हेपेटाइटिस सी वायरस

By: हेपेटाइटिस सी Oct 10th, 2020 12:20 am

हेपेटाइटिस सी लिवर से जुड़ी एक बीमारी है, जो हेपेटाइटिस सी नामक विषाणु से संक्रमित होने पर पैदा होती है। यह संक्रमण आपके लिवर को क्षतिग्रस्त कर सकता है। हालांकि शुरुआती संक्रमण के बाद इसके लक्षणों को पहचानना बेहद कठिन है, लेकिन इसके बारे में जानकारी होना बेहद आवश्यक है। गौरतलब है कि हेपेटाइटिस बी और सी लाखों लोगों को अपनी चपेट में हर साल ले रहा है। ये दोनों ही सबसे खतरनाक हैं। जिसमें लिवर सोरायसिस और कैंसर होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। ऐसे में इन तीनों की खोज ने दुनिया के लाखों लोगों की जान बचाने का काम किया है।

मेडिसिन के क्षेत्र में हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज करने वाले 3 वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार दिया गया है। ये तीन वैज्ञानिक माइकल हाउटन, अमरीकी वैज्ञानिक हार्वे अल्टर और चार्ल्स राइस हैं, जिन्होंने संयुक्त रूप से हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल दुनिया भर में  हेपेटाइटिस के 70 मिलियन से अधिक मामले आते हैं, जिसमें 4,00,000 से ज्यादा मौतें दर्ज की जाती हैं। बता दें कि ये यह बीमारी बहुत पुरानी है, जिसके कारण लिवर में सूजन और कैंसर आदि घातक बीमारियां होती हैं।

कैसे हुई हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज

1960 के दशक में हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी को खोजा गया था। उस समय जो लोग दूसरों से रक्तदान लेते थे उन्हें एक अज्ञात और रहस्यमयी बीमारी हो जाती थी, जिसके कारण उनके लिवर में जलन पैदा हो जाती थी। ये लोगों के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बनती जा रही थी। लेकिन प्रोफेसर हार्वे ने साल 1972 में यूएस नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ  हैल्थ में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के मरीजों पर शोध करते हुए पाया था कि एक दूसरा रहस्यमीय वायरस भी मौजूद है, जो अपना काम कर रहा है। नोबेल कमेटी के अनुसार 1960 के दशक में किसी से खून लेना इतना खतरनाक था कि किसी की जान भी जा सकती थी। तब उन्होंने अपनी शोध में पाया कि संक्रमित लोग अगर किसी वनमानुष को अपना खून दे रहे थे, तो उससे वनमानुष बीमार पड़ रहे थे।

इस रहस्यमयी बीमारी को नॉन ए नॉन बी हेपेटाइटिस कहा जाने लगा और इसकी खोज शुरू हो गई। तब प्रोफेसर माइकल हाउटन ने दवा की कंपनी शिरोन में काम करते हुए साल 1989 में इस वायरस के जेनेटिक श्रृंखला की पहचान करने में सफलता पाई। इससे पता चला कि यह एक तरह का फ्लैवीवायरस है और इसका नाम हेपेटाइटिस सी रख दिया गया। प्रोफेसर चार्ल्स राइस ने सेंट लुई स्थित वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में रहते हुए साल 1997 में इस वायरस के बारे में अंतिम महत्त्वपूर्ण खोज की। उन्होंने हेपेटाइटिस सी वायरस को एक वनमानुष के लिवर में इंजेक्ट किया और दिखाया कि वनमानुष को हेपेटाइटिस संक्रमण हो गया है। इस तरह हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज पूरी हुई।

मानव सभ्यता के लिए जरूरी खोज

इतिहास में पहली बार अब इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है, जिससे दुनिया से हेपेटाइटिस सी वायरस खत्म करने की उम्मीद बढ़ गई है। अल्टर अमरीका के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ  हैल्थ, राइस रॉकफेलर यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं, जबकि ह्यूटन कनाडा में अलबर्टा यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए हैं।


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