बिहार में चुनाव कितने निर्णायक: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार Oct 30th, 2020 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

भाजपा का संगठन और टीम बढि़या तरीके से सामंजस्य के साथ काम कर रहे हैं। इस दल के नेता भी जनता से प्रभावकारी तरीके से संचार कर रहे हैं। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण लेते हैं। वह जब बिहार के किसी स्थान पर जनसभा को पहुंचते हैं तो जनता उनके हेलिकाप्टर का इंतजार कर रही होती है। वह चतुराई से बिहार पर आए चुनावी सर्वे का बखान करते हैं और कहते हैं कि बिहार के लोग मन से स्पष्ट हैं। उन्होंने एनडीए को सत्ता में बनाए रखने का मन बना लिया है तथा वे इसी गठबंधन को वोट का मन बना चुके हैं। परिणाम संभवतः उनकी भविष्यवाणी को प्रमाणित करेंगे, लेकिन ये समस्या को मुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त करने वाले ‘माइनोरिटी लीडर’ से संबंधित पाले में फेंक देंगे। नीतीश कुमार की रैलियों में उनके खिलाफ उभरी आवाजें उनकी घटती लोकप्रियता को प्रमाणित करती हैं…

वर्तमान में बिहार में जो चुनाव हो रहा है, वह देश के साथ-साथ जाति आधारित राजनीति के लिए काफी संवेदनशील है। यह संभावना कि जाति चुनाव के परिणाम तथा देश में सत्ता ग्रहण को निश्चित करेगी, जैसा कि आम तौर पर इस राज्य में विश्वास किया जा रहा है, नहीं लगती है। ऐसा अनुमान है कि जाति के ‘स्पैल और आईलैंड’ के बावजूद राष्ट्रवादी ताकतें जीत दर्ज करेंगी। पिछले चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार की विजय जातीय कारक के कारण कम थी, जबकि यह भाजपा नेतृत्व के प्रभाव के अधीन संयुक्त लड़ाई के कारण ज्यादा थी। आज राज्य में परिदृश्य ज्यादा संवेदनशील है, जबकि एक ओर राज्य अपने विकास के विपरीत आर्थिक और स्वास्थ्य कारकों के नीचे पिस रहा नजर आता है। किसी ने भी यह नहीं सोचा कि कोविड-19 के कारण उपजी विकट स्थितियों में चुनाव आयोग जोखिम लेने का जोखिम उठाएगा। लेकिन सरकार और आयोग ने आगे बढ़ने के लिए इस सुविचारित जोखिम को उठाया। 28 अक्तूबर से शुरू हो रहे चुनाव कई चरणों में पूरे होंगे तथा परिणामों की अंतिम घोषणा नौ नवंबर को हो जाएगी। इन चुनावों के बहुत ही महत्त्वपूर्ण परिणाम होंगे जो देश की राजनीति को भी जरूर प्रभावित करेंगे। सबसे पहले भाजपा आगे रहने तथा चुनाव परिणामों पर प्रभुत्व रखने के लिए एक अवसर के रूप में चुनाव लड़ रही है। लेकिन नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला जनता दल यूनाइटेड संभव है कि 20 फीसदी घाटे का आघात सहन करे, जबकि संभावित रूप से भाजपा दो दलों के गठबंधन का नेतृत्व करेगी। दूसरा महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम यह हो सकता है कि पिछले संसदीय चुनाव में केवल चार सीटें जीत कर कमतर प्रदर्शन करने वाला राष्ट्रीय जनता दल इस बार बेहतर कर सकता है।

संसदीय चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने छह, भाजपा ने 17 तथा जेडीयू ने 16 सीटें जीती थीं। वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस को मात्र एक सीट मिली थी। इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 71 तथा भाजपा ने 53 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने 80, जबकि कांग्रेस ने 26 सीटें जीती थीं। यह परिदृश्य स्पष्ट दिखाता है कि पिछले अवसरों के विपरीत कांग्रेस निम्नतर रैंक तक घट गई थी तथा उसने यहां तक कि विपक्ष में भी अपनी नेतृत्व स्थिति खो दी थी। केंद्र में कम से कम कांग्रेस विपक्ष में तो बड़ी पार्टी ही है। कांग्रेस का पतन देश में बड़ा विकासक्रम है। वह धीरे-धीरे अपना आधिपत्य खो रही है तथा बिहार में उसकी उपलब्धि, हालांकि सेकेंडरी पोजीशन में, दिल्ली में उसकी ताकत को शायद ही बढ़ा पाएगी। कांग्रेस के नेता वर्तमान में जो प्रचार कर रहे हैं, वह ज्यादा प्रभावकारी नहीं है तथा राहुल गांधी ऐसे वक्तव्य दे रहे हैं, जिन्हें मीडिया गंभीरता से नहीं ले रहा है। दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। वह न केवल जनता को, बल्कि मीडिया को भी प्रभावित कर रहे हैं। वह नीतीश कुमार की इसलिए तीव्र आलोचना कर रहे हैं क्योंकि वह युवाओं को काम व नौकरियां दिलाने में विफल रहे हैं।

इसके अलावा उनका यह भी आरोप है कि कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन के बीच बिहार को लौटते प्रवासी मजदूरों की समस्याओं से निपटने में भी नीतीश विफल रहे हैं। तेजस्वी यादव के अनुसार नीतीश कुमार अपनी ऊर्जा खोते जा रहे हैं तथा वह बिहार को संभाल पाने के योग्य नहीं हैं। घोटाले के कारण जेल में बंद लालू प्रसाद यादव के दोनों युवा पुत्र गठबंधन की कमान कुशलतापूर्वक संभाले हुए हैं तथा वह गठबंधन की रणनीति बनाने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप, जिनके बारे में यह माना जा रहा था कि वह समस्या पैदा कर सकते हैं, भी अपने भाई के लिए प्रचार कर रहे हैं और बताया जा रहा है कि वह सक्रिय रूप से सत्तारूढ़ पार्टी पर सियासी हमले कर रहे हैं। इस प्रश्न के जवाब में कि वह तब क्या करेंगे जब उनके भाई मुख्यमंत्री बन जाएंगे, वह कहते हैं कि बांसुरी बजाता रहूंगा। राष्ट्रीय जनता दल एक और सियासी खेल भी चतुराई से खेल रहा है। उसने लालू प्रसाद यादव को पृष्ठभूमि में रखा हुआ है तथा उनका ढिंढोरा नहीं पीटा जा रहा है। लालू के शासन में जो भ्रष्टाचार का राज रहा तथा अब उनके जेल में होने के कारण जो नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते थे, उनको न्यूनतम करने में भी राजद सफल रहा है। इसलिए यह दल लालू प्रसाद यादव के फोटो के साथ पोस्टर प्रदर्शित नहीं कर रहा है।

इस दल का प्रचार अभियान बढि़या तरीके से चल रहा है तथा तेजस्वी यादव प्रभावकारी तरीके से लोगों तक पहुंचने के लिए बढि़या काम कर रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा निःसंदेह सबसे ज्यादा सीटें जीतने के लिए कड़ा परिश्रम कर रही है तथा उसके जीतने की संभावना भी है। भाजपा का संगठन और टीम बढि़या तरीके से सामंजस्य के साथ काम कर रहे हैं। इस दल के नेता भी जनता से प्रभावकारी तरीके से संचार कर रहे हैं। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण लेते हैं। वह जब बिहार के किसी स्थान पर जनसभा को पहुंचते हैं तो जनता उनके हेलिकाप्टर का इंतजार कर रही होती है। वह चतुराई से बिहार पर आए चुनावी सर्वे का बखान करते हैं और कहते हैं कि बिहार के लोग मन से स्पष्ट हैं। उन्होंने एनडीए को सत्ता में बनाए रखने का मन बना लिया है तथा वे इसी गठबंधन को वोट का मन बना चुके हैं। परिणाम संभवतः उनकी भविष्यवाणी को प्रमाणित करेंगे, लेकिन ये समस्या को मुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त करने वाले ‘माइनोरिटी लीडर’ से संबंधित पाले में फेंक देंगे। नीतीश कुमार की रैलियों में उनके खिलाफ उभरी आवाजें उनकी घटती लोकप्रियता को प्रमाणित करती हैं। दूसरी ओर तेजस्वी यादव पुरानी व्यवस्था को चुनौती दे रहे युवा नेता के रूप में उभर रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है। कांग्रेस नीतीश कुमार की तरह नीचे की ओर जाएगी। कांग्रेस अपने पतन का सामना कर सकती है, अगर वह अपने लिए किसी प्रभावशाली नेता का चयन नहीं करती है। इस चुनाव के कई संभावित निहितार्थ होंगे। इंतजार अब चुनाव परिणामों का है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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