2 प्लस 2 समझौता

By: Oct 29th, 2020 12:06 am

जब भारत और अमरीका के दो रक्षा मंत्री तथा दो विदेश मंत्री मुलाकात कर रणनीतिक मुद्दों पर बात करते हैं, तो उसे 2 प्लस 2 संवाद का नाम दिया जाता है। इससे पहले दो बैठकें 2018 और 2019 में हो चुकी हैं। अब तीसरे चरण का संवाद सम्पन्न हुआ है, जो अधिक ठोस, संरचनात्मक और रणनीतिक माना जा सकता है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमरीकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर के साथ और विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के साथ विभिन्न मुद्दों पर संवाद कर एक साझा सहमति स्थापित की। चारों मंत्रियों ने साझा बयान भी दिया। भारत की दृष्टि से मौजूदा 2 प्लस 2 संवाद अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस बार बुनियादी आदान-प्रदान एवं सहयोग समझौते (बेका) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। बेका ऐसे बुनियादी समझौतों में एक है, जिस पर अमरीका चाहता है कि उसका प्रत्येक रणनीतिक साझेदार हस्ताक्षर करे। बेका के मुताबिक भारत और अमरीका की सेनाएं भू-स्थानिक सूचनाएं साझा कर सकती हैं। अमरीका का यह चौथा ऐसा समझौता है। यह समझौता शांतिकाल और युद्धकाल दोनों ही स्थितियों में लागू रहेगा।

 कारगिल युद्ध के दौरान हमें अमरीका का ऐसा सहयोग नहीं मिला था और हमारे जीपीएस बंद कर दिए गए थे। हालांकि उसके बाद रक्षा क्षेत्र में अमरीका के साथ ‘लेमोआ’ और ‘कोमकासा’ समझौते भी हुए हैं। इस बार भारतीय पक्ष का सशक्त आग्रह था कि समझौता सार्वकालिक होना चाहिए। किसी भी युद्ध और हमले के मद्देनजर बेका की अहं भूमिका होगी। अमरीका पहले से ही भारत के साथ खुफिया और कुछ रणनीतिक सूचनाएं साझा करता रहा है, लेकिन अब सेटेलाइट इमेज, नक्शे, उच्च तकनीक, भू-स्थानिक और भौगोलिक जानकारियां भी साझा की जाएंगी। भारत मिसाइल के सटीक हमले के लिए अमरीकी डाटा का भी इस्तेमाल कर सकेगा। दोनों देशों की सेनाओं के बीच ऐसा समन्वय होगा कि युद्धाभ्यास की गुणवत्ता पर इसका गहरा और सकारात्मक असर पड़ेगा। हमारा एक नौसेना अधिकारी अमरीका की सेंट्रल कमांड में नियुक्त  होगा। यह कमांड बहरीन में स्थित है। इसी तरह अमरीका का एक सैन्य अधिकारी भारत स्थित इंटरनेशनल फ्यूजन सेंटर में मौजूद रहेगा, जहां हिंद महासागर में सभी जहाजों की सूचनाएं दर्ज होती हैं। भारत और अमरीका जमीन से समंदर और अंतरिक्ष तक रणनीतिक साझेदार बनना चाहते हैं, जिसकी शुरुआत बेका समझौते से हो चुकी है। बेशक अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप के कार्यकाल में भारत-अमरीका ज्यादा करीब आए हैं, विकास के पायदान पार किए गए हैं और दोनों एक साथ रणनीतिक मोर्चों पर सक्रिय हैं। मौजूदा परिदृश्य में चीन दोनों ही देशों का फोकस है। हालांकि अमरीकी रक्षा और विदेश मंत्रियों ने खुलेआम चीन को दुनिया के लिए खतरा माना है और भारत अपनी अखंडता की रक्षा के लिए खतरों से लड़ रहा है।

अमरीका भारत के साथ खड़ा है। दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र, दक्षिण चीन सागर, पूर्वी सागर, यानी समंदर में, चीन की आक्रामकता और वर्चस्व तोड़ना चाहते हैं। इस लड़ाई में जापान, ऑस्टे्रलिया, ब्रिटेन, कनाडा आदि देश भी उनके साथ मोर्चाबंद हैं। हालांकि समझौते में पृथ्वी विज्ञान, परमाणु सहयोग, आयुर्वेद और कैंसर के शोधार्थियों में आपसी सहयोग और आतंकवाद आदि मुद्दों का उल्लेख भी किया गया है, लेकिन चीन के विस्तारवादी रवैये से दोनों देश निपटना चाहते हैं और यही समझौते की प्रतिबद्धता भी है। अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव जारी है। टं्रप शासनकाल का यह अंतिम 2 प्लस 2 संवाद है, लेकिन रणनीतिक फैसला है, लिहाजा अमरीका में नया राष्ट्रपति कोई भी बने, यह समझौता निरंतर रहेगा। इसका विस्तार हो सकता है, कुछ संशोधन किए जा सकते हैं, लेकिन चीन की घेराबंदी जारी रहेगी, क्योंकि अमरीका के चीन के साथ हर तरह के रिश्ते बेहद तनावग्रस्त हैं। बेका समझौते के बाद चीन की आधिकारिक प्रतिक्रिया भी आई है कि अमरीका बीजिंग और क्षेत्र के देशों के बीच कलह के बीज बोना बंद करे। इससे क्षेत्र की शांति और स्थिरता प्रभावित होती है। हमारा मानना है कि खुद चीन को आत्ममंथन करना चाहिए कि एशिया के इन क्षेत्रों में तनाव और कलह के बीज किसने बोए हैं! बेशक चीन इस बदलते घटनाक्रम और समीकरणों को गंभीरता से देख रहा है, लिहाजा विश्लेषण भी कर रहा होगा! चीन घबराहट में लगता है। उसने सवाल किया था कि क्वाड में जो देश इकट्ठा हुए थे, क्या वह नाटो का एशियाई संस्करण तो नहीं बनाया जा रहा है? बहरहाल बेका के परिणाम दुनिया देखेगी। भारत कई संदर्भों में विश्व नेतृत्व का हिस्सा बन सकता है। अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता का भी समर्थन किया है। देखते हैं कि दोनों देश भविष्य की शांति और स्थिरता में कितनी सार्थक भूमिका निभा पाते हैं?


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