खेल आरक्षण में नियमानुसार भर्ती क्यों नहीं: भूपिंदर सिंह, राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

By: भूपिंदर सिंह, राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक Oct 9th, 2020 12:12 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

राजस्व विभाग को चाहिए था कि वह खेल कोटे के सभी पास प्रतिभागियों की सूची मैरिट तय करने के लिए खेल विभाग को भेजता, जैसा सभी विभाग करते हैं। राजस्व विभाग लिखित परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त खिलाड़ी प्रतिभागी को सीट दे देता है, यह भी नहीं जानता कि वह खिलाड़ी कोटे की शर्तों को पूरा करता भी है या नहीं। खेल आरक्षण के नियमानुसार किसी भी भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने के बाद अंतिम मैरिट में खेलों में उच्च प्रदर्शन करने वाले को पहला स्थान मिलेगा, चाहे वह लिखित परीक्षा में सबसे पीछे हो। खेल कोटा योग्यता क्रम में मिलेगा…

हिमाचल प्रदेश के विभिन्न सरकारी व अर्द्ध सरकारी विभागों में हुई भर्ती में लंबे समय से कई विभागों द्वारा खेल आरक्षित पदों को भरने में अनियमितता बरती जा रही है। कई विभाग इन पदों को खेल सैल न भेज कर स्वयं ही बंदरबांट कर रहे हैं तो कई इन पदों को भर ही नहीं रहे हैं। पिछले लंबे अरसे से कई विभागों के पद खेल सैल की फाइलों में धूल फांक रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में अभी तक खेलों के लिए वह वातावरण ही नहीं बन पा रहा है जिसमें खेलों को सही मंच मिल सके। खेल आरक्षण के बगैर हिमाचल से खिलाडि़यों को पलायन करना पड़ता था। इसलिए काफी लंबे संघर्ष के बाद हिमाचल प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए इस सदी के शुरू होते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने सरकारी नौकरियों में तीन प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर राज्य में खेलों को लोकप्रिय बनाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। इससे पहले सरकारी नौकरियों में एक प्रतिशत आरक्षण तो था, मगर उसे मंत्रिमंडल की मंजूरी से उसे ही दिया जाता था जिसकी पहुंच बहुत ऊपर तक होती थी। रोस्टर में पद का प्रावधान नहीं होने के कारण पद में भर्ती होते समय काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। धूमल सरकार ने आरक्षण सभी तृतीय श्रेणी या उससे निचली श्रेणी के लिए रोस्टर के अनुसार किया तथा प्रथम व दूसरे दर्जे के पदों को एशियाड व ओलंपिक में पदक विजेताओं को मंत्रिमंडल की अनुमति से भरने का प्रावधान रखा। ओलंपियन शूटर विजय कुमार व एशियाड में स्वर्ण पदक विजेता कबड्डी टीम के सदस्य अजय ठाकुर को हिमाचल प्रदेश पुलिस में मंत्रिमंडल की सहमति से सीधे डीएसपी भर्ती किया है।

खेल विभाग में भी राष्ट्रीय खेलों के मुक्केबाज में स्वर्ण पदक विजेता व अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी प्रशिक्षक अनुराग को भी मंत्रिमंडल की सिफारिश पर जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी के प्रथम श्रेणी पद पर पदोन्नत किया है। खिलाडि़यों का वर्गीकरण करने के लिए ओलंपिक के पदक विजेताओं को कैटेगरी एक तथा एशियाड व राष्ट्रमंडल खेलों के पदकधारियों को कैटेगरी दो में रखा गया। वरिष्ठ राष्ट्रीय खेलों के पदक विजेताओं को कैटेगरी तीन में स्थान दिया गया। कैटेगरी चार में स्कूली व कनिष्ठ राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के पदक विजेताओं के साथ-साथ भारत सरकार के खेल मंत्रालय द्वारा आयोजित पायका व अंडर 25 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के पदकधारियों को भी इसमें शामिल किया गया। कैटेगरी चार में ही वरिष्ठ राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में तीन बार प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाडि़यों को भी शामिल किया गया है। कैटेगरी तीन तक के उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडि़यों को सरकारी नौकरियों में भर्ती के समय किसी भी प्रवेश परीक्षा या साक्षात्कार से छूट है। विभाग रोस्टर में आए पदों को सीधे खेल विभाग में बने खेल आरक्षण सैल को भेजता है।

 खेल विभाग की आरक्षण सैल की कमेटी खिलाडि़यों की वरिष्ठता सूची तय करती है और फिर इस सूची को वापस उसके विभाग को भेजा जाता है। कैटेगरी चार के खिलाडि़यों को कमीशन या  विभाग द्वारा ली गई भर्ती परीक्षा में पास अंक प्राप्त करने वाले खिलाड़ी प्रतिभागियों की सूची को खेल विभाग के आरक्षण सैल को भेज कर खेल प्रदर्शन के आधार पर वरिष्ठता तय की जाती है। कई बार पटवारी भर्ती प्रक्रिया में खेल आरक्षण के पदों को राजस्व विभाग खुद ही नियमों को ताक पर रखकर भरता रहा है।  पिछले सालों में हुई भर्ती में भी इस तरह की हेराफेरी हुई थी और कुल्लू व कांगड़ा जिलों के कुछ प्रतिभागियों को उच्च न्यायालय के माध्यम से अपनी सीट को प्राप्त करना पड़ा था। कुछ विभाग स्वयं ही जिला स्तर पर भर्ती प्रक्रिया पूरी करवाते हैं। जब मैदान व लिखित छंटनी परीक्षा के लिए भर्ती चयन बोर्ड बना है तो फिर राजस्व विभाग सहित कई अन्य विभाग क्यों इस भर्ती प्रक्रिया को स्वयं कराने में इच्छुक हैं? अगर विभाग स्वयं भर्ती प्रक्रिया संपन्न करवाते तो फिर खेल आरक्षित सीटों को खेल विभाग को क्यों नहीं भेजते? पुलिस व वन विभाग भी सिपाही व वन रक्षक की भर्ती में मैदान परीक्षा भी होने के कारण स्वयं कराते हैं, मगर ये विभाग खेल आरक्षण की सीटों की मैरिट बनाने के लिए खेल विभाग से सहायता लेने के लिए उपयुक्त नाम मांगते हैं। राजस्व विभाग को चाहिए था कि वह खेल कोटे के सभी पास प्रतिभागियों की सूची मैरिट तय करने के लिए खेल विभाग को भेजता, जैसा सभी विभाग करते हैं।

 राजस्व विभाग लिखित परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त खिलाड़ी प्रतिभागी को सीट दे देता है, यह भी नहीं जानता कि वह खिलाड़ी कोटे की शर्तों को पूरा करता भी है या नहीं। खेल आरक्षण के नियमानुसार किसी भी भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने के बाद अंतिम मैरिट में खेलों में उच्च प्रदर्शन करने वाले को पहला स्थान मिलेगा, चाहे वह लिखित परीक्षा में सबसे पीछे हो। यानी खेल कोटा उन्हें मिलेगा जिनकी खेलों में योग्यता क्रम में सबसे ऊपर होगी और यह तय खेल विभाग करेगा, न कि राजस्व विभाग व अन्य जो स्वयं ही बंदरबांट कर रहे हैं। लिपिक व पंचायत सचिव के हजारों पद पिछले कुछ सालों में भरे गए हैं। इनके खेल आरक्षित पदों पर भी काफी अनियमितता हुई है। चतुर्थ श्रेणी के पदों को कब और कैसे भरा जाता है और यहां खेल आरक्षण किसे मिला, इसका ब्यौरा भी नहीं है।  राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए कई वर्ष समाज से कट कर खिलाड़ी को कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इस तरह वह पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक रूप से भी पिछड़ जाता है। इसलिए ही उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पदक विजेता खिलाडि़यों को काफी विचार-विमर्श के बाद ही खेल आरक्षण दिया गया है। हिमाचल में खेल संस्कृति तैयार हो, इसके लिए राज्य में उपलब्ध सुविधाओं को आसानी से खिलाडि़यों को देना होगा।

ईमेलः bhupindersinghhmr@gmail.com


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