शिव सेना से टक्कर लेती कंगना: कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार

By: कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार Sep 19th, 2020 8:08 pm

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

कंगना रणौत ने शिव सेना की उसी धुएं की चादर पर फूंक मार दी थी। यह चादर उड़ गई तो शिव सेना क्या करेगी? इसलिए शिवसेना अपनी उस चादर को बचाने के लिए जी जान से लगी हुई है। लेकिन शायद फिल्मी जगत में भी हड़कंप मच गया है कि एक बार बात उठेगी तो दूर तक जाएगी। खासकर जब हल्ला मचाने वाला कोई भीतर का आदमी हो तो खतरा और भी बढ़ जाता है। कंगना तो भीतर की ही है। इसलिए फिल्मी जगत के लोग भी मैदान में निकल आए हैं…

अंततः शिव सेना अपने असली रूप में प्रकट हो ही गई। शिव सेना संदेह के घेरे में तब आई जब उसकी सरकार ने सुशांत सिंह राजपूत की हत्या/आत्महत्या के मामले में असाधारण रुचि ली और इस मामले में कोई पृथम दृष्ट्या रपट दर्ज नहीं की। जब हत्या/आत्महत्या के प्रश्न को लेकर संदेह के घेरे बढ़ने लगे तो शिव सेना के लोग जिद करने लगे कि यह आत्महत्या का मामला ही माना जाना चाहिए। उनकी इस जिद से संदेह का धुआं और गहराने लगा। ऐसे समय में धुएं को साफ करने की जरूरत थी। लेकिन शिव सेना की सरकार उसी धुएं में छिपने लगी। बेबी पेंग्विन की तलाश मुंबई की गर्मी में इसी कारण से होने लगी थी। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि फिल्म जगत से जुड़े लोग अपने ही एक साथी की हत्या/आत्महत्या के मामले में चुप्पी साध गए थे। वैसे कुछ लोग यह भी कहने लगे कि मुंबई के फिल्म जगत में तो नायिकाओं द्वारा हत्या/आत्महत्या किया जाना आम बात है। आंकड़ों में रुचि लेने वालों ने प्रवीण बॉबी, जिया खान, श्री देवी जैसे कई नाम इकट्ठे भी करने शुरू कर दिए। इस बार पुरुष अभिनेता की हत्या/आत्महत्या का मामला था, लेकिन चुप्पी पूर्ववत ही थी। परंतु हिमाचल के दूरस्थ क्षेत्र मनाली से एक अभिनेत्री कंगना रणौत ने यह चुप्पी तोड़ कर सभी को चौंका दिया। अभिनय के क्षेत्र में कंगना ने अपने परिश्रम से फिल्म जगत में अपनी खास जगह बनाई है। नायक प्रधान फिल्मों के स्थान पर नायिका प्रधान फिल्मों के प्रचलन में कंगना का नाम सबसे ऊपर आता है। कंगना ने सुशांत सिंह राजपूत की हत्या/आत्महत्या को लेकर निष्पक्ष जांच की मांग कर दी। उसका एक कारण शायद यह भी था कि राजपूत ने भी कंगना की ही तरह एक  साधारण मध्यवर्गीय परिवार से निकल कर मुंबई की माया नगरी में अपने लिए स्थान बनाया था।

निष्पक्ष जांच की जरूरत इसलिए भी थी कि क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस इस मामले में बिहार पुलिस की जांच में सहायता करने की बजाय उसके अधिकारियों को क्वारंटाइन के बहाने बंदी बना रही थी। उस वक्त शायद कंगना को भी अंदाजा नहीं होगा कि जांच की उसकी यह मांग महाराष्ट्र सरकार के भीतर की अंधेरी गलियों को नंगा कर देगी। शिव सेना में तो एक प्रकार से हाहाकार ही मच गया। शिव सेना ने तो खुलेआम ऐलान कर दिया कि कंगना मुंबई में घुसने की हिम्मत न करे। सभी हैरान थे कि बात तो सुशांत राजपूत की हत्या/आत्महत्या की जांच की हो रही थी, इसका शिवसेना से ताल्लुक था। उससे भी ज्यादा इसका कंगना के मुंबई में आने से क्या लेना-देना है? तभी संदेह होने लगा था कि सुशांत सिंह राजपूत की हत्या/आत्महत्या का मामला इतना सीधा नहीं था जितना मुंबई पुलिस उसे बताने की कोशिश कर रही थी। लेकिन तब भी राजपूत का नाम सुनते ही आखिर शिवसेना क्यों भड़कती है? शिव सेना की इसी घबराहट में शिव सैनिकों ने कंगना के पुतले जलाने शुरू कर दिए। सेना के प्रवक्ता तो कंगना को चुनौती तक देने लगे कि वह मुंबई में एक बार आकर तो दिखाए। तब कंगना ने पूछ ही लिया कि मुंबई क्या पीओके है? शिव सेना के नेता कंगना को हरामखोर तक कहने लगे।

शिव सेना दो तरफ से घिर रही थी। सुशांत राजपूत की हत्या/आत्महत्या के मामले में शिव सेना पर भी संदेह की उंगलियां उठने लगी थीं। यह मामला तब और गहरा गया जब शरद पवार के पौत्र पार्थ ने कहा कि अब तो बेबी पैंग्युन गया। दूसरी ओर मुंबई में शिव सेना के आतंक को पहली बार चुनौती मिल रही थी। दरअसल आज तक शिव सेना ने मुंबई में बल का प्रयोग करके वहां अपना दबदबा बनाए रखा है। मातोश्री में जाकर मस्तक नवा देने से मुंबई में कुछ भी करने का एक प्रकार से लाइसेंस मिल जाता था। इतना ही नहीं, नामी हस्तियों को डरा-धमका कर मातोश्री में आने पर विवश किया जाता था। सुनील दत्त का बेटा भी मातोश्री की परिक्रमा करके अभय हो गया था। महानायक बच्चन भी मातोश्री में जाकर ही विवादों से बचे थे। मातोश्री के पास यह शक्ति कहां से आती थी? यह उन्हीं से मिलती थी जो गलियों में कंगना के पोस्टर जला रहे थे। अभी तक फिल्म जगत मातोश्री की परिक्रमा करके अपने पोस्टर जलवाने से बचा रहता था और निश्चिंत होकर दुबई में नाच-गाना करता रहता था। दुबई में नाच-गानों का आयोजन कौन करता था, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। माफिया गैंग से लेकर दहशतगर्दों की कर्मस्थली वही है। किसी को मातोश्री का वरदहस्त मिलता था और किसी को दुबई वालों का आश्रय मिलता था। जो इन दोनों के बीच में झूलते थे, उनको या तो मार कर पंखे से लटका दिया जाता था या फिर वे खुद ही झूलने के लिए विवश हो जाते थे। कंगना रणौत ने इसी पर सवाल उठा दिया था। जिन लोगों का अस्तित्व  भय के कारण ही टिका होता है, वे हर हालत में यह कोशिश करते रहते हैं कि उनके भय की चादर को कोई भेद न दे। क्योंकि यह धुएं की चादर होती है जो थोड़े से प्रयास से समाप्त हो जाती है।

कंगना रणौत ने शिव सेना की उसी धुएं की चादर पर फूंक मार दी थी। यह चादर उड़ गई तो शिव सेना क्या करेगी? इसलिए शिवसेना अपनी उस चादर को बचाने के लिए जी जान से लगी हुई है। लेकिन शायद फिल्मी जगत में भी हड़कंप मच गया है कि एक बार बात उठेगी तो दूर तक जाएगी। खासकर जब हल्ला मचाने वाला कोई भीतर का आदमी हो तो खतरा और भी बढ़ जाता है। कंगना तो भीतर की ही है। इसलिए फिल्मी जगत के लोग भी मैदान में निकल आए हैं। जया बच्चन तो खुल कर सामने आ गई है। उसने कहा कि जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो। जया ने बात तो ठीक कही है। जिनकी थाली उधार की हो वे छेद करने से बचेंगे ही। क्योंकि जिसने थाली उधार ली होती है वे उसमें छेद कर ही नहीं सकते। लेकिन कुछ लोग मायानगरी में उधार की थाली में नहीं खाते बल्कि अपनी मेहनत से अपनी थाली का निर्माण करते हैं। जब आसपास की उधार की थालियों से मेहनत की थाली में गंदगी आने लगे तो मेहनती आदमी अपनी थाली की सफाई करता है और गंदी थालियों में छेद करता है ताकि वहां से गंदगी निकल जाए। कंगना कहीं ऐसा ही तो नहीं कर रही? शिव सेना ने तो अपनी औकात बता ही दी है। खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे। उसने बीएमसी को कह कर कंगना रणौत का कार्यालय तोड़ दिया है। कभी पंजाब के पुलिस प्रमुख रहे रिबैरो पक्की उम्र में एक कदम और आगे निकल गए। उन्होंने कहा कि ड्रग्स की क्या बात है, यदि उसी को आधार बनाया जाए फिर तो सारी फिल्म इंडस्ट्री घेरे में आ जाएगी। कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं, गाते-गाते लोग रोने लगे हैं। लेकिन सारे गिरोहों से अलग अकेली कंगना रणचंडी बन कर खड़ी है। यह पहाड़ की मिट्टी है।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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