श्री कृष्‍ण सतोत्रम्

By: Sep 12th, 2020 12:21 am

-गतांक से आगे…

मायाप्रपञ्चदूराय नीलाचलविहारिणे।

माणिक्यपुष्परागाद्रिलीलाखेलप्रवर्त्तिने॥ 18॥

मायाप्रपञ्च (की परिधि) से दूर रहने वाले, नीलाचल (जगन्नाथ पुरी)में विहार करने वाले तथा माणिक्य एवं पुष्पराग के अद्रि की लीला आदि खेलों को करने वाले कृष्ण को नमस्कार है॥ 18 ॥

चिदन्तर्यामिरूपाय ब्रह्मानन्दस्वरूपिणे।

प्रमाणपथदूराय प्रमाणाग्राह्यरूपिणे॥ 19॥

चित् रूप से अंतरात्मा में रहने वाले, ब्रह्मानंद स्वरूप, प्रत्यक्षादि प्रमाणों से न जाने जाने वाले, अतः अनुमान आदि प्रमाण पथ से विज्ञेय कृष्ण को नमस्कार है॥ 19 ॥

मायाकालुष्यहीनाय नमः कृष्णाय शम्भवे।

क्षरायाक्षररूपाय क्षराक्षरविलक्षणे॥ 20॥

माया की कालिमा से विहीन, कल्याण करने वाले कृष्ण को नमस्कार है। क्षर (अनित्य) और अक्षर (नित्य) स्वरूप वाले तथा क्षर एवं अक्षर से भी विलक्षण (गुणातीत एवं अनंत) स्वरूप वाले कृष्ण को नमस्कार है॥ 20 ॥

तुरीयातीतरूपाय नमः पुरुषरूपिणे।

महाकामस्वरूपाय कामतत्त्वार्थवेदिने॥ 21॥

तुरीय से अतीत रूप वाले एवं पुरुष रूप वाले कृष्ण को नमस्कार है। महान काम स्वरूप वाले एवं काम तत्त्व के अर्थ के ज्ञाता कृष्ण को नमस्कार है॥ 21 ॥

-क्रमशः


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