हिमालय का अजंता ताबो मठ

By: Oct 3rd, 2020 12:27 am

हमारे देश में सभ्यता संस्कृति का अनूठा संगम है। जिसका नाता चाहे किसी भी धर्म से हो, लेकिन उन्हें करीब से जानने और समझने की जिज्ञासा कभी खत्म नहीं होती। ऐसी ही एक  खास जगह है हिमालय का अजंता कहा जाने वाला ताबो मठ। जी हां केवल 10,000 फुट की ऊंचाई पर ताबो मठ हिमालय का सबसे पुराना मठ है। ताबो हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिला में स्थित एक छोटा सा शहर है। यह शहर स्पीति नदी के तट पर बसा हुआ है। ताबो समुद्र तल से 3050 मीटर की ऊंचाई पर रेककौंग पियो तथा काजा सड़क के बीच स्थित है।

यह शहर एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ ताबो गोंपा के चारो तरफ  बसा हुआ है। यह मठ हिमालय क्षेत्र का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण मठ माना जाता है। आइए जानते हैं इसे हिमालय का अजंता क्यों कहा जाता है और यह इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है।

इसलिए कहते हैं हिमालय का अजंता- इस गोंपा की स्थापना लोचावा रिंगचेन जंगपो ने 996 ई. में की थी। लोचावा रिंगचेन जंगपो एक प्रसिद्ध विद्वान थे। ताबो मठ परिसर में कुल 9 देवालय हैं, जिनमें से चुकलाखंड, सेरलाखंड एवं गोंखंड प्रमुख है। मठ के भीतर अनेक भित्ति चित्र एवं मूर्तियां निर्मित की गई है। चुकलाखंड (देवालय) की दीवारों पर बहुत ही सुंदर चित्र अंकित हैं। इसमें बुद्ध के संपूर्ण जीवन को चित्रों के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। गोंपा में बहुत ही पुराने धर्म ग्रंथ (जो कि तिब्बती भाषा में लिखे हुए है) एवं बौद्ध धर्म से संबंधित बहुत पुरानी पांडुलिपि भी प्राप्त हुई है। ताबो गोंपा के चित्र अजंता गुफा के चित्रों से मेल खाते हैं इसलिए ताबो गोंपा को हिमालयन अजंता के नाम से भी जाना जाता है।

दीक्षा समारोह में शामिल होने से दूर होते हैं कष्ट- वर्ष 1996 ई. में इस गोंपा ने अपने स्थापना के 1000 वर्ष पूरे किए। इस गोंपा में लगभग 60 से 80 लामा प्रतिदिन बौद्ध धर्म का अध्ययन करते हैं। इनकी दैनिक चर्या बौद्ध धर्म के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन एवं स्थानीय लोगों के अनुरोध पर उनके घरों में जाकर धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना एवं पूजा पाठ कराना है। इस गोंपा का निर्माण भालू मिट्टी एवं मिट्टी की इर्ंटों से किया गया है। मुख्य मंदिर के मध्य में वेरोकाना की मूर्ति है, जो कि मुख्य मंदिर को चारों दिशाओं से मुखारबिंद किए हुए है। साथ ही उनके चारों तरफ मंदिर की दीवार के मध्य में दुरयिंग की मूर्तियां हैं। इनमें महाबुद्ध अमिताभ, अक्षोभया, रत्नासंभा की मूर्तियां प्रमुख हैं।

देवताओं ने एक रात में बनाए थे यहां चित्र- वर्ष 1983 एवं 1996 में 14वें दलाई लामा ने यहां कालचक्र समारोह का आयोजन किया। इस कालचक्र समारोह में दीक्षा एवं पुनर्जीवन जैसे विषयों पर चर्चा की गई। मान्यता है कि यहां हर चार वर्ष में एक बार चाहर मेला लगता है जोकि माह अक्तूबर में होता है। इस मठ के गर्भगृह में अलौकिक भित्ति चित्र देखने को मिलते हैं। इन्हें लेकर मान्यता है कि यह सभी चित्र देवताओं ने एक ही रात में बनाए थे। शायद यही वजह है कि यहां बने भित्ति चित्रों जैसी भाव-भंगिमाएं विश्वभर में कहीं और देखने को नहीं मिलती।

मठ पर नहीं होता बर्फबारी का असर-आपको यह जानकर हैरानी होगी लेकिन यही सच है कि गोंपा परिसर के सभी मठों की दीवारें, छतें, सब कुछ मिट्टी से निर्मित है। इन्हें बने हुए हजारों वर्षों से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन इसकी अनूठी वास्तुकला पर बारिश और बर्फबारी का कोई असर नहीं होता।

इसे दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद माना जाता है। बता दें कि 1975 के भूकंप के बाद मठ का पुनर्निर्माण किया गया है। ऐतिहासिक धरोहर के रूप में इस मठ का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंपा गया है। इस मठ का नाम यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। दूर-दूर से लोग इस मठ को देखने आते हैं।


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