सभ्यता और संस्कृति

By: Aug 8th, 2020 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

सभी लोगों से विदा लेकर तीनों गोलकुंठा जहाज पर सवार हो गए। यह जहाज 24 जून को मद्रास पहुंचा। वहां के भक्तों में आने की खबर पहले से ही फैल चुकी थी। सभी कोशिश करने के बावजूद कलकत्ता में फैले प्रकोप के कारण स्वामी जी को मद्रास में उतरने की इजाजत नहीं मिली थी। ब्रहावादिन पत्रिका के संबंध में सलाह लेने के लिए श्री आलासिंगा मद्रास से स्टीमर में सवार होकर श्रीलंका पहुंचे। वे स्वामी जी के वहां रुकने पर उनसे मिलकर विचार-विमर्श करना चाहते थे। श्रीलंका में जहाज से स्वामी जी के उतरते ही दर्शन करने वालों की भीड़ लग गई। मनस्वी श्री कुमार स्वामी और श्री अरुणाचलम को वहां देखकर स्वामी जी बहुत खुश हुए। वहां से 28 जून को फिर यात्रा शुरू हुई, जहाज अदन की तरफ बढ़ रहा था।

इस समुद्र यात्रा के समय का बाहुल्य होने से स्वामी जी की मानसपुत्री भगिनी निवेदिता ने अपने गुरुदेव से विभिन्न विषयों पर सारपूर्ण सभी शिक्षाएं ग्रहण कीं। भगिनी निवेदिता ने कई बार लक्ष्य किया कि स्वामी जी इस दृश्यमान जगत के समानांतर विद्यमान किसी दूसरे भाव जगत में जिसे देख पाना दूसरों के लिए मुश्किल है, विचरण करते रहते हैं और कभी कोई ऐसी बात कह बैठते हैं जिसका इस जगत से कोई संबंध नहीं और फिर भी  अपनी इस भूल पर पर्दा डालने के लिए श्रोता को किसी अन्य विषय की तरफ आकर्षित करने लग जाते थे और फिर इस भूल के लिए संकोच और लज्जा महसूस करते थे। स्वामी जी की चिंतन धारा में हमेशा चार बातों की तरफ इशारा होता था।

इन सभी समस्याओं से घिरे रहकर स्वामी जी को यकीन था कि सूर्य उदय पूर्व से ही होगा। यह स्वामी विवेकानंद ही थे, जिन्होंने घोषणा की थी कि जातीय सभ्यता और संस्कृति से घृणा और विद्रोह करके दूसरों की अनुकृति करने से किसी राष्ट्र का उत्थान होने वाला नहीं और न ही कभी होगा। 31 जुलाई को वे लंदन पहुंचे। वहां हजारों अंगे्रज शिष्य व शिष्याओं के बीच दो अमरीकन शिष्याओं को देखकर वह बेहद खुश हुए थे। अखबार में स्वामी जी के आने की खबर सुनकर ही वे डिट्रायट से दर्शननार्थ लंदन आई थीं। लंदन से कुछ ही दूरी पर बिंबलडन में स्वामी जी ठहर गए। अब की बार भाषणों का प्रोग्राम उन्होंने स्थगित कर दिया था।

योग्य शिष्यों का दल बनाने में ही उन्होंने काफी जोर दिया था। दीप से दीप जलाने की प्रक्रिया ही स्वीकार की। 16 अगस्त को स्वामी जी तुरियानंद जी के साथ न्यूयार्क पहुंचे। यात्रा में शिक्षण उपदेश का कम्र जारी रखा गया। न्यूयार्क में लिगोट दंपति ने उन्हें अपने यहां रखा, उस दिन यजमान दंपति के कहने पर वे नगर से 140 मील दूर उनके गांव के मकान की तरफ चल दिए। स्वामी जी के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्होंने प्रचार करने से रोक दिया और इनके इलाज के लिए इंतजाम करवा दिया गया। एक महीने के बाद भगिनी निवेदिता भी इंग्लैंड से यहां आ गईं। न्यूयार्क में प्रचार कार्य देखने वाले अभेदानंद जी किसी कारण से न्यूयार्क में नहीं थे। इसलिए उनकी भेंट स्वामी जी से न्यूयार्क में नहीं हो सकी।


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