आज के अक्स में मुंबई: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार Sep 25th, 2020 8:05 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

आम आदमी के मामले में केस कितना ही मजबूत क्यों न हो, उसे न्याय दिलाना बहुत महंगा है। सुशांत सिंह राजपूत का केस भी उलझनों में फंसा रहा। अगर बिहार सरकार ने केंद्रीय एजेंसी से जांच का आग्रह न किया होता, केंद्र इस बात से सहमत न हुआ होता, तो इस मामले में भी पीडि़त पक्ष को न्याय दिला पाना कठिन हो जाता। इस केस से हमारी जांच प्रणाली में कमियां तथा पुलिस प्रणाली  की केस को और ही रंग दे देने की गलत भूमिका भी सामने आई है। इस केस में डाक्टरों ने भी अपनी भ्रष्ट भूमिका निभाई। उन्होंने पोस्टमार्टम में देरी की तथा उचित तरीके से जांच नहीं की, यहां तक कि डैथ डेट का संकेत भी नहीं किया गया है। अब केस केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय तथा नारकोटिक्स ब्यूरो में है…

कंगना रणौत का यह कहना कि मुंबई पाक अधिकृत कश्मीर की तरह क्यों लगती है, इससे कई लोगों को दुख हुआ होगा, लेकिन इस कथन में बदलाव के गहरे दर्द छिपे हैं। मुंबई सपनों का एक शहर था जो न्यूयार्क की तरह कला व संस्कृति में मेधाओं को अपनी ओर आकर्षित करता था। इससे तुलना करते हुए मुंबईकर दिल्ली को क्लर्कों का नगर कहते हैं। मैंने अपने जीवन का अधिकतर समय दिल्ली में बिताया और मैंने अपने सपनों को संगठन निर्माण में अनुभव किया। इन तीन दशकों के दौरान दिल्ली ने अपना रंग बदला और यह अब क्लर्कों की नगरी नहीं है जैसा कि मुंबई के लोग उपहास उड़ाते हैं। यह अब संस्कृति और कारोबार विकास की नगरी बन गई है। दूसरी ओर सपनों की नगरी गैंगस्टर की नगरी बनकर नशीली दवाओं तथा बड़े स्तर के अपराध की नगरी बन गई।

इसका एक बड़ा भाग फिल्मी दुनिया के आसपास उभरा जिसने न केवल लैंगिक स्वतंत्रता दी, बल्कि ड्रग क्राइम आपरेशंज के लिए कल्पना भी दी। दाऊद इब्राहिम ने इसे अपराध, गैंग वॉर तथा नशीले पदार्थों की पहचान दी। यहां तक कि अब भी उसकी छाया नगरी का पीछा करती है। दो हत्याओं, जिसे फिल्मी शख्सियतों की आत्महत्या कहा जा रहा है, के कारण यह महानगर देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। साथ ही महानगर की पुलिस की कार्यशैली भी चर्चा का विषय बनी हुई है। अद्भुत रूप से इन हत्याओं ने दृश्य को हर रोज नए आयामों के रूप में पलट दिया है। यह कहानी एक-दूसरे से जुड़ी दो फिल्मी हस्तियों की आत्महत्या से शुरू हुई। बिना किसी कारण के ये आत्महत्याएं हुईं। अब यह मामला दोहरी हत्या का केस बनता जा रहा है। हालांकि इस मामले में अंतिम निष्कर्ष अभी आना बाकी है। इस प्रक्रिया में इन चमकती प्रतिभाओं के जीवन से जुड़े कई अज्ञात आयाम बाहर निकल कर आए। इस प्रक्रिया में मैं चाहता हूं कि सरकार की भूमिका सामने आए तथा विभिन्न आयामों के बाकी हिस्से अगले ‘नेरेटिव’ के लिए छोड़ दिए जाएं।

दो फिल्मी हस्तियों ने आत्महत्याएं की अथवा उनकी हत्या की गई, यह पहलू महत्त्वपूर्ण है। इस बात की जांच मुंबई पुलिस को प्रोफेशनल तरीके से करनी चाहिए थी क्योंकि उसकी छवि स्काटलैंड यार्ड की पुलिस की तरह अच्छी है। मैं सोचता हूं कि मामले को समझने के लिए कूंजी दिशा की मृत्यु में निहित है। वह पहले सुशांत सिंह राजपूत के लिए मैनेजर के रूप में काम करती थी। उसी के साथ काम करने वाले रोहिन राय से शादी करने का फैसला करने के बाद उसने यह नौकरी छोड़ दी। उसे एक लेट नाइट पार्टी के लिए बुलाया गया था। उसके साथ उसके पति व चार अन्य लोग भी थे। कोई नहीं जानता कि इसके बाद क्या हुआ कि दिशा ने 14वें फ्लोर से कूद कर जान दे दी। पुलिस, जो कि विश्व स्तरीय दर्जे का दावा करती है, आज तक यह नहीं जान पाई कि रोहन राय, जो गायब हो गया, वह कहां है। वह 14वीं मंजिल से गिरने के 25 मिनट बाद नीचे आता है। अगले दिन अंत्येष्टि के लिए संदेश भेजता है, जबकि शव का पोस्टमार्टम भी अभी तक नहीं हुआ होता। चार लोग, जो उससे बलात्कार करते हैं, मिलते नहीं हैं। थोड़े ही समय में केस को आत्महत्या का नाम दिया जाता है। दो दिनों के बाद पोस्टमार्टम होता है तथा शव पर कोई दावा नहीं करता है। शव को बिना कपड़ों के दिखाया जाता है और लगता है कि यह सब कुछ एक हादसे के कारण हुआ। कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है। अब यह साफ हो चुका है कि जो कुछ हुआ तथा दिशा कैसे मरी, इसका एकमात्र चश्मदीद गवाह रोहन है, जो कि आठ अगस्त से लापता है। करीब एक माह लापता हुए हो गए हैं। ऐसे मामलों में संविधान का संघवाद दाव पर है, जहां सत्तारूढ़ सरकार केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार से संबंधित नहीं होती।

संविधान में व्यवस्था है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो मात्र राज्य सरकार के आग्रह पर ही जांच करेगा, क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है। शिव सेना के नेतृत्व वाली राज्य सरकार इस मामले की जांच केंद्रीय एजेंसी को सौंपने के खिलाफ है। बिहार से संबंधित सुशांत सिंह राजपूत के अभिभावकों का सौभाग्य है कि उन्होंने इस मामले में बिहार में केस दर्ज किया और बिहार सरकार ने इस मामले में जांच का जिम्मा केंद्रीय एजेंसी को सौंपने का आग्रह किया। जब जांच के लिए बिहार पुलिस मुंबई गई तो उसे महामारी के नाम पर क्वारंटाइन कर दिया गया। जैसे कि यही काफी नहीं था, मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा जिसने इस मामले का योग्यता के साथ निपटारा किया तथा सीबीआई ने केस को अपने हाथ में ले लिया। सवाल यह है कि अगर आम आदमी के साथ इस तरह की घटना हो जाए, तो क्या उसे न्याय मिल पाएगा।

आम आदमी के मामले में केस कितना ही मजबूत क्यों न हो, उसे न्याय दिलाना बहुत महंगा है। सुशांत सिंह राजपूत का केस भी उलझनों में फंसा रहा। अगर बिहार सरकार ने केंद्रीय एजेंसी से जांच का आग्रह न किया होता, केंद्र इस बात से सहमत न हुआ होता, तो इस मामले में भी पीडि़त पक्ष को न्याय दिला पाना कठिन हो जाता। इस केस से हमारी जांच प्रणाली में कमियां तथा पुलिस प्रणाली  की केस को और ही रंग दे देने की गलत भूमिका भी सामने आई है। इस केस में डाक्टरों ने भी अपनी भ्रष्ट भूमिका निभाई। उन्होंने पोस्टमार्टम में देरी की तथा उचित तरीके से जांच नहीं की, यहां तक कि डैथ डेट का संकेत भी नहीं किया गया है। अब केस केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय तथा नारकोटिक्स ब्यूरो के हाथ में है। इस मामले को अगर कंगना रणौत तथा अर्नब गोस्वामी ने प्रमुखता के साथ नहीं उठाया होता, तो यह केस गुमनामी के अंधेरों में कहीं खो जाता। अब इस केस में नए खुलासे होने की संभावनाएं हैं तथा कई आपराधिक चेहरों से नकाब हट जाने की उम्मीदें हैं। जब इस केस की अंतिम कहानी लिख ली जाएगी, तो इस पर एक फिल्म बनाने की भी पूरी संभावनाएं हैं। बहरहाल, सबसे महत्त्वपूर्ण मसला यह है कि सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत का खुलासा होना चाहिए तथा उसके अभिभावकों को न्याय मिलना चाहिए। यह मामला अब आत्महत्या से हत्या की ओर बढ़ता जा रहा है, इसमें सच्चाई क्या है, यह जनता के सामने आना ही चाहिए। इस मामले में न्याय होना ही चाहिए, तभी सुशांत के चाहने वालों को शांत किया जा सकता है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App