शरीर बंधन से छूटना

By: Sep 12th, 2020 12:20 am

 स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

श्रीरामकृष्ण जंयती के दिन सभी भक्तों, शिष्यों और श्रद्धालुओं के मुख पर आनंद के स्थान पर विषाद की छाया दिखाई दी। स्वामी जी आज लोगों के बीच जा नहीं पाए थे। स्वामी जी की बीमारी की वजह से सभी लोग काफी चिंतित थे। पूरा मठ भक्तों से भरा हुआ था। कहीं कीर्तन हो रहा था, तो कहीं प्रसाद बांटा गया था।

स्वामी जी को बाहर का सारा हाल बता दिया जाता था। भगिनी निवेदिता कुछ अंग्रेज महिलाओं को साथ लेकर मठ के दर्शन के लिए आईं, लेकिन स्वामी जी की बीमारी को सुनकर थोड़ी देर बाद ही लौट गई। स्वामीजी की देखभाल कर रहे श्री शरदबाबू बाहर जाकर उत्सव को देखकर आए और उन्होंने स्वामी जी को बताया के कोई पचास हजार लोग एकत्र हुए हैं। इकट्ठा हुए लोगों को देखने के लिए स्वामी जी ने खिड़की से बाहर झांका, फिर वापस जाकर अपनी चारपाई पर लेट गए। दिन धीरे-धीरे बीतने लगे। स्वामी जी ने फिर शिष्यों के साथ अपना समय देना शुरू कर दिया। जून के शुरू में स्वामी जी ने मठ और मिशन के संबंध में उदासीन वृत्ति धारण कर ली। गुरुभाई इस भाव परिर्वतन से चिंतित हो उठे।

उन्हें श्री रामकृष्ण देव का यह कहना याद था कि वह जब आत्मा-साक्षात्कार में प्रवृत्त होगा, तो शरीर बंधन से छूट जाएगा। इन दिनों उनके सारे रोगों का भी शमन हो गया था। देह त्याग से एक सप्ताह पूर्व स्वामी जी ने स्वामी शुद्धानंद जी को एक पंचांग लाने को कहा। उन्होंने पंचांग को देखा और रख दिया। उनके मुख का भाव देखकर ऐसा लगता जैसे कोई मुहूर्त देख रहे हैं। देह त्याग से तीन दिन पहले स्वामी मठ के मैदान में घूमते रहे। सम्प्रति जिस स्थान पर उनका स्माधि मंदिर बना है, उसे तर्जनी दिखाते हुए उन्होंने कहा, मेरा देहांत होने पर उस स्थान पर मेरा अंतिम संस्कार करना। किसी से कुछ ज्यादा पूछते नहीं बना।

सुनकर सब मौन ही खड़े रह गए। उस दिन बुधवार एकादशी की तिथि को स्वामी जी का व्रत था। दोपहर का भोजन उन्होंने खुद परोसा और सभी को भोजन कराया। चेहरा खूब प्रसन्न था। उन्हें देखकर सभी खुश थे। स्वामी जी ने पहले सबके हाथ धुलाए फिर तौलिया हाथ पौंछने के लिए दिया। एक शिष्य ने उठकर पूछा, यह आप क्या कर रहे हैं। भला आपसे हम अपनी सेवा कराएंगे। उन्होंने माधुर्य से उत्तर दिया क्या ईसा मसीह ने अपने शिष्यों के पैर नहीं धोए थे? शिष्य फौरन ही कहता कि वह उनका अंतिम दिन था, लेकिन वह कह नहीं पाया था। 4 जुलाई, 1902 की सुबह रोजाना की तरह आज स्वामी जी सम्मिलित ध्यान में उपस्थित नहीं हुए थे। दूसरे दिन शनिवार और अमावस्या तिथि थी, इसलिए उन्होंने मठ में काली पूजा करने की इच्छा जाहिर की।     -क्रमशः


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