वीर योद्धा और कला प्रेमी महाराजा संसार चंद जी

By: Aug 29th, 2020 12:21 am

भारत को राजाओं-महाराजाओं, महान शासकों का देश कहा जाता है। हमारे देश में कई राजाओं महाराजाओं ने अपने-अपने ढंग से शासन किया और उनके द्वारा जनता के प्रति किए गए कल्याण कार्य, पराक्रम, कार्यकुशलता के कारण इतिहास के पन्नों में वे अपनी जगह बना गए हैं।

इनमें हिमाचल के कुशल वीर योद्धा, उच्च कोटि के रणनीतिकार, साहसी, प्रजा के कल्याण में अपना जीवन देने वाले महान कला प्रेमी महाराजा संसार चंद कटोच का नाम विशेष रूप से आगे आता है। महाराजा टेकचंद कटोच के 3 पुत्र थे, सबसे बड़े पुत्र महाराजा संसार चंद, दूसरे फतेहचंद और तीसरे मान चंद जी थे। महाराजा संसार चंद जी का जन्म 1765 ई. पूर्व गांव बीजापुर तहसील जयसिंहपुर कांगड़ा में हुआ था, जिन्होंने मात्र 10 वर्ष की आयु में ही राज्यसभा को संभाला था। उनकी दो रानियां थी पहली रानी सुकेत के राजा की राजकुमारी प्रसन्नो देवी, जिन्हें सकेतड़ी रानी भी कहा जाता था और दूसरी का नाम गुलाबो देवी था। पहली रानी से महाराजा अनिरुद्ध चंद और दूसरी रानी से महाराजा जोध वीर आए थे। पहली रानी से दो बेटियां हुई थी, जिनकी शादी टिहरी गढ़वाल के महाराजा सुदर्शन सा से हुई थी। महाराजा संसार चंद जी ने अपने शासनकाल में शुरुआत से ही लगातार वीरता पूर्ण संघर्ष से अपने पूर्वजों के कांगड़ा किले को अपने कब्जे में लेने में सफलता पाई और प्रदेश में मुगलों के अत्याचार से दबी कुचली जनता को भय मुक्त किया था। सभी संप्रदायों के बीच प्रेम भाईचारे को रखकर अपने कुशल शासक होने का प्रमाण भी दिया था।

महाराजा तेज रणनीतिकार, योद्धा होने के साथ महान कला प्रेमी भी थे। कांगड़ा चित्रकला शैली का जन्म कटोच वंश की शाखा गुलेर से हुआ था। इसी वंश के 435वें राजा मेघचंद्र के दो पुत्र थे, बड़े पुत्र महाराजा हरिश्चंद्र कटोच जो किसी दुर्घटना बस हरिपुर चले गए थे और वहां उन्होंने हरीपुर गुलेर रियासत की स्थापना की थी और उनके छोटे भाई महाराजा करमचंद ने कांगड़ा की राज्यसभा संभाली थी। धीरे-धीरे चित्रकला बसोली, चंबा, नूरपुर, बिलासपुर, मंडी, सुकेत, कुल्लू, अर्की, नालागढ़ और टिहरी गढ़वाल तक पहुंची थी।

उस समय दुनिया में चित्रकला की कई शैलियां थी। लेकिन महाराजा संसार चंद जी ने अपने शासनकाल में कांगड़ा शैली के विकास को चरम शिखर तक पहुंचाया था। इसी कारण महाराजा संसार चंद जी के शासनकाल को कांगड़ा कलम का स्वर्ण युग कहा जाता है और कांगड़ा कलाकार महान संरक्षक भी उन्हें कहा जाता है। महाराजा ने अपने शासन काल में 40,000 से ज्यादा कांगड़ा पेंटिंग बनवाई थी, जो 300 साल के बाद भी पहले जैसी ताजगी और चमकदार आज भी दिखती हैं। कहते हैं किसी राष्ट्र की पहचान उसकी समृद्ध कला संस्कृति से होती है और उन्होंने इस कला से अपनी संस्कृति को विश्व भर में पहुंचाया था। महाराजा जी ने कवि जयदेव की संस्कृत प्रेम कविता, गीत गोविंद, बिहारी की सतसई, भागवत पुराण, नल दमयंती, केशवदास रसिकप्रिया कवि प्रिया और भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपो,ं दुर्गा मां पाठ देवी महात्म्य, पौराणिक कथाओं, राजाओं, शासकों और भारतीय नारियों का सबसे सुंदर चित्रण पहाड़ी कला शैली में किया। – क्रमशः

                   -मनवीर चंद कटोच, पालमपुर


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