संन्यास का आदर्श

By: Aug 1st, 2020 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

ध्यान-पूजा के बाद श्री रामकृष्ण परमहंस के देहवशेष वाले ताम्रपात्र को दक्षिण स्कंध पर धारण कर वे बेलूड़ मठ की तरफ चले। गुरुभाई और शिष्य शंख, घंटा आदि बजाते हुए उनके पीछे-पीछे चले। मठ प्रांगण में यत्नपूर्वक निर्मित वेदिता पर पवित्र अवशेषों को स्थापित कर सभी भक्तों ने श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। इसके बाद यज्ञाग्नि प्रज्वलित कर ऋचाओं के बान सहित आहुतियां समर्पित की गईं। खीर पकाकर भोग लगाया, उसके बाद संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित प्रवचन दिया। श्री रामकृष्ण देव जी के मंतत्व का प्रचार करने के लिए उद्बोधन नामक बंगला पत्रिका की शुरुआत की।

स्वामी त्रिगुणातीतानंद उसके संपादक बने। तरह-तरह की व्यस्तताओं की वजह से स्वामी जी फिर बीमार हो गए थे। अगली गर्मियों में उन्हें फिर से विदेश जाना पड़ा। इसीलिए स्वास्थ्य में  सुधार होना मुश्किल था। आराम करने के लिए वे वैद्यनाथ धाम चले गए। प्रियनाथ मुखोपाध्याय ने उन्हें अपना मेहमान बनाया। वहां पहुंचकर पहले तो उनका दमे का मर्ज बढ़ गया, लेकिन बाद में उनकी तबियत में थोड़ी-थोड़ा सुधार होना शुरू हो गया। वहां 2 फरवरी 1899 को मठ का निर्माण नए स्थान पर हो चुका था। वहां से रोजाना होने वाले कार्यों की खबरें स्वामी जी को मिलती रहती थी। स्वामी 3 फरवरी को फिर वहां से मठ लौट आए थे। वे मठ के कार्य को सुचारू रूप से चलते हुए देखकर काफी खुश हुए। इसके बाद स्वामी जी ने इंग्लैंड और अमरीका जाने की सोची। 11 जनवरी का दिन स्वामी जी के वहां जाने का निश्चित कर दिया गया। स्वामी जी के कहने पर स्वामी तुरियानंद जी ने उनके साथ जाने की तैयारी की। भगिनी निवेदता बालिका विद्यालय के काम से इंग्लैंड जाना चाहती थीं। 12 जून के दिन स्वामी विवेकानंद जी तथा तुरियानंद जी के विदाई के लिए छोटी सी सभा का आयोजन किया गया।

स्वामी जी ने संन्यास का आदर्श व उसका साधन विषय पर एक छोटा सा भाषण दिया। उन्होंने युगधर्म के महत्त्व को भी समझाया और इस बात पर बल दिया कि मठ का उद्देश्य मनुष्यों को तैयार करना है। 20 जून सन् 1899 की सुबह स्वामी जी गुरुभाइयों के साथ बाग बाजार में श्री माता जी के घर पर पहुंचे। सभी ने दोपहर का भोजन एक साथ किया। मात जी इन संन्यासियों को जिनमें उनका बेटा भी था, भोजन कराकर बहुत खुश हो उठीं। तीसरे पहर मां के चरणों की धूल को मस्तक पर लगा और उनका आशीर्वाद लेकर स्वामी जी तुरियानंद और भगिनी निवेदिता के साथ जलयान पर चलने के निमित्त प्रिसेंस घाट पर उपस्थित हुए। अनेको स्नेही और भक्त वहां प्रतीक्षा करने खड़े थे।


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