गीता रहस्य

By: Sep 12th, 2020 12:20 am

स्वामी  रामस्वरूप

 इन सब मंत्रों के अध्ययन से प्रत्येक विद्वान इस निर्णय पर पहुंचता है कि मनुष्यों को ईश्वर ने यह जन्म विद्वानों के संग द्वारा ईश्वर की शरण अर्थात मोक्ष पद प्राप्त करने के लिए दिया है। दूसरा भाव यह है कि ईश्वर ने वेदों में कोई जाति परंपरा नहीं बनाई है, केवल कर्मानुसार चार वर्ण अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्व एवं शूद्र बनाए हैं जिनका वर्णन पहले श्लोकों में कर दिया गया है…

गतांक से आगे…

ऋग्वेद मंत्र 10/111/19 में कहा कि जैसे मेघों से घिरे हुए जलों को सूर्य अपनी किरणों से बाहर निकाल कर वर्षा के रूप में पृथ्वी पर देता है, इसी प्रकार ईश्वर की शरण में जाने वाले प्रत्येक प्राणी, नर-नारी, पापी, भक्त जो भी है, उन सब अज्ञान से घिरे हुए मनुष्यों को परमात्मा वेदों के ज्ञान द्वारा बाहर निकाल कर परम गति अर्थात मोक्ष प्रदान करता है।

इन सब मंत्रों के अध्ययन से प्रत्येक विद्वान इस निर्णय पर पहुंचता है कि मनुष्यों को ईश्वर ने यह जन्म विद्वानों के संग द्वारा ईश्वर की शरण अर्थात मोक्ष पद प्राप्त करने के लिए दिया है। दूसरा भाव यह है कि ईश्वर ने वेदों में कोई जाति परंपरा नहीं बनाई है, केवल कर्मानुसार चार वर्ण अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्व एवं शूद्र बनाए हैं जिनका वर्णन पहले श्लोकों में कर दिया गया है।

तीसरा यह है कि नर-नारी, बेटा, कन्या, छोटे-बड़े सब पुण्यवान अथवा पापी भक्तों को ईश्वर की शरण में जाकर वैदिक भक्ति द्वारा अपने पापों को नष्ट करने का समान अधिकार है। परंतु प्रथम वेद के विद्वान से वेदों में तीन विद्याओं अर्थात ज्ञान कांड, कर्मकांड एवं उपासना कांड इनको विस्तार से समझकर आचरण में लाना आवश्यक है। यही सब वेदों में कही सत्य विद्या का उपदेश श्लोक 9/33 में भी श्रीकृष्ण महाराज यहां दे रहे हैं कि हे अर्जुन जब कोई मेरी शरण में आकर मेरा भक्त बनता है, तो वह दुराचारी भी मुझसे उपदेश पाकर साधु मानने के योग्य हो जाता है। परम शांति को प्राप्त होता है और उसका जन्म-मृत्यु में बार-बार आना-जाना समाप्त हो

जाता है।

पुनः स्त्री, वैश्य, शूद्र अथवा पाप योनि वाले कोई भी हों, वह सब मेरी शरण में आकर मुझसे वेद-विद्या का ज्ञान सुनकर और आचरण में लाकर परम गति अर्थात अपने पापों को नष्ट करके तथा दुःखों का नाश करके मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं। इन्हीं सब भावों के आधार पर श्लोक 9/33 में श्रीकृष्ण महाराज कह रहे हैं कि हे अर्जुन जब स्त्री, वैश्य, शूद्र,पापी और दुराचारी भी मेरी शरण में आकर तर जाते है, तब फिर पुण्यवान जन, ब्राह्मण तथा बलवान क्षत्रिय जैसे भक्तजन तो निश्चित ही तर जाते हैं।

जैसा कि ऋग्वेद मंत्र में कहा कि पापी भी ईश्वर की शरण में जाकर तर जाते हैं। पुनः श्लोक 9/33 में श्रीकृष्ण महाराज ने कहा कि हे अर्जुन तू इस दुःख रहित और नाश्वान संसार में रहकर मेरा ही भजन कर अर्थात मेरी ही सेवा और आज्ञा में रह, जिससे तू भी ऊपर कहे सब मनुष्यों की तरह परम गति को प्राप्त होगा। चारों वेद भी इस संसार को नाश्वान ही कहते हैं।                 – क्रमशः


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