चीन की दखलअंदाजी: कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार

By: कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार Oct 10th, 2020 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

कम्युनिस्ट चीन ने भारतीय मीडिया को एक और सूचना भी दी। उसका कहना था कि भारत सरकार का भी यही मत है कि कम्युनिस्ट चीन की सरकार ही असली सरकार है। कम्युनिस्ट चीन की हिमाकत की यह हद ही कही जाएगी कि वह भारतीय मीडिया को बता रहा है कि भारत सरकार की नीतियां क्या हैं। अंत में वह भारतीय मीडिया से अपील करता है कि वह लोकतांत्रिक चीन के राष्ट्रीय दिवस में रुचि न ले। लेकिन कम्युनिस्ट चीन के दिल्ली दूतावास की अपील का क्या इतना ही अर्थ है? कम्युनिस्ट शब्दावली के अर्थ क्या इतने साधारण या सीधे होते हैं? कम्युनिस्ट चीन की इस विज्ञप्ति का मीडिया के लिए इतना ही अर्थ नहीं है। कम्युनिस्ट चीन के दूतावास ने मीडिया से यह अपील करने से पहले भारत की एक बहुत बड़ी अंग्रेजी अखबार को चीन में हुई तथाकथित प्रगति को लेकर महंगे विज्ञापन दिए। लाखों रुपए के विज्ञापन…

दिल्ली में पीआरसी का दूतावास है। पीआरसी यानी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ  चायना जिसे आम भाषा में कम्युनिस्ट चीन कहा जाता है।  एक दूसरा देश आरसी है यानी रिपब्लिक ऑफ चायना, जिसे आम भाषा में लोकतांत्रिक चीन या ताइवान कहा जाता है। दोनों में आपस में झगड़ा चलता रहता है कि दोनों में से किस देश की सरकार वैधानिक है। अंग्रेजी में कहते हैं कि किस देश की सरकार के पास सेंकटिटी है। यानी आम चीनियों की नजर में कौन सी सरकार आम जनता का प्रतिनिधित्व करती है? यह झगड़ा इसलिए चल रहा है क्योंकि दोनों देश अपनी सरकार को चीन की वैधानिक सरकार कहते हैं। यह झगड़ा 1949-1950 में शुरू हो गया था। उन दिनों चीन में माओ के नेतृत्व में वहां की कम्युनिस्ट पार्टी चीन की सरकार पर कब्जा करने के लिए गुरिल्ला युद्ध चला रही थी। देश के जिस हिस्से पर गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से माओ की पार्टी ने कब्जा कर लिया, उसने उसका नाम पीआरसी कर दिया। जिस हिस्से पर वह कब्जा नहीं कर सका, वह पूर्ववत आरसी ही कहलाता रहा। आरसी या लोकतांत्रिक चीन में संविधान के अनुसार निश्चित अवधि में चुनाव होते रहे और होते रहते हैं। वहीं चुनाव परिणाम के आधार पर सरकारें भी बदलती रहती हैं। लेकिन माओ ने अपने कब्जे में आए चीन में जो सरकार स्थापित की, उसकी वैधानिकता या सेंकटिटी जानने के लिए चुनावों की इल्लत नहीं पाली। उसने यह निश्चित कर दिया कि आगे से चीन के इस हिस्से पर कम्युनिस्ट पार्टी का ही शासन रहेगा। अलबत्ता इतना जरूर दर्ज कर दिया कि समय-समय पर चुनाव भी करवाए जाएंगे, लेकिन चुनावों में हिस्सा केवल कम्युनिस्ट पार्टी ही ले सकेगी। इससे चीन के लोगों को जो थोड़ा बहुत भ्रम था वह भी दूर हो गया।

इस पूरे खेल में इतना परिवर्तन जरूर हुआ कि वर्तमान अध्यक्ष शी जिनपिंग ने अपने आपको पूरी जिंदगी के लिए अध्यक्ष घोषित कर दिया है। अब मामला आरसी यानी लोकतांत्रिक चीन का। लोकतांत्रिक चीन हर साल अपना राष्ट्रीय दिवस मनाता है। चीन में रुचि रखने वाले लोग अपने देश में इसको लेकर कई कार्यक्रम करते हैं। मीडिया में लेख वगैरहा आते हैं। विभिन्न चैनलों पर चर्चा भी होती है। लेकिन इस बार कम्युनिस्ट चीन का दिल्ली स्थित दूतावास लद्दाख में घटी घटनाओं के कारण अतिरिक्त सक्रिय है। कभी वह अपने अखबार ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से बताता है कि भारत की सेना हमारा मुकाबला नहीं कर सकती। कभी लद्दाख की लड़ाई में मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या छिपा कर अपनी वीरता की कहानी भारतीयों को सुनाता रहता है। लेकिन पिछले दिनों उसने भारत के मीडिया को सीधे-सीधे पत्र लिखा है। उसने पत्र में लिखा है कि चीन केवल एक ही है, वह हमारा कम्युनिस्ट चीन है। उसका कहना है कि कम्युनिस्ट चीन की सरकार ही चीन के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। ताइवान या लोकतांत्रिक चीन गैर-कानूनी है। वैसे ऐसे चुटकुले कम्युनिस्ट चीन ही छोड़ सकता है।

 जहां लोग स्वयं सरकार का चुनाव करते हैं वह गैर कानूनी है और जहां कभी चुनाव होते ही नहीं बल्कि थियानमेन स्कवायर में लोगों को कुचलने के लिए टैंक चढ़ाए जाते हैं, वह लोगों की प्रतिनिधि सरकार है। कम्युनिस्ट चीन ने भारतीय मीडिया को एक और सूचना भी दी। उसका कहना था कि भारत सरकार का भी यही मत है कि कम्युनिस्ट चीन की सरकार ही असली सरकार है। कम्युनिस्ट चीन की हिमाकत की यह हद ही कही जाएगी कि वह भारतीय मीडिया को बता रहा है कि भारत सरकार की नीतियां क्या हैं। अंत में वह भारतीय मीडिया से अपील करता है कि वह लोकतांत्रिक चीन के राष्ट्रीय दिवस में रुचि न ले। लेकिन कम्युनिस्ट चीन के दिल्ली दूतावास की अपील का क्या इतना ही अर्थ है? कम्युनिस्ट शब्दावली के अर्थ क्या इतने साधारण या सीधे होते हैं? कम्युनिस्ट चीन की इस विज्ञप्ति का मीडिया के लिए इतना ही अर्थ नहीं है। कम्युनिस्ट चीन के दूतावास ने मीडिया से यह अपील करने से पहले भारत की एक बहुत बड़ी अंग्रेजी अखबार को चीन में हुई तथाकथित प्रगति को लेकर महंगे विज्ञापन दिए। लाखों रुपए के विज्ञापन। उधर लद्दाख में भारत और कम्युनिस्ट चीन के सैनिक भिड़ रहे हैं। सैनिक शहीद हो रहे हैं। इधर हमारे अखबार घर-घर में चीन की प्रशंसा के गीत पहुंचा रहे हैं। है न कमाल की मैनेजमेंट। अब उन्होंने भारत के मीडिया को परोक्ष रूप से संदेश दे दिया है। यदि लोकतांत्रिक चीन के राष्ट्रीय दिवस के बारे में चुप रहोगे तो आपको भी उसी प्रकार के विज्ञापन मिल सकते हैं जिस प्रकार के भारत के दक्षिणी भाग के उस अखबार को मिले हैं। वह विज्ञापन तो केवल डिमोंसट्रेशन के लिए था। आप भी इस प्रतियोगिता में भाग ले सकते हो।

भारतीय मीडिया के सामने कम्युनिस्ट चीन ने दाना फेंका है। लोकतांत्रिक चीन को त्यागो, कम्युनिस्ट चीन को पहचानों और विज्ञापन पन्ना फेंका गया दाना दुमका चुग लो। भारत की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी सोनिया कांग्रेस ने तो पहले ही यह दाना दुमका चुग लिया था। उसने कम्युनिस्ट चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से एक एमओयू ही कर लिया। दोनों दल एक-दूसरे के हितों की सुरक्षा करेंगे। कम्युनिस्ट चीन के इतिहास से वाकिफ लोग इतना तो जानते ही हैं कि चीन के लिए भारत के हितों का अर्थ भी चीन के हित ही हैं। यदि देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी चीन के इस जाल में फंस सकती है तो मीडिया को दोष क्यों दिया जाए? लेकिन आशा करनी चाहिए कि मीडिया चीन के इन चुटकुलों को गंभीरता से नहीं लेगा। चीन से संबंध बनाते समय उसके इतिहास को याद रखना जरूरी है। वह पीठ में छुरा घोंपने में विश्वास रखता है। 1962 में उसका भारत पर आक्रमण यही बात कहता है। उस पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता। उस पर भरोसा करने का अर्थ है अपने आपको भ्रम में रखना। इसलिए चीन से सजग रहने की सख्त जरूरत है।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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