किन्नौर की पहचान है हैंडलूम

By: Aug 8th, 2020 12:20 am

‘राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस’ पर आयोजित प्रोग्राम में बोले जेएसडब्ल्यू हाइड्रो एनर्जी लिमिटेड के परियोजना प्रमुख

रिकांगपिओ-हैंडलूम केवल आजीविका नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक संरक्षण का कार्य भी है। आज हैंडलूम किन्नौर की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। किन्नौर के इस पक्ष पर बात किए बिना किन्नौर पर बात पूरी नहीं की जा सकती। उक्त विचार जेएसडब्ल्यू हाइड्रो एनर्जी लिमिटेड के परियोजना प्रमुख प्रवीण पुरी ने सीएसआर पहल चरखा के शोलतू सेंटर में‘ राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस’ पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में व्यक्त किए। पुरी ने दोहराया कि चरखा के जरिए जेएसडब्लू समाज परिवर्तन की एक ऐसी शुरुआत कर चुका है, जिसके परिणाम अब सामने आने लगे हैं। चरखा के समूहों से जुड़ी महिलाएं अब आजीविका के आगे जाकर लैंगिक न्याय और समानता की बात करने लगी हैं। अपना वक्तव्य देते हुए जेएसडब्ल्यू के सीएसआर मुखिया विनोद पुरोहित ने कहा की चरखा और स्वदेशी के जरिया आज से एक सौ पंद्रह साल पहले शुरू हुई एक यात्रा आज इस मुकाम तक पहुंची है।

चरखा आजादी के आंदोलन में अपनी बड़ी भूमिका निभा रहा था। स्वदेश आंदोलन से लेकर स्वाधीन होने तक की पुरी यात्रा इसकी गवाह है। दुनिया का 95 प्रतिशत हथकरघा भारत में है, लेकिन इसका फायदा अभी तक दस्तकारों तक नहीं पहुंचा है। इसके लिए सरकारी और सामुदायिक प्रयास किए जाने चाहिए, तभी ये कला बच पाएगी। चवालीस लाख लोगों को रोजगार देने वाले इस क्षेत्र पर गंभीर-विमर्श होना चाहिए और नई दस्तकारी नीति बननी चाहिए, ये सेक्टर आत्मनिर्भर भारत में अपनी महत्ती भूमिका निभा सकता है।  कार्यक्रम को जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन के सीईओ अश्विनी सक्सेना, क्राफ्ट हेड आराधना नागपाल और निफ्ट-कांगड़ा की छवि गोयल ने ऑडियो-विजुअल तकनीक से संबोधित किया। इस अवसर पर जेएसडब्ल्यू के सीएसआर पहल ‘चरखा’ से जुड़ी महिलाओं ने अपने विचार रखे और इसे उत्सव की तरह मनाया और अपने उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाईं।


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