वीर योद्धा और कला प्रेमी महाराजा संसार चंद जी

By: Sep 5th, 2020 12:24 am

गतांक से आगे…

जैसे पहाड़ी कला को नारी सुषमा कला कहा जाता है, जो प्रभु राधा कृष्ण के प्रेम का आधार मानकर बनवाई गई थी। लेखक मोहीनद्दीन मैं अपनी किताब तारीख ए पंजाब में लिखा है कि महाराजा संसार चंद जी अपार गुणी एवं पारखी होने के कारण प्रजा उन्हें, हातिम और उदारता और साहसी बादशाह कहकर पुकारती थी। लेखक बेडेन पावेल लिखते हैं कि महाराजा के दरबार में सर्वाधिक निपुण कलाकार परखु के साथ बासिया, लक्ष्मण दास, पवन, गुलाबू राम और गुलेर से बुलाए हुए कई निपुण कलाकार कार्य कर रहे थे।

अंग्रेज लेखक मुर क्राफ्ट लिखते हैं कि महाराजा जी से उन्हें आलमपुर महल में भेंट करने का मौका मिला था। महाराजा को चित्रकारी से बहुत ही ज्यादा लगाव था, उनके दरबार में अनेक चित्रकार काम कर रहे थे। महाराजा जी की दिनचर्या बहुत ही नियमित थी, वे प्रातः जल्दी उठ कर पूजा-अर्चना करते थे और सायं नियमित रूप से गायन व नृत्य का आनंद लेते थे। नृत्य गायन भगवान कृष्ण जी की लीला तथा ब्रज के पदों पर ही आधारित होता था और विदाई के समय महाराजा जी ने उन्हें अलेक्जेंडर की तस्वीर भेंट में दी थी। ऐसे भी कटोच वंश का जिकर अलेक्जेंडर के युद्ध रिकार्ड्स में भी आता है। कटोच वंश के महाराजा का पोरस, जो महाराजा परमानंद चंद कटोच थे, जिन्होंने सिकंदर की सेना को भारत से पीछे लौटने के लिए विवश कर दिया था, उस समय उनका राज्य चेनाब नदी से लगे क्षेत्रों में था। महाराजा संसार चंद जी ने अपना पूरा जीवन सांस्कृतिक गतिविधियों और प्रजा के कल्याण के लिए समर्पित किया था। उन्होंने प्रजा कल्याण हेतु कई कार्य करवाए, जिनमें पालमपुर, हमीरपुर, कांगड़ा में पीने का और खेती के लिए पानी की योजना बनाकर वितरण करना, कई मंदिरों, महलो, किलो, बागों का निर्माण करवाया था। उन्होंने कौशल कला एवं शिल्प को प्रगति में लाने के लिए 36 वर्कशॉप बना कर बहुत बड़ी शुरुआत की थी। सभी त्योहारों को खासकर होली को अपनी प्रजा के साथ धूमधाम से मनाते थे। 1823 में उनका देहांत हो जाने के बाद कांगड़ा चित्रकला धीरे-धीरे विलुप्त होती गई। कुछ कलाकारों ने इस कला को जीवित रखने के लिए योगदान भी किया है। फिर भी सरकार की तरफ  से कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए, जिस कारण इस कला का तकरीबन अंत हो चुका है। महाराजा संसार चंद जी का शासन काल 1775-1820 हर क्षेत्र में खुशहाली भरा रहा था उस समय को आज भी स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता है। पंजाब की तारीख में बारह सिख मिस्लदारो की संयुक्त सेना और महाराजा संसार चंद की सेना का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। किसी समय यह राज्य सतलुज एवं रावी नदियों के बीच फैला हुआ था, किंतु मुस्लिम सल्तनत का विस्तार हो जाने से राज्य केवल कांगड़ा की पहाडि़यों तक ही सीमित रह गया था। महाराजा संसार चंद जी के दादा महाराजा घमंड चंद कटोच अपने शासनकाल में सन् 1750 से जालंधर और 11 पहाड़ी राज्यों के गवर्नर रहे थे। गुलेरिया, गंगालिया, गदोहिया, जडोत, जसवान, सावैया, गढ़वाल, धलोच आदि सभी कटोच वंश की शाखाएं हैं।

इस वंश का जिक्र महाभारत में भी इस वंश के 234वें राजा सुशर्मा चंद का नाम आता है। ब्रह्मम पुराण के अनुसार कटोच वंश के मूल पुरुष महाराजा भूमि चंद जी माने जाते हैं। हमारे देश के कई राज्यों में अपने महान शासकों की प्रतिमाओं का अनावरण क्या है और उनकी पुण्यतिथि पर उनके गौरवपूर्ण जीवनी को याद आने वाली नई पीढ़ी को बताते हैं, लेकिन हमारे प्रदेश में ऐसा नहीं हो पाया है। हमारे प्रदेश में भी ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए, क्योंकि महाराजा संसार चंद जी ने भारतीय चित्रकला के इतिहास में अपने प्रदेश को ही नहीं, बल्कि अपने देश को विश्व मानचित्र पर इस कला से भारतीय संस्कृति को पहचान दिलवाने का जो महान योगदान दिया था, आज उसे भुला देना कहां तक सही होगा। हमें अपने बहुमुखी प्रतिमा के धनी महान प्रतापी जनसेवक जिन्होंने हर संप्रदायों में भाईचारे और प्रेम का संदेश दिया, ऐसे  महान महाराजा को याद कर उसकी गौरव गाथाओं को आने वाली पीढ़ी को देखकर याद आ जाए, उसके लिए सरकार को विशेष कदम उठाने चाहिए।

                     -मनवीर चंद कटोच, पालमपुर


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