हिमाचल के बाल साहित्यकार और उनका लेखन

By: पवन चौहान Sep 20th, 2020 12:10 am

पवन चौहान, मो.-9418582242

-गतांक से आगे…

हिमाचल के अन्य वरिष्ठ साहित्यकारों में एक नाम ओमप्रकाश सारस्वत जी का भी आता है। लंबे समय से लेखन में रमे ओमप्रकाश जी ने प्रौढ़ साहित्य संग बाल साहित्य में भी अपना रचनाकर्म किया है। बाल लेखन में कविता, नाटक आदि द्वारा भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ मानवीय, राष्ट्रीय मूल्यों की पहचान को लेकर कार्य किया है। इनकी बाल रचनाएं हिमाचल के स्कूली पाठ्यक्रम में भी शामिल हुई हैं। ‘लक्ष्मी की डिबिया’ (बाल नाटक संग्रह) और ‘संपादक चिडि़या’ (बाल कविता संग्रह) अभी प्रेस में हैं।

हिंदी साहित्य में सुदर्शन वशिष्ठ जी एक जाना-माना नाम है। इनके लेखन में साहित्य की हर विधा सम्मिलित है। बालोपयोगी साहित्य में इन्होंने लोक कथाओं पर मुख्यतः कार्य किया है। इनकी बाल कथाएं बालभारती, नंदन आदि बाल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इनकी बाल साहित्य की पुस्तकों में ‘कथा और कथा’, ‘बालक की सीख’ (नेशनल बुक ट्रस्ट से) और ‘हिमाचल प्रदेश की लोक कथाएं’ प्रमुख हैं। अमर सिंह ‘शौल’ पेशे से पत्रकार हैं और बाल साहित्य लेखन में इनकी विशेष रुचि है। इनकी बाल कहानियों की पुस्तक ‘समय की कीमत’ वर्ष 2007 में प्रकाशित होकर आई है जिसमें सात कहानियां संकलित हैं। इनकी बाल कहानियां देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं। वरिष्ठ लेखक रमेश चंद्र शर्मा जी की बाल साहित्य में रुचि बाल कविता को लेकर है। बाल साहित्य की इनकी पुस्तक ‘प्राथमिक शिशुगान’ का प्रकाशन हुआ है जिसमें आठ वर्ष तक के बच्चों के लिए बहुत सुंदर गीत संकलित हैं। संसार चंद ‘प्रभाकर’ जी साहित्य का एक जान-पहचाना नाम है। इन्होंने प्रौढ़ साहित्य (पहाड़ी और हिंदी दोनों) में बहुत कार्य किया है। बाल साहित्य में इन्होंने मुख्यतः बाल कविता में लेखन किया है। बाल कविताओं की इनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। जिला सोलन के अमरदेव अंगिरस जी की बाल रचनाएं देश की चर्चित पत्र-पत्रिकाओं बाल भारती, बाल सखा, वीर प्रताप आदि में प्रकाशित होती रही हैं। बाल साहित्य में इन्होंने कविता और कहानी को रचा है। नीति कथा संकलन के अंतर्गत इनकी पुस्तक ‘घाटियों में बिखरी लोक कथाएं’ प्रकाशित हुई है।

प्रभात कुमार वह साहित्यकार हैं जिन्होंने अपना लेखन संतोष उत्सुक, आभास पंडित व अनुभूति पंडित नामों से किया है। प्रौढ़ साहित्य और बाल साहित्य को मिलाकर इनकी लगभग 1500 रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। बाल साहित्य में इनकी विशेष रुचि बाल कहानी को लेकर है। इनकी बाल कहानियां जनसत्ता, नंदन, राजस्थान पत्रिका, दैनिक ट्रिब्यून, अमर उजाला, गिरिराज आदि में प्रकाशित हुई हैं। लोक साहित्य के साथ लघुकथा व प्रौढ़ साहित्य की अन्य विधाओं में लिखने वाले जिला मंडी के कृष्ण चंद्र महादेविया बाल साहित्य में कहानी लेखन करते हैं। इनकी बाल कहानियां देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। बच्चों को नाटक विधा की तालीम महादेविया जी हमेशा देते रहते हैं।

लोक कथाओं की इनकी पुस्तक ‘हिमाचली लोक कथाओं में लोक लघुकथाएं’ (पहाड़ी बोली और हिंदी भाषा दोनों में) है जो बच्चों का भरपूर मनोरंजन करती है। इनकी रचनाएं पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमेशा सचेत करती हैं। वरिष्ठ लेखक राजेंद्र पालमपुरी एक शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। इन्होंने बाल कविताओं को रचा है। प्रदेश के प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय द्वारा संचालित बाल मासिक पत्रिका ‘अक्कड़-बक्कड़’ में पालमपुरी जी ने साहित्यिक राज्य सलाहकार के रूप में कार्य किया है। ‘अक्कड़-बक्कड़’ के हर अंक के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी बाल कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं। इनकी बाल कविताएं व अन्य रचनाएं हिमाचल के पाठ्यक्रम में भी शामिल हुई हैं। गुरमीत बेदी प्रौढ़ साहित्य में कविता, कहानी, व्यंग्य आदि अन्य विधाओं में खूब लिख रहे हैं। लेकिन लेखन के शुरुआती दौर में इन्होंने बाल साहित्य में भी अपनी कलम चलाई है। चंपक, पराग आदि में कई बाल कहानियां इनकी प्रकाशित हुई हैं। साथ ही इन्होंने एक जासूसी बाल उपन्यास ‘तिलस्मी लोक में शेरु’ लिखा है जो 1983 में दैनिक वीर प्रताप में किस्तों में प्रकाशित हुआ है।

हेमकांत कात्यायन जी की बालोपयोगी साहित्य में लोक बाल कथाओं में विशेष रुचि है। पत्रकारिता के साथ साहित्य की अन्य विधाओं में कई पुरस्कारों से सम्मानित हेमकांत की एक बाल कथाओं की पुस्तक है ‘रण झूंझण झूं’ जो ग्रामीण परिवेश की कथाओं को संग्रहित किए हुए रोचकता के साथ जीवन मूल्यों की बात करती है। अभी हाल ही में प्रौढ़ साहित्य के साथ बाल साहित्य से जुड़े हैं वरिष्ठ साहित्यकार डा. गंगाराम राजी जी। हास्यवृति से लबरेज गंगाराम राजी जी की कहानियां जहां आनंदित करती हैं वहीं जीवन मूल्यों की बात करती हैं। उम्र के इस पड़ाव में बाल मनोविज्ञान को लेकर इनका रुझान बहुत सुकून देता है।

वर्ष 2019 में इनका बाल उपन्यास ‘चिडि़या आ दाना खा’ प्रकाशित हुआ है। बाल कहानियों का एक संग्रह अभी प्रकाशनाधीन है। विशेष बात यह है कि इनकी चार बाल कहानियों को जोड़कर एक फिल्म भी निर्माणाधीन है। मामराज शर्मा बाल साहित्य में कविता व कहानी लेखन में विशेष रुचि रखते हैं।

बाल साहित्य की अभी कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई है, लेकिन इनकी बाल रचनाएं देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। शेर सिंह जी कुल्लू से हैं और प्रौढ़ साहित्य के साथ इन्होंने बाल साहित्य लेखन बराबर किया है। बाल साहित्य में इनका मुख्य लेखन बाल कहानी, कविता है। इनकी बाल रचनाएं पूर्व में देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। यशवीर धर्माणी जी ने बाल साहित्य में बाल कविता और कहानियां रची हैं। ‘चिकने घड़े’ इनका बाल कहानी संग्रह है।

बाल साहित्यकार हरिकृष्ण मुरारी कांगड़ा जिले से संबंध रखते हैं। बालोपयोगी साहित्य में इनका लेखन मुख्यतः बाल कहानी पर है। इनकी पुस्तक ‘मीठी यादें’ (कहानी संग्रह) में लोक कथाओं से प्रेरित कहानियां शामिल हैं। इनकी एक अन्य लोककथा की पुस्तक (पहाड़ी में) प्रकाशनाधीन है।                      -क्रमशः


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