है?

ऐसा नहीं है कि सरकार ने आंख बंद कर फीस को लेकर आदेश जारी किए हैं। सभी शिक्षण संस्थानों को निर्देश दिए गए हैं कि अभिभावकों से पिछले साल की ट्यूशन फीस ही ली जाए। वह भी वही स्कूल व अन्य शिक्षण संस्थान ले सकते हैं, जहां ऑनलाइन पढ़ाई भी करवाई जा रही है।

कालेज और यूनिवर्सिटीज तो ऐसे बंद पड़े हैं, जैसे न तो इन्हें अब खुलना है और न ही बच्चों को आगे पढ़ना है, क्या यहां ऑनलाइन सिस्टम नहीं चलता?

कालेज व विश्वविद्यालय में शिक्षक व गैर शिक्षकों का स्टाफ आ रहा है। प्रधानाचार्य को निर्देश दिए गए हैं कि वे जरूरत के हिसाब से स्टाफ को बुला सकते हैं। इसके साथ ही कालेज, विश्वविद्यालय के बच्चे बड़े होते हैं, वे अपनी पढ़ाई सही ढंग से खुद कर सकते हैं। कालेज-यूनिवर्सिटी के छात्रों को ऑनलाइन कंटेंट दिया जा रहा है। वहीं, कालेज की फाइनल सेमेस्टर की परीक्षा भी करवाई जा रही है। पीजी की परीक्षा को लेकर भी जल्द शेड्यूल तय किया जाएगा। यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार कालेज व विश्वविद्यालय में परीक्षाएं खत्म कर दी जाएंगी, ताकि छात्रों का साल बर्बाद न हो।

बेकाबू हो रहे कोरोना से तो बहुत जल्दी छुटकारा नहीं मिलेगा, तो भविष्य के लिए शिक्षा संबंधित कोई योजना है क्या?

जिस तरह से कोरोना महामारी फैल रही है, उससे तो लगता नहीं है कि हालात जल्दी ठीक हो जाएंगे। अगर हालात ऐसे ही रहते हैं, तो स्कूल खुलने के बहुत कम चांस लग रहे हैं। हालांकि स्कूल न खुलने पर छात्रों की कक्षाएं दूसरे चैनल्स पर भी शुरू की जा सकती  हैं। एनसीईआरटी ने भी कक्षा वाइज कई चैनल तैयार किए हैं, अगर वे लांच हो जाते हैं, तो उस पर भी छात्रों की कक्षाएं लग सकेंगी।

निजी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई सही ढंग से हो रही है, लेकिन सरकारी स्कूलों में व्यवस्था चरमराई सी क्यों है?

ऐसा नहीं है कि सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन स्टडी  नहीं हो रही। आज की अगर बात करें, तो ऑनलाइन स्टडी में प्राइवेट स्कूलों से आगे सरकारी स्कूल हैं। साढ़े सात लाख के करीब छात्र व्हाट्सऐप और समग्र शिक्षा विभाग के ऑनलाइन पोर्टल के साथ पढ़ाई कर रहे हैं। सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए ऑनलाइन स्टडी के लिए सौ शिक्षकों का रिसोर्स ग्रुप बनाया गया है। 31 जुलाई के बाद ऑल इंडिया रेडियो पर भी छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है। दूरदर्शन पर भी छात्रों की कक्षाएं दसवीं व बारहवीं की लगाई जा रही हैं। ऐसे में यह कहना उचित नहीं है कि सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन स्टडी नहीं हो रही। वैसे भी अब शिक्षा विभाग के अधिकारी ऑनलाइन मॉनिटरिंग भी कर रहे हैं कि शिक्षक छात्रों की कक्षाएं लगा रहे हैं या नहीं।

आदर्श स्कूल-वर्चुअल क्लासरूम भी नहीं बने

इस साल राज्य में अटल आदर्श स्कूलों को बनाने का कार्य भी पूरा किया जाना था, लेकिन कोविड की वजह से ये सभी कार्य भी ठप पड़े हुए हैं। अटल आदर्श स्कूलों के लिए जमीन ढूंढने का कार्य अभी अधर में लटका हुआ है। इसके साथ ही वर्चुअल क्लासेज को लेकर भी शिमला से होने वाली शुरुआत भी नहीं हो पाई है। इस साल सरकार ने वर्चुअल क्लासेज शुरू करने का दावा किया था, ताकि जिन स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, वहां ऑनलाइन माध्यम से छात्रों की पढ़ाई हो सके।


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