मन की गहराई

By: Aug 22nd, 2020 12:20 am

 बाबा हरदेव

एक व्यक्ति है जो हिंदी, अंग्रजी और पंजाबी तीनों भाषाएं जानता है और वह एक समय में केवल हिंदी भाषा का ही प्रयोग कर रहा हो, तो इस अवस्था में अंग्रेजी और पंजाबी दोनों भाषाओं की जानकारी अथवा ज्ञान उस व्यक्ति के मन की गहराई में पड़ा हुआ है और समय आने पर वह व्यक्ति आसानी से अंग्रेजी अथवा पंजाबी भाषाएं भी लिख-बोल सकता है।

क्योंकि उसकी अंग्रेजी और पंजाबी भाषाओं की जानकारी कहीं गई नहीं है, बल्कि यह इसके मन की गहराई में ही पड़ी हुई है। वास्तविकता यह है कि हमारे शरीर की बनावट में यह पाया जाता है कि हमारे सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर में हमारे पिछले जन्मों की आदतें संगृहीत हैं। जैसे कई बार हम यह सुनते हैं कि एक व्यक्ति ने अपने आप को मृत अवस्था में पहुंचा दिया है, उसकी नब्ज बंद हो चुकी है एवं उसका दिल भी नहीं धड़क रहा है और अन्य लोग कह रहे हैं कि लगता है कि यह मनुष्य मर गया है और अचानक वह फिर से जी उठता है। इसका कारण यह है कि उस व्यक्ति की पिछले जन्मों में, जैसे कि मेंढक आदि के जिस्म में, जो आदतें थी (जिन जन्मों में से यह मनुष्य गुजर कर आया है) उन आदतों को इसने दोहरा लिया है।

इसी प्रकार ऋद्धि-सिद्धि का भी अकसर लोग वर्णन करते रहते हैं जबकि विद्वानों का मानना है कि इन ऋद्धियों-सिद्धियों में पड़ने का नाम कोई उन्नति नहीं है अपितु ऐसा करने से तो हम अपने आप को कर्मकांडों के मायाजाल में फंसा रहे होते हैं। उदाहरण के तौर पर एक कुत्ता दूर से सूंघ लेता है अगर मनुष्य यह ताकत प्राप्त कर भी ले कारण शरीर में पड़ी हुई विचारों की ताकत से यह सब कुछ हो सकता है। अतः जैसे मनुष्य के भीतरी विचार होंगे, वैसे ही बाहरी वातावरण पैदा हो जाएंगे। अब यदि व्यक्ति गरीब है तो वह अपने विचारों से गरीब है क्योंकि उस व्यक्ति ने अपने ही विचारों से अपने आप को दरिद्रता की कैद में डाल रखा है। जबकि मनुष्य यदि चाहे तो अपने दरिद्र बने रहने के विचारों से आजाद हो सकता है। उदाहरण के तौर पर एक रेलगाड़ी को ले लीजिए। रेल आजाद भी है और कैद भी है। आजाद तो ऐसे कि वह पटरी पर जितनी चाहे तेज गति से चलने में सक्षम है और कैद यूं कि वह अपनी पटरी से जरा सी भी इधर-उधर नहीं हो सकती और इस प्रकार वह लकीर की फकीर बनी हुई होती है। इसी प्रकार हमारे विचारों के साथ हमारे मस्तिष्क में पटरियां अर्थात धारणाएं पड़ जाती है और इन धारणाओं को मजबूत करने के लिए बाहर से साजो-समान भी उपलब्ध हो जाते हैं। इसी प्रकार एक रेशम के कीड़े को लीजिए, वह आजाद भी है और कैद भी है। अब कर्म की परिभाषा वह गति है, जिससे मन का लगाव हो अर्थात स्वाभाविक कर्म वह है जो हमारी विचारधारा की तरह में है। हमारे विचारों से ही हमारा भाग्य बना हुआ है। जैसी हमारी गति होगी। अतः जब हम दूसरों की इज्जत करते हैं, तो हमारी इज्जत अपने आप होने लगती है। जिस वक्त हम लोगों को प्यार करते देते हैं तो चारों दिशाओं से प्यार मानो हमारी ओर दौड़ता हुआ चला आता है।


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