आत्मनिर्भर भारत का नया अवतार: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार Oct 9th, 2020 12:15 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

महात्मा गांधी आत्मनिर्भरता के महान पैरोकार थे जिसका अंतिम लक्ष्य राम राज्य का स्वप्न था। हालांकि गांधी के विचारों को जवाहर लाल नेहरू के नए नेतृत्व में कोई समर्थन हासिल नहीं हुआ क्योंकि नेहरू आधुनिक बुद्धिजीवी थे जो भारी उद्योग को निर्मित करना चाहते थे। यह श्रेय उन्हें जाता है कि उन्होंने स्टील, सीमेंट व हैवी इलेक्ट्रिकल में देश की आधारभूमि का निर्माण किया। यह विकास का समाजवादी मार्ग भी था तथा रूस ने विशेषकर भिलाई व बोकारो स्टील प्लांट के निर्माण में हमारी मदद की। ब्रिटिश दुर्गापुर तथा जर्मन राउरकेला ने भी इसी समय उभरना शुरू किया। मोदी ने एमएसएम में खिलौना निर्माण की चुनौती स्वीकार करने के लिए उद्यमियों को प्रेरित किया है। मैं हमेशा से इस बात से हैरान रहा हूं कि ऐसी चीजें हम स्वयं क्यों नहीं बना सकते, जबकि हम इन्हें चीन से खरीदते रहे हैं…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र की आर्थिकी व उद्योग को विकसित करने के लिए हमेशा नवाचारी रास्तों की तलाश में रहते हैं। जबकि कोरोना वायरस ने अधिकतर देशों की जीडीपी के एक-तिहाई हिस्से तक विश्व की आर्थिकी को नष्ट किया, इसी बीच राष्ट्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रोथ को विकसित करने के लिए नए रास्तों की खोज जारी है। यदि हम वैश्विक परिदृश्य को देखें तो पता चलता है कि जर्मनी पहले नंबर पर खड़ा देश है जिसने अपनी आर्थिकी को संरक्षण देने के लिए काफी बेहतर काम किया। इसने केवल ऐसी पाबंदियां प्रयोग की जैसे भारी इकट्ठ तथा जन समूह आदि। इसने ऐच्छिक आधार पर सामाजिक दूरी की इजाजत दी और देश ने इन दिशा-निर्देशों को इस तरह अपनाया कि उद्योग और सेवाओं की कार्यशैली किसी भी रूप में प्रभावित न हो। भारत के पास ऐसी आपदा से निपटने के लिए आधारभूत ढांचा नहीं था तथा उसे पूरी तरह लॉकडाउन के नियम को अपनाना पड़ा। चल रहे वायरस स्प्रैड के लिए उसने उपकरण और चिकित्सा कर्मी एकत्र करने के लिए अस्थायी ढांचा बनाया। कोरोना वायरस से मौत की दर में चूंकि अब इसके न बढ़ने के कारण स्थायित्व आया है, तो हम राहत की सांस ले सकते हैं तथा देश की आर्थिकी के पुनरुद्धार के बारे में सोच सकते हैं। प्रधानमंत्री ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अभियान चलाया हुआ है। आत्मनिर्भरता का मतलब यह है कि देश को वस्तुओं व सेवाओं के निर्माण के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर न होना पड़े तथा वह अपनी जरूरतों की वस्तुएं व सेवाएं खुद ऐजाद करे। आत्मनिर्भरता की अवधारणा का इतिहास लंबा है तथा अब यह नए अवतार के रूप में वापस आया है। प्रधानमंत्री का विचार है कि मध्यम व सूक्ष्म उद्योग (एमएसएम) में नया उद्यम निर्मित करने से विकास में योगदान मिलेगा। कोरोना वायरस के दौर में महामारी फैलने से एमएसएम को बहुत नुकसान हुआ है।

महात्मा गांधी आत्मनिर्भरता के महान पैरोकार थे जिसका अंतिम लक्ष्य राम राज्य का स्वप्न था। हालांकि गांधी के विचारों को जवाहर लाल नेहरू के नए नेतृत्व में कोई समर्थन हासिल नहीं हुआ क्योंकि नेहरू आधुनिक बुद्धिजीवी थे जो भारी उद्योग को निर्मित करना चाहते थे। यह श्रेय उन्हें जाता है कि उन्होंने स्टील, सीमेंट व हैवी इलेक्ट्रिकल में देश की आधारभूमि का निर्माण किया। यह विकास का समाजवादी मार्ग भी था तथा रूस ने विशेषकर भिलाई व बोकारो स्टील प्लांट के निर्माण में हमारी मदद की। ब्रिटिश दुर्गापुर तथा जर्मन राउरकेला ने भी इसी समय उभरना शुरू किया। अब हम बेसिक स्ट्रक्चर की जमीन पर खड़े होकर लार्ज मीडियम-स्माल इंडस्ट्री पर व्यापक रूप से निर्भर कर सकते थे, जो कि परंपरागत रूप से स्लो हाई कॉस्ट इंडस्ट्री नहीं होगी, बल्कि माडर्न क्वालिटी गुड प्रोड्यूसिंग इंडस्ट्री होगी। मोदी ने एमएसएम में खिलौना निर्माण की चुनौती स्वीकार करने के लिए उद्यमियों को प्रेरित किया है। मैं हमेशा से इस बात से हैरान रहा हूं कि ऐसी चीजें हम स्वयं क्यों नहीं बना सकते, जबकि हम इन्हें चीन से खरीदते रहे हैं। यहां हमारा चीन से मुकाबला आत्मनिर्भरता के विचार को पुष्ट करता है। हम पहले ही चीन से आयात कर रहे हैं जिसका परिणाम यह है कि इस गैप को भरने के लिए अपना सामान विकसित करने को हम बाध्य हैं। हम चीन से स्टेशनरी खरीदते हैं, पैन खरीदते हैं, महिलाओं के लिए हेयर पिन खरीदते हैं तथा यहां तक कि छोटी से छोटी चीज हम चीन से आयात करते हैं।

ऐसी चीजों के लिए दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता एक दिमागहीन निर्भरता है। कई बार हम यह भी देखते हैं कि दिवाली आदि त्योहारों पर बिकने वाली भगवानों व गुरुओं की मूर्तियां भी चीन में बनी होती हैं। अब यह स्पष्ट होने लगा है कि वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों में अमरीका को चीन से ऐसी चीजों का निर्यात कम हो जाएगा तथा इसमें लाभ कमाने वाले देश वियतनाम और ताईवान होंगे। भारत भी इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कर सकता है। फार्मास्यूटिकल के क्षेत्र में अमरीका की मांग को हम पहले ही 40 फीसदी तक पूरी कर रहे हैं। यह दिल को सुकून देने वाली बात है कि आईआईटी एलुमनी काउंसिल ने पहले ही आत्मनिर्भरता के लिए 21000 करोड़ रुपए के फंड की स्थापना कर दी है। आत्मनिर्भरता का मतलब केवल स्वयं पर निर्भर होने से नहीं है, बल्कि इसका मतलब यह भी है कि हम दूसरों पर निर्भरता से मुक्त हों। यह हमें प्रेरित करता है कि हम निर्यात के लिए प्रयास करें, देश के भीतर ही वस्तुएं व सेवाएं उत्पादित करें तथा उनका उपभोग करें और साथ ही जो हम उपभोग करते हैं, उसे दूसरे देशों को निर्यात भी करें। आत्मनिर्भर बनने के रास्ते में देश को जिस दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, वह यह है कि हम कई क्षेत्रों में क्वालिटी के मामले में पीछे हैं।

 एक अन्य दिन मेरे नए एयर कंडीशनर को कंपनी के रिटेलर से खरीदने के बाद तीन बार मरम्मत की जरूरत पड़ी। उन्होंने इसकी मरम्मत करने के लिए कुछ नहीं किया, जब तक कि मैंने प्रधानमंत्री को ट्वीट करके यह नहीं लिखा कि अगर हम क्वालिटी बनाकर नहीं रख सकते तो आत्मनिर्भर भारत का अभियान सफल नहीं होगा। मैं सोचता हूं कि हम सभी के लिए हाई क्वालिटी एक बड़ी चिंता होगी। वह नए अवतार में आत्मनिर्भर होगा। विश्व में प्रतिस्पर्धा करनी है तो हमें गुणवत्ता की ओर विशेष ध्यान देना ही होगा। हमें विविध वस्तुओं और सेवाओं को न केवल अपने लिए ऐजाद करना है, बल्कि विश्व के दूसरे देशों की जरूरतों को भी पूरा करना है। चीन से दूसरे देशों को निर्यात अब घट रहा है। ऐसे में भारत के पास मौका है कि वह इस अवसर का लाभ उठाए। दूसरे देशों की जरूरतों को पूरा करके हम एक सफल निर्यातक देश बन सकते हैं। निर्यात क्षेत्र में चीन की अनुपस्थिति का लाभ अगर हम उठा पाए, तो देश के विकास में यह मील का पत्थर साबित होगा।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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