हमारे ऋषि-मुनि, भागः 35

By: Oct 31st, 2020 12:20 am

पांच वर्ष का बालक पैदल चलता हुआ गौड़ देश पहुंचा। विष्णुदेव से भी मिला। अपने गुरु शुकदेव की आज्ञा पाकर  विष्णुदेव ने शुकदत्त को उपदेश दिया। उन्होंने इस बालक को योग, सिद्धि व मंत्रों का रहस्य भी बताया। शुकदेव के आश्रम से पैदल चल कर गौड़ देश पहुंचे बालक का नया नाम गौड़पाद पड़ गया। शुकदेव की ऐसी कृपा हुई कि उन्हें उनके सर्वत्र दर्शन हुआ करते थे। इस बालक ने बड़े होकर मांडूक्य उपनिषद पर कारिका की रचना की। उन्होंने कुछ और ग्रंथ भी लिखे, उनमें हैं सांख्यकारिका भाष्य तथा उत्तरगीता का भाष्य…

एक गांव था भूपाल। यह गांव शुकदेव के आश्रम के बहुत करीब था। इस ग्राम में वेद शास्त्र आदि से संपन्न एक ब्राह्मण दंपत्ति रहता था। पति का नाम विष्णुदेव था और पत्नी का नाम गुणावती था। वे देवताओं और हर प्रकार के अतिथियों का मन से स्वागत करते थे। उनकी सेवा में कोई कमी न रखते। जितना भी संभव होता, वे दूसरों की भलाई करते।

निःसंतान होने का दुःख

यह ब्राह्मण परिवार वैसे तो हर प्रकार से सुखी था, मगर संतान रहित होने से इनका मन अशांत रहता था। उम्र भी ढल चुकी थी। आगे और अधिक निराशा होने लगी। अतः उन्होंने सोच-समझकर शुकदेव से अपनी व्यथा सुना दी। उन्होंने एकासन पर बैठकर अन्न का एक दाना भी खाए बिना गायत्री मंत्र का जप किया। अंतिम दिन शुकदेव की गुफा से आवाज आई ब्राह्मण! तुम्हें अब चिंता नहीं करनी है। तुम्हें एक यशस्वी पुत्र प्राप्त होगा, वह सर्वज्ञ होगा, सर्वसिद्ध संपन्न होगा, सभी सिद्ध उसका सम्मान करेंगे।

पुत्र धन की प्राप्ति

ब्राह्मण दंपत्ति अपनी कुटिया पर लौट गए। वे बहुत ही प्रसन्न रहने लगे। समय पाकर उनके घर एक बेटे ने जन्म लिया। बेटा सूर्य की कांति जैसा। नाम रखा शुकदत्त। केवल पांच वर्ष की आयु में शुकदत्त ने वेद, वेदांग, शास्त्र अदि का बहुत सा ज्ञान अर्जिकर कर लिया। अब वे परम तत्त्व की प्राप्ति करना चाहते थे। इसलिए शुकदेव जी के आश्रम में पहुंचे।

गौड़ देश जाने का आदेश

वह शुकदेव की गुफा के बाहर बैठ गए। अन्न-जल कुछ नहीं लिया। एक दिन और रात वहां खड़े रहे। दूसरे दिन अंदर से आवाज आई ब्राह्मण तुम गौड़ देश में चले जाओ। वहां पर मेरे संप्रदाय के सद्गुर हैं। उनका नाम विष्णुदेव है, उनसे तत्त्वज्ञान पाओ। बाद में तुम्हें भी शुकदेव का शिष्य कहा जाएगा।उनसे उपदेश लो। बालक ने गुफा की आवाज वाली पूरी बात अपने माता-पिता से कह दी। उनकी आज्ञा पाकर बालक जाना चाहता था, मगर माता-पिता भी साथ चल पड़े। मार्ग में शुकदत्त ने उन्हें घर लौटा दिया। पांच वर्ष का बालक पैदल चलता हुआ गौड़ देश पहुंचा। विष्णुदेव से भी मिला। अपने गुरु शुकदेव की आज्ञा पाकर  विष्णुदेव ने शुकदत्त को उपदेश दिया। उन्होंने इस बालक को योग, सिद्धि व मंत्रों का रहस्य भी बताया।

नया नाम मिला

शुकदेव के आश्रम से पैदल चल कर गौड़ देश पहुंचे बालक का नया नाम गौड़पाद पड़ गया। शुकदेव की ऐसी कृपा हुई कि उन्हें उनके सर्वत्र दर्शन हुआ करते थे। इस बालक ने बड़े होकर मांडूक्य उपनिषद पर कारिका की रचना की। उन्होंने कुछ और ग्रंथ भी लिखे, उनमें हैं सांख्यकारिका भाष्य तथा उत्तरगीता का भाष्य।

कब हुए ये संत?

अनेक मतभेद हैं। कुछ उन्हें विक्रम संवत् से सौ दौ सौ वर्ष पूर्व के संत मानते हैं, कुछ बाद के। इस विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।                    – सुदर्शन भाटिया


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