सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को कमान: प्रताप सिंह पटियाल, लेखक बिलासपुर से हैं

By: प्रताप सिंह पटियाललेखक बिलासपुर से हैं Aug 18th, 2020 12:06 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं

उस खुफिया सैन्य मिशन की अगुवाई कर्नल कुलवंत सिंह पन्नु (महावीर चक्र) ने की थी। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान फ्लाइंग ऑफिसर गुंजन सक्सेना ने दुश्मन की भीषण गोलीबारी के बीच रणक्षेत्र में हजारों फीट की ऊंचाई पर चीता हेलिकॉप्टर से कई सफल उड़ानें भर कर भारतीय सेना की सहायता करके सेना में महिला शक्ति के जांबाज इरादे जाहिर कर दिए थे। उस अदम्य साहस के लिए उन्हें शौर्य चक्र से नवाजा गया था…

हमारे देश की सुरक्षा पूरी तरह सशस्त्र बलों पर निर्भर है। देश के लिए सैन्य सेवा तथा सैन्य वर्दी युवाओं के दिल में एक अलग रोमांच पैदा करती है। पिछले कुछ वर्षों से देश में रक्षा क्षेत्र के प्रति महिलाओं का आकर्षण भी काफी बढ़ रहा है। जिन युवाओं में जोश, साहस तथा देशहित की चुनौतियों से सामना करने का जज्बा मौजूद हो, उनके भविष्य के लिए सेना सबसे दमदार विकल्प है। हमारे सशस्त्र बलों में भारतीय थल सेना सबसे अहम तथा शीर्ष व आक्रामक अंग है। साल 1992 देश में महिलाओं के लिए भारतीय थलसेना में अधिकारी बनने का ऐतिहासिक पल था। इसकी शुरुआत भी शौर्य पराक्रम के धरातल हिमाचल प्रदेश से हुई थी। सेना में 1991-92 में शार्ट सर्विस कमीशन के तहत महिला अधिकारियों की भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी। सितंबर 1992 में प्रिया झिंगन को भारतीय थलसेना की पहली महिला सैन्य अधिकारी बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। इनका संबंध हिमाचल प्रदेश से है। ऑफिसर टे्रनिंग अकादमी (ओटीए) चेन्नई से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मेजर प्रिया झिंगन की नियुक्ति सेना की ‘जज एडवोकेट जनरल’ ब्रांच में हुई थी। सन् 2006 से महिला सैन्य सेवा का कार्यकाल 14 वर्ष के लिए कर दिया गया था। मगर सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन बहस का मुद्दा बना रहा। आखिर 17 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के 2010 के फैसले पर मुहर लगा दी थी।

सर्वोच्च न्यायालय की दलील थी कि महिला ऑफिसर कम्बैट विंग को छोड़कर लड़ाकू सेना के सहायक दस्तों मसलन आर्डिनेंस, सिग्नल्स, इंजीनियर, एएससी, ईएमई, आर्मी एयर डिफेंस तथा आर्मी एविएशन आदि शाखाओं में कमांड पोस्ट संभाल सकती हैं। अब 23 जुलाई 2020 को रक्षा मंत्रालय ने भी सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन की आधिकारिक मंजूरी देकर रक्षा क्षेत्र में नई इबारत लिख दी। भले ही भारतीय सेना में महिलाओं को अभी युद्धक भूमिका से दूर रखा है, लेकिन सन् 1992 से 2020 तक की अवधि में महिला सैन्य अधिकारियों ने रक्षा क्षेत्र में शूरवीरता, नेतृत्व क्षमता तथा अदम्य साहस की कई मिसालें कायम कर दी हैं। 1997 में आर्डिनेंस कोर की कैप्टन रुचि शर्मा ने जोखिम भरा ऑपरेशनल पैराट्रूपर का सफलतम कोर्स करके भारतीय सेना की पहली महिला पैराशूटिस्ट होने का कीर्तिमान स्थापित करके यह तस्दीक कर दी थी कि जरूरत पड़ने पर महिलाएं विशेष सैन्य मिशन को अंजाम देने में सक्षम हैं। पैराट्रूपर यानी वायुयान से पैराशूट के जरिए सैकड़ों फीट की ऊंचाई से निर्धारित स्थान पर उतरने में महारत हासिल सैनिक। भारत-पाक युद्ध में 11 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना की 2 पैराशूट बटालियन ने ‘टगांईल’ (बांग्लादेश) के रणक्षेत्र में पैराशूट से उतरकर सफलतम सैन्य ऑपरेशन को अंजाम देकर पाक सेना को चौंका दिया था।

उस खुफिया सैन्य मिशन की अगुवाई कर्नल कुलवंत सिंह पन्नु (महावीर चक्र) ने की थी। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान फ्लाईंग ऑफिसर गुंजन सक्सेना ने दुश्मन की भीषण गोलीबारी के बीच रणक्षेत्र में हजारों फीट की ऊंचाई पर चीता हेलिकॉप्टर से कई सफल उड़ानें भर कर भारतीय सेना की सहायता करके सेना में महिला शक्ति के जांबाज इरादे जाहिर कर दिए थे। उस अदम्य साहस के लिए उन्हें शौर्य चक्र से नवाजा गया था। सन् 2012 में आर्डिनेंस कोर की मेजर पूनम सांगवान ने महिला सैन्य दल का सफल नेतृत्व करके नेपाल के रास्ते माऊंट एवरेस्ट पर फतह हासिल की थी। इसी साल संपन्न हुए महिला टी-20 क्रिकेट विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करने वाली शिखा पांडे भारतीय वायुसेना की स्कवाड्रन लीडर हैं। इसी वर्ष भारतीय सेना की सिग्नलस कोर की मेजर सुमन गवनी को ‘सयुक्त राष्ट्र मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ  दि ईयर 2019’ के अवार्ड से नवाजा गया है, जो यूएन मिशन के तहत दक्षिणी सुडान में अपनी ड्यूटी पर तैनात थी। वहीं मार्च 2020 में नुपुर कुलश्रेष्ठ ‘इडियन कोस्ट गार्ड’ की प्रथम महिला उपनिदेशक पदोन्नत हुई हैं। भारत में नौ जुलाई 1943 को आजादी के महानायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी में महिला सेना विंग वजूद में आ गया था, वहीं सेना की चिकित्सा कोर में महिलाओं को डाक्टर अधिकारी के तौर पर शामिल करने की शुरुआत 1942 में अंग्रेज हुकूमत ने शुरू की थी। इस कोर में डाक्टर महिला अधिकारी लेफ्टिनेंट जरनल रैंक तक पहुंच चुकी हैं। लेकिन स्लोवेनिया दुनिया का पहला देश है जिसने महिला जनरल ‘सलेंका एर्मेन्क’ को अपने देश की सेनाध्यक्ष नियुक्त करके नई मिसाल पेश की है।

इजरायल ने 1948 में अपने वजूद में आते ही महिलाओं को अपनी सेना में शामिल करके सन् 1985 से उन्हें युद्ध अभियानों में भी उतार दिया था। इसी प्रकार अमरीका 2013, नार्वे 2014 तथा 2016 से ब्रिटेन जैसे देश अपनी महिला सैन्यशक्ति को कम्बौट रोल की अनुमति दे चुके हैं। आर्थिक तौर पर कोई भी मुल्क कितनी बुलंदी हासिल कर ले, मगर किसी भी राष्ट्र को वैश्विक मंच पर सुपर पॉवर की पहचान उसकी ताकतवर सेना की कम्बैट पॉवर से तय होती है। भारतीय वायुसेना 2016 में तीन महिला अधिकारियों को फाइटर स्क्वाड्रन में शामिल कर चुकी हैं। बहरहाल भारतीय सशस्त्र बलों में नारी शक्ति को स्थायी कमीशन जैसे साहसी फैसले से देश में हजारों छात्राओं की सैन्य वर्दी की तरफ कशिश बढे़गी तथा सैन्य संगठन में महिलाओं की बड़ी जिम्मेदारी से सैन्य ढांचे को मजबूती मिलेगी। इस कारगुजारी का श्रेय देश की शीर्ष अदालत को जाता है। मगर जब महिलाओं को देश की सरहदों के अग्रणी मोर्चों पर तैनाती का अवसर प्राप्त होगा, वे अपने आपको श्रेष्ठ करेंगी और यह पल सेना में यकीनन महिला सशक्तिकरण की कहानी बयां करेगा। सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन से सेना का रंग-रूप बदल जाएगा और आशा है कि महिलाओं से  सजी भारतीय सेना पहले से भी सशक्त होकर उभरेगी। नारी को यह सम्मान उसकी जिजीविषा को प्रकट करता है।


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