कांग्रेस को अब भी बचा सकते हैं असली गांधी: भानु धमीजा, सीएमडी, दिव्य हिमाचल

By: भानु धमीजा, सीएमडी, दिव्य हिमाचल Sep 2nd, 2020 12:08 am

भानु धमीजा

सीएमडी, दिव्य हिमाचल

गांधी इस पर पूरी तरह स्पष्ट थे कि नई कांग्रेस और इसके सदस्य किस प्रकार देश की सेवा करेंगे। उनका प्रारूप विशिष्ट था। उन्होंने लिखा कि हर कांग्रेस कार्यकर्ता को ‘‘छुआछूत शपथपूर्वक त्यागनी होगी’’ और ‘‘अंतर-सांप्रदायिक एकता, और सभी धर्मों के लिए समान आदर व सम्मान के आदर्श में विश्वास रखना होगा।’’ प्रारूप संविधान में आवश्यकता जताई गई कि हर कांग्रेस कार्यकर्ता प्रत्येक ग्रामीण के साथ निजी संपर्क रखेगा, अन्य कार्यकर्ताओं की भर्ती और प्रशिक्षण करेगा, और गांवों को कृषि व हस्तशिल्प के माध्यम से स्वावलंबी बनाने के लिए संगठित करेगा…

कांग्रेस पार्टी को काया पलट की आवश्यकता है, यह कोई रहस्य नहीं है। आम चुनावों में इसका वोट शेयर वर्षों से गिर रहा है, और पार्टी द्वारा शासित प्रदेशों की संख्या भी लगातार कम  हो रही है। कांग्रेस में लगभग हर उस चीज की कमी है जो भारत के मुख्य विपक्षी दल में होनी चाहिए : बहुमत में आकर्षण, करिश्माई नेतृत्व, लोकप्रिय नीतियां, आकर्षक नारे, सक्रिय संगठन और प्रेरित कार्यकर्ता। हाल ही में 23 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने पार्टी हाइकमान से व्यापक सुधारों की मांग की। वे विकेंद्रीकरण, आंतरिक चुनाव, और सामूहिक निर्णय चाहते हैं। पार्टी के लिए समय आ गया है कि वह अपने सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी द्वारा स्थापित सिद्धांतों का अनुसरण करे।

महात्मा गांधी के वसीयतनामा में कांग्रेस

अपनी हत्या से ठीक एक दिन पहले, गांधी ने पार्टी के लिए एक नया संविधान प्रारूप पूरा किया था। यह बाद में उनका ‘‘आखिरी वसीयतनामा और इच्छा पत्र (His Last Will and Testament)’’ के रूप में प्रकाशित हुआ। उनके सचिव प्यारे लाल ने लिखा है कि महात्मा गांधी जनवरी 29, 1948 को थकान महसूस कर रहे थे और प्रारूप को सुधारने में उनकी मदद चाही। प्यारे लाल अगली सुबह संशोधित प्रारूप उनके पास लेकर गए, और अपनी मृत्यु से कुछ घंटे पहले, गांधी ने ‘‘अपनी विशिष्ट पूर्णता के साथ बिंदुवार शब्द जोड़े और हटाए।’’

गांधी ने लिखा, ‘‘कांग्रेस अपनी वर्तमान दशा और संरचना, अर्थात, एक प्रचार वाहन और संसदीय मशीन के रूप में, उपयोगिता खत्म कर चुकी है’’। ‘‘पार्टी को अन्य पार्टियों और सांप्रदायिक निकायों के साथ अवांछनीय स्पर्धा से दूर रहना चाहिए’’ यदि भारत अपने लोकतांत्रिक लक्ष्यों की ओर बढ़ना चाहता है।

गांधी चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी अपने वर्तमान संगठन को बदलकर एक ‘‘लोक सेवक संघ’’ के रूप में ‘‘पुष्पित’’ हो। पार्टी अपना नया संगठन पंचायतों के इर्द-गिर्द संरचित करे। हर पंचायत एक इकाई बनाए, और दो इकाइयां स्वयं में से निर्वाचित एक नेता के मातहत एक कार्यशील पार्टी बनाए। सौ पंचायतें एक ऊंचे दर्जे का नेता निर्वाचित करें, और दो सौ पंचायतें उससे भी ऊंचा, जब तक पूरा देश एक ऐसे मुखिया के नीचे संगठित न हो जाए जो पूरी पार्टी का नेतृत्व कर सके।

कांग्रेस को आरएसएस जैसे आधारभूत कार्य की आवश्यकता

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंतिम लोकप्रिय नेता राजीव गांधी ऐसे पंचायत-आधारित पुनर्गठन को तुरंत स्वीकृति दे देते। उन्हीं के नेतृत्व में पंचायतों को आखिरकार असली शक्तियां संवैधानिक संशोधन के माध्यम से मिली थीं। वर्ष 1992 में पारित 73वें और 74वें संशोधनों ने भारत की पंचायतों और नगर निकायों के लिए स्व-शासन का सूत्रपात किया। अगर कांग्रेस महात्मा की कल्पना के अनुरूप पुनर्गठित होती है तो पार्टी गांवों में अन्य सभी पार्टियों के मुकाबले मजबूत बढ़त दोबारा हासिल कर सकती है।

यहां तक कि गांधी के सुझाए नाम ‘‘लोक सेवक संघ’’ (एलएसएस) के भी रणनीतिक लाभ हैं। उनके मन में शायद ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’’ (आरएसएस) का नाम था, और वह एक तुलना स्थापित करना चाहते थे। भाजपा की मुख्य संगठनात्मक रीढ़ के तौर पर आरएसएस आज गांधी के समय से भी ज्यादा मजबूत है। महात्मा ने आरएसएस की मूलभूत कशिश और जन सेवा का महत्त्व देखा था, और वह कांग्रेस को भी समान ताकत देना चाहते थे। क्या वह ‘‘स्वयंसेवक’’ शब्द की तुलना ‘‘लोकसेवक’’ शब्द से कर रहे थे, इस पर अनुमान ही लगाया जा सकता है।

गांधी ने एक खाका छोड़ा, इसे क्यों न अपनाएं?

गांधी इस पर पूरी तरह स्पष्ट थे कि नई कांग्रेस और इसके सदस्य किस प्रकार देश की सेवा करेंगे। उनका प्रारूप विशिष्ट था। उन्होंने लिखा कि हर कांग्रेस कार्यकर्ता को ‘‘छुआछूत शपथपूर्वक त्यागनी होगी’’ और ‘‘अंतर-सांप्रदायिक एकता, और सभी धर्मों के लिए समान आदर व सम्मान के आदर्श में विश्वास रखना होगा।’’ प्रारूप संविधान में आवश्यकता जताई गई कि हर कांग्रेस कार्यकर्ता प्रत्येक ग्रामीण के साथ निजी संपर्क रखेगा, अन्य कार्यकर्ताओं की भर्ती और प्रशिक्षण करेगा, और गांवों को कृषि व हस्तशिल्प के माध्यम से स्वावलंबी बनाने के लिए संगठित करेगा।

अपनी प्रिय कांग्रेस पार्टी के लिए गांधी का ‘‘आखिरी वसीयतनामा और इच्छापत्र’’ निश्चित रूप से एक साहसिक पुनर्गठन होगा। महात्मा की कुछ शर्तों को छोड़, जैसे कि कांग्रेस कार्यकर्ता शराब नहीं पिएंगे और केवल खादी पहनेंगे, यह पुनर्गठन असंभव नहीं।

महात्मा की सलाह के अनुसार कांग्रेस में सुधार पार्टी को तुरंत विविधता और बहुलवाद की वह पहचान फिर दिला पाएंगे जिसकी कांग्रेस को त्वरित आवश्यकता है। यह पार्टी अब केवल अल्पसंख्यकों की पार्टी समझी जाती है। बदलाव की मांग कर रहे कांग्रेसियों को ‘‘असली’’ गांधी के सुझावों को मानना चाहिए।

कई कांग्रेस नेता आज ऐसे ही बदलावों की बात कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि पार्टी में आंतरिक चुनाव हों, संगठन में सुधार हो, और दल बेहतर सामाजिक सेवाएं उपलब्ध करवाए। फरवरी में जयराम रमेश ने कहा था कि पार्टी को ‘‘बेरहमी से स्वयं में परिवर्तन’’ लाना होगा और ‘‘स्थानीय स्तर के नेताओं को प्रोत्साहित व पोषित करना होगा।’’

मार्च में शशि थरूर की यह सलाह थीः ‘‘कांग्रेस को एक खुला चुनाव करवाना चाहिए… संगठन को स्वयं को पुनर्जीवित करना होगा, और चुनावों के बीच समाज सेवा में संलग्न होना पड़ेगा।’’ और सलमान सोज़ व संजय झा ने लिखा कि ‘‘यह साहसिक बदलाव का समय है, क्योंकि मात्र बनावटी सुधार उलटे पड़ेंगे।’’

भारत को एक मजबूत विपक्ष की सख्त आवश्यकता है और उस रिक्ति को केवल कांग्रेस ही भर सकती है। परंतु आज इसके नेताओं में दूरदर्शिता और साहस की कमी है। शायद गांधी की मूल दृष्टि इस पार्टी के कार्यकर्ताओं में एक चिंगारी सुलगा पाए, और भारत को इसकी विराट पुरानी कांग्रेस पार्टी वापस मिल जाए।

अंग्रेजी में ‘द क्विंट’ में प्रकाशित (24 अगस्त, 2020)


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