श्रीकृष्ण स्तोत्रम

By: Sep 5th, 2020 12:28 am

-गतांक से आगे…

वेदाद्यगमरूपाय वेदवेद्यस्वरूपिणे।

अवाङ्मनसविषयनिजलीलाप्रवर्त्तिने॥ 14॥

वेद आदि आगमरूप वाले, वेद से ही जाने जाने वाले, अंतरमन के विषय तथा निज लीला का स्वयं प्रवर्तन करने वाले कृष्ण को नमस्कार है॥ 14 ॥

नमः शुद्धाय पूर्णाय निरस्तगुणवृत्तये।

अखण्डाय निरंशाय निरावरणरूपिणे॥ 15॥

शुद्ध, पूर्ण, गुणों की वृत्ति से निरस्त, अखण्ड,

निरंश तथा आवरण रहित रूप वाले कृष्ण को नमस्कार है॥ 15 ॥

संयोगविप्रलम्भाख्यभेदभावमहाब्धये।

सदंशविश्वरूपाय चिदंशाक्षररूपिणे॥ 16॥

संयोग एवं विप्रलम्भ नामक शृंगार रस के भेदों के भाव के महासमुद्र, सत् अंश से विश्वस्वरूप और चित अंश से युक्त अक्षररूप वाले (नित्य) कृष्ण को नमस्कार है॥ 16॥

आनन्दांशस्वरूपाय सच्चिदानन्दरूपिणे।

मर्यादातीतरूपाय निराधाराय साक्षिणे॥ 17॥

आनन्द के अंश के स्वरूप वाले, इस प्रकार सत, चित तथा आनन्द स्वरूप वाले, मर्यादा से भी अधिक रूपवाले, निराधार एवं (सर्व कार्य के) साक्षी कृष्ण को नमस्कार है॥ 17॥


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