बिहार में जातिवाद बनाम राष्ट्रवाद: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

By: प्रो. एनके सिंह, अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार Oct 23rd, 2020 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

नीतीश कुमार कुर्मी नेता हैं, पिछड़े लालू के साथ हैं, चिराग पासवान अपनी जाति के साथ हैं। जीनत राम मांझी के पास जातीय टैग है तथा वह भाजपा से मिल गए हैं। वास्तविक लड़ाई भाजपा के लिए है जिसे जातिवाद के खिलाफ राष्ट्रवाद के लिए लड़ना है। उसे जातीय शासन के युगों पुराने प्राधान्य को तोड़ना है। भाजपा के सामने बिहार के साथ-साथ देश में भारतीयों और हिंदुओं को जोड़ने के लिए बड़ी लड़ाई है। नरेंद्र मोदी बिहार में 12 चुनावी रैलियां करेंगे। इस दौरान उनके साथ नीतीश कुमार भी साथ रहेंगे। वह मतदाताओं तक अपना संदेश देने के लिए कस्बों से गलियों तक प्रचार करेंगे। अभी तक की स्थिति में यह लगता है कि भाजपा ज्यादा वोट और ज्यादा सीटें हासिल करेगी। यह स्थिति महाराष्ट्र जैसी होगी जहां मुख्यमंत्री के पास बहुमत नहीं है…

यह अजीब विरोधाभास है कि जो राज्य चाणक्य, पाणिनी तथा सितारों के तारक-पुंज के समय से स्कॉलरशिप तथा बौद्धिक उपलब्धियों के लिए जाना जाता था, वहां से मुख्यमंत्री पद के लिए नौवीं कक्षा फेल एक उम्मीदवार परचा भर रहा है। बिहार को लंबे समय से जंगलराज के लिए जाना जाता रहा है तथा स्वतंत्रता से लेकर कई वर्षों तक यह विकास के मामले में मृतप्रायः रहा है, जबकि दक्षिण के औद्योगिक राज्य कई गुणा विकसित हुए हैं। अगर हम इस राज्य के इतिहास पर नजर डालें तो यह सर्वाधिक विकसित था तथा इस राज्य ने देश को बड़े-बड़े चिंतक तथा योद्धा दिए हैं। चंद्रगुप्त द्वितीय ने बंगाल की खाड़ी से अफगानिस्तान तक राज किया। उसे विक्रमादित्य भी कहा जाता है। पटना भारत का सबसे बड़ा शहर था। लेकिन अब बिहार विकास के निम्नतम पायदान पर है और अर्थशास्त्रियों के अनुसार भी भारत में बिहार की स्थिति सबसे बुरी है। लालू प्रसाद यादव ने दलित-पिछड़ा वोट बैंक मॉडल का प्रयोग करते हुए राज्य में 15 वर्षों तक शासन किया। जब वह जेल चले गए तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता उन्हें सौंप दी। इस तरह बिहार का शासन जेल से चलने लगा। आज भी वह जेल में हैं तथा केवल जमानत के स्तर से चुनाव में सहभागिता करेंगे।

अब उनका मनोनीत उत्तराधिकारी उनका पुत्र तेजस्वी यादव है जो कि नौवीं कक्षा फेल है तथा मुख्यमंत्री के पद के लिए चुनाव लड़ेगा। बड़े आश्चर्य की बात यह है कि विपक्ष के सभी दलों ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की हामी भर दी है। बिहार में एक समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एकाधिपत्य था। कांग्रेस ने इस राज्य में बिना किसी चुनौती के 1951 से लेकर 1991 तक राज किया। इस 40 साल के शासन काल में बिहार देश का सबसे गरीब राज्य बन गया। परंपरागत रूप से चार बीमारू राज्यों, नामतः बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा राजस्थान में से यह राज्य सबसे अंत में है। अब इस राज्य में पिछले 15 वर्षों से नीतीश कुमार शासन चला रहे हैं।

पिछली तीन पारियों में नीतीश कुमार ने राज्य में पेयजल तथा बिजली उपलब्धता की स्थिति में सुधार किया है, लेकिन इसके सिवाय इस राज्य में कुछ भी विकासात्मक नहीं हुआ है, जबकि अन्य राज्य आगे बढ़ रहे हैं। तमिलनाडू, कर्नाटक और गुजरात देश में विकास के मामले में सबसे आगे चल रहे हैं। बिहार को एक और आघात तब लगा जब झारखंड इससे अलग हो गया। राज्य के अधिकतर उद्योग झारखंड में चले गए। बिहार से काम की खोज में मजदूर दूसरे राज्यों को अस्थायी रूप से पलायन करते हैं, किंतु कोरोना वायरस जैसी महामारी में अब यह संभव नहीं हो पा रहा है, जिससे राज्य को एक और आघात लगा है। कोरोना वायरस के कारण लाखों बिहारी मजदूरों को घर वापसी करनी पड़ी। लॉकडाउन में उन्हें न तो कोई परिवहन का साधन मिला, न ही कहीं ठहरने के लिए सहारा मिला। जैसे कि यही काफी नहीं था, वापसी पर उन्हें गृह राज्य में कोई काम नहीं मिल पाया तथा अब वे पुराने कार्यस्थलों को लौट जाना चाहते हैं, जो कि एक अन्य मुद्दा बन गया है। इससे मजदूरों की स्थिति आपदा और मुसीबतों वाली हो गई है। बिहार में अब चुनाव होने जा रहे हैं।

यहां विधानसभा की 243 सीटें हैं। चुनाव परिणाम 10 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। इस चुनाव में बहुकोणीय मुकाबला होगा। चुनावी अखाड़े में केवल लालू प्रसाद यादव तथा नीतीश कुमार ही नहीं हैं, बल्कि बदलती स्थितियों के साथ-साथ और भी कई दावेदार उभर कर सामने आएंगे। राज्य में चुनाव का एक घटक उपेंद्र कुशवाहा भी हैं। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल को छोड़ दिया है। इसी तरह चिराग पासवान ने एनडीए को छोड़ दिया है, जबकि वह अब भी मोदी की प्रशंसा कर रहे हैं तथा उन्हें ही अपना नेता मान रहे हैं। भाजपा और नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटिड फूंक-फूकं कर कदम रख रहे हैं क्योंकि पासवान परिवार में वह ऊर्जा है जो इन दोनों के मध्य दरार पैदा कर सकती है। रामविलास पासवान के निधन से चिराग पासवान को सांत्वना कारक के कारण अच्छी स्थिति में माना जा सकता है। चिराग पासवान भी यह उल्लेख करने में बिल्कुल भी नहीं चूकते हैं कि किस तरह रामविलास पासवान बिहार के लिए कुछ अच्छा करना चाहते थे। चिराग पासवान यह दावा भी कर रहे हैं कि वह मोदी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं क्योंकि वह गुरु हैं। हालांकि उन्होंने गठबंधन छोड़ दिया है, लेकिन अपने गुरु को नहीं छोड़ा है। बिहार के नेता जिस जाति से संबंधित हैं, उस जाति की वफादारी का दावा कर रहे हैं।

नीतीश कुमार कुर्मी नेता हैं, पिछड़े लालू के साथ हैं, चिराग पासवान अपनी जाति के साथ हैं। जीनत राम मांझी के पास जातीय टैग है तथा वह भाजपा से मिल गए हैं। वास्तविक लड़ाई भाजपा के लिए है जिसे जातिवाद के खिलाफ राष्ट्रवाद के लिए लड़ना है। उसे जातीय शासन के युगों पुराने प्राधान्य को तोड़ना है। भाजपा के सामने बिहार के साथ-साथ देश में भारतीयों और हिंदुओं को जोड़ने के लिए बड़ी लड़ाई है। नरेंद्र मोदी बिहार में 12 चुनावी रैलियां करेंगे। इस दौरान उनके साथ नीतीश कुमार भी साथ रहेंगे। वह मतदाताओं तक अपना संदेश देने के लिए कस्बों से गलियों तक प्रचार करेंगे।

अभी तक की स्थिति में यह लगता है कि भाजपा ज्यादा वोट और ज्यादा सीटें हासिल करेगी। यह स्थिति महाराष्ट्र जैसी होगी जहां मुख्यमंत्री के पास बहुमत नहीं है। बिहार में चुनावी तस्वीर अभी धुंधली है क्योंकि राज्य के छोटे दल अभी अपना मन नहीं बना पाए हैं। उधर तेजस्वी यादव ने चतुराई से चिराग पासवान का समर्थन किया है। इससे नीतीश समर्थक ताकतों में दरार आ सकती है। भाजपा राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर चलते हुए सभी जातियों को जोड़ने की कोशिश करेगी तथा इससे विपक्ष के सभी दलों जैसे राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों में एकता गढ़ने का काम भी हो जाएगा। इस समय भाजपा तथा जनता दल यूनाइटिड की प्रचारात्मक बढ़त स्पष्ट दिख रही है, किंतु स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। इसलिए बिहार की चुनावी तस्वीर पूरी तरह अगले हफ्ते ही स्पष्ट हो पाएगी।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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