किसी अजूबे से कम नहीं हैं रामायण के पात्र

By: Nov 7th, 2020 12:20 am

वैदिक साहित्य में ‘राम’ का उल्लेख प्रचलित रूप में नहीं मिलता है। ऋग्वेद में केवल दो स्थलों पर ही ‘राम’ शब्द का प्रयोग हुआ है। उनमें से भी एक जगह काले रंग (रात के अंधकार) के अर्थ में, तथा शेष एक जगह ही व्यक्ति के अर्थ में प्रयोग हुआ है। लेकिन वहां भी उनके अवतारी पुरुष या दशरथ के पुत्र होने का कोई संकेत नहीं है। यद्यपि नीलकंठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के अनेक मंत्रों को स्वविवेक से चुनकर उनके रामकथापरक अर्थ किए हैं, परंतु यह उनकी निजी मान्यता है। स्वयं ऋग्वेद के उन प्रकरणों में प्राप्त किसी संकेत या किसी अन्य भाष्यकार के द्वारा उन मंत्रों का रामकथापरक अर्थ सिद्ध नहीं हो पाया है…

-गतांक से आगे…

समुद्र में पुल बना कर लंका पहुंचे तथा रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता जी को वापस ले कर आए। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया, इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके दो पुत्रों कुश व लव ने इनके राज्यों को संभाला। वैदिक धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की वन-कथा से जुड़े हुए हैं। आज के समाज में बढ़ती अनैतिकता, लालच, झूठापन, लूटखसूट में श्रीराम के मर्यादा स्वरूप व्यक्तित्व की, उनके नैतिक आचरण की, उनके त्याग की, उनके सत्य, करुणा, क्षमा, धैर्य, पराक्रम की प्रासंगिकता बहुत बढ़ जाती है। राम का जीवन हमेशा ही सत्यम् शिवम् सुंदरम् जीवन हेतु पथ-प्रदर्शक का काम करता रहेगा।

नाम-व्युत्पत्ति एवं अर्थ

‘रम्’ धातु में ‘घ’ प्रत्यय के योग से ‘राम’ शब्द निष्पन्न होता है। ‘रम्’ धातु का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से संबद्ध है। वे प्राणीमात्र के हृदय में ‘रमण’ (निवास) करते हैं, इसलिए ‘राम’ हैं तथा भक्तजन उनमें ‘रमण’ करते (ध्याननिष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे ‘राम’ हैं। ‘रमते कणे कणे इति रामः’। ‘विष्णुसहस्रनाम’ पर लिखित अपने भाष्य में आद्य शंकराचार्य ने पद्मपुराण का उदाहरण देते हुए कहा है कि नित्यानंदस्वरूप भगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे ‘राम’ हैं।

अवतार रूप में प्राचीनता

वैदिक साहित्य में ‘राम’ का उल्लेख प्रचलित रूप में नहीं मिलता है। ऋग्वेद में केवल दो स्थलों पर ही ‘राम’ शब्द का प्रयोग हुआ है। उनमें से भी एक जगह काले रंग (रात के अंधकार) के अर्थ में, तथा शेष एक जगह ही व्यक्ति के अर्थ में प्रयोग हुआ है। लेकिन वहां भी उनके अवतारी पुरुष या दशरथ के पुत्र होने का कोई संकेत नहीं है। यद्यपि नीलकंठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के अनेक मंत्रों को स्वविवेक से चुनकर उनके रामकथापरक अर्थ किए हैं, परंतु यह उनकी निजी मान्यता है। स्वयं ऋग्वेद के उन प्रकरणों में प्राप्त किसी संकेत या किसी अन्य भाष्यकार के द्वारा उन मंत्रों का रामकथापरक अर्थ सिद्ध नहीं हो पाया है।

ऋग्वेद में एक स्थल पर ‘इक्ष्वाकु’ तथा एक स्थल पर ‘दशरथ’ शब्द का भी प्रयोग हुआ है। परंतु उनके राम से संबद्ध होने का कोई संकेत नहीं मिल पाता है। ब्राह्मण साहित्य में ‘राम’ शब्द का प्रयोग ऐतरेय ब्राह्मण में दो स्थलों पर हुआ है, परंतु वहां उन्हें ‘रामो मार्गवेयः’ कहा गया है जिसका अर्थ आचार्य सायण के अनुसार ‘मृगवु’ नामक स्त्री का पुत्र है।

शतपथ ब्राह्मण में एक स्थल पर ‘राम’

शब्द का प्रयोग हुआ है। यहां ‘राम’ यज्ञ के आचार्य के रूप में है तथा उन्हें ‘राम औपतपस्विनि’ कहा गया है। तात्पर्य यह कि प्रचलित राम का अवतारी रूप वाल्मीकीय रामायण एवं पुराणों की ही देन है।


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