निचले हिमाचल की बागबानी बेगानी

By: Nov 18th, 2020 12:06 am

हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में ‘बागबानी’ क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभाता है। प्रदेश के विविध मौसम व भौगोलिक स्थितियों के कारण यहां विभिन्न प्रकार के फलों का उत्पादन किया जाता है। प्रदेश में 35 किस्मों के विभिन्न फलों की खेती की जाती है।

राज्य के मध्यम व ऊंचाई वाले क्षेत्रों में प्रमुख रूप से सेब का उत्पादन हो रहा है। इसके अलावा इन क्षेत्रों में नाशपाती, चेरी और प्लम को भी बागबान प्राथमिकता दे रहे हैं, जबकि राज्य में निचले क्षेत्रों में  केले, गावा, लीची, पपाया, कीवी, अंगूर, एप्रिकोट, नींबू, अमरूद, अनार, आम, जैतून, जापानी फल, बादाम, पीकान, मौसमी, किन्नू, कागजी नींबू, गलगल, आंवला, कटहल, लोकाट, करौंदा, बेर, चीकू, अंजीर, जामुन, बेल और डेऊ का उत्पादन हो रहा है।

प्रदेश में बागबानी को विकसित करने के लिए राज्य सरकार बागबानों को कई सुविधाएं दे रही है। बागबानी विभाग किसानों की मांगों और क्षेत्र के मौसम को ध्यान में रखते हुए नर्सरियां विकसित कर रहा है। इसके अलावा बागबानों के लिए उपकरण व दवाइयां उपलब्ध करवाई जा रही हैं।

इलाकों में बारिश के हिसाब से उत्पादन

राज्य के मैदानी इलाकों में जहां वर्षा 60 से 100 प्रतिशत तक होती है। वहां आम, लीची, अमरूद, पपीता, केले और कम चिलिंग वाली नाशपाती, स्ट्रॉबरी व प्लम की बागबानी हो रही है। मिडल हिल्स में बागबान स्टोन फ्रूट में प्लम व एप्रिकोट, नाशपाती, कीवी, स्ट्रॉबरी की बागबानी हो रही है। इन क्षेत्रों में बारिश 90 से 100 फीसदी तक होती है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब, नाशपाती, चेरी, चेस्टनट, हेज़लनट और स्ट्रॉबरी का उत्पादन हो रहा है। राज्य के कोल्ड एडं ड्राई ज़ोन में सेब, अंगूर, एप्रिकोट व चिलगोजा का उत्पादन हो रहा है।

चार लाख 64 हजार 254 बागबान

राज्य में 1989-90 के आकलन के तहत चार लाख 64 हजार 254 लोग बागबानी से जुड़े हुए हैं। इसमें जनरल कैटेगिरी के तीन लाख 17 हजार, 778, एससी के एक लाख 17 हजार 919, एसटी के 22 हजार 657 और अन्य पांच हजार 900 बागबान जुड़े हैं।

किस जिला में कितनी जमीन पर काम

जिला शिमला में 48 हजार 178 हेक्टेयर, कुल्लू में 31004, किन्नौर में 12,712, कांगड़ा में 40,696, मंडी में 37,313, सिरमौर में 15,285, ऊना में 6097, चंबा में 16,912, सोलन में 6036, हमीरपुर में 7,737, बिलासपुर में 8,354 और लाहुल-स्पीति में 1,815 हेक्टेयर पर बागबानी हो रही है।

पौधे-उपकरण खरीदने के लिए सबसिडी

प्रदेश में साल दर साल बागबानी का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। बागबानों को पौधों सहित कीटनाशक, उपकरण खरीद के लिए सबसिडी प्रदान की जा रही है। प्रदेश में 1134 करोड़ रुपए की विश्व बैंक पोषित हिमाचल प्रदेश बागबानी विकास परियोजना को लागू किया जा रहा है। परियोजना के तहत प्रदेश में सेब, नाशपाती व अखरोट के पौधे किसान समूहों में वितरित किए जाएंगे, जबकि आम, लीची, अमरूद और नींबू प्रजाति के फलों के 14406 पौधों को 28 सब-ट्रॉपिकल समूहों को बेचा गया है।

फलों के लिए अपग्रेड हो रहे पैकिंग हाउस

सरकार राज्य में फलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में नए शीत भंडारण, पैकिंग हाउस स्थापित करने और मौजूदा शीत भंडारण तथा पैकिंग हाउस के स्तरोन्नयन के लिए कार्य कर रही है। राज्य सरकार ने प्रदेश में बाजार मध्यस्थता योजना के तहत नींबू प्रजाति के फलों के खरीद दामों में भी वृद्धि की है। प्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को भी बढ़ावा दिया गया है।

योजनाएं एक से बढ़कर एक

हिमाचल सरकार ने बागबानी क्षेत्र को बढ़ावा देने और किसान समुदाय की सुविधा के लिए पुष्प क्रांति योजना, मुख्यमंत्री मधु विकास योजना, मुख्यमंत्री ग्रीन हाउस जीर्णोद्धार योजना आरंभ की है। इसके अतिरिक्त किसानों को एंटीहेलनट की सुविधा भी दी जा रही है। प्रदेश में एशियन विकास बैंक द्वारा सब-ट्रॉपिकल फलों के विकास के लिए योजना और मशरूम के विकास योजना को स्वीकृति की गई है। हिमाचल में प्रायोगिक आधार पर रबी मौसम के दौरान सेब के लिए छह ब्लॉक और आम के लिए चार ब्लॉक में मौसम आधारित फसल बीमा योजना शुरू की गई थी।

 किसानों से उत्साह जनक प्रतिक्रिया मिलने और इसके सफल कार्यान्वयन से इस योजना के तहत कवरेज साल दर साल बढ़ रही है। मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत साल 2018-19 में 81 हजार 173 बागबानों ने बीमा करवाया था। इसमें 72073 बागबानों को 44.09 करोड़ की बीमा राशि का प्रभावित बागबानों को भुगतान किया गया।

पुष्प उत्पादन को भी बढ़ावा

प्रदेश में पुष्प उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए प्रदेश सरकार पुष्प उत्पादन को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रही है। पुष्प उत्पादन स्वरोजगार का एक प्रभावी साधन बन सकता है, इसलिए ग्रीन हाउस निर्मित किए जा रहे हैं। प्रदेश में प्रतिकूल मौसम और बदलाव के कारण बागबानी फसलों को होने वाले नुकसान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, इसलिए बागबानों को परामर्श दिया जा रहा है कि वे सिंचाई के लिए पर्याप्त जल सुनिश्चित करने के उपरांत ही नए पौधे लगाएं।

शिमला में सेब पर ही फोकस

जिला शिमला में बागबानी का लगातार विस्तार हो रहा है। जिला में सेब उत्पादन सहित क्षेत्रफल में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। हालांकि जिला में सेब के अलावा बागबान अन्य फलों की भी बागबानी कर रहे हैं, मगर जिला में बागबान सेब को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं। जिला शिमला में बागबान मुख्य रूप से सेब का उत्पादन कर रहे हैं। शिमला के कोटखाई, कोटगढ़, कुमारसैन, ठियोग, मतियाना सहित चौपाल क्षेत्र में सेब ज्यादा उत्पादित हो रहा है। समय के साथ-साथ बागबानों ने बागीचों में नई वैरायटी के बागीचे तैयार करने शुरू कर दिए हैं।

 बाजारों में डिमांड के हिसाब से वैरायटी तैयार की जा रही है। जिला में करीब 48 हजार 178  हेक्टेयर पर बागबानी हो रही है। जिला में बागबान सेब के साथ साथ चेरी, नाशपाती, पलम, अखरोट की भी बागबानी कर रहे हैं। जिला में साल 2019 व 2020 के दौरान बागबानी क्षेत्रफल पर चार लाख 44 हजार 837 मीट्रिक टन फल का उत्पादन हो रहा है। बागबानी को बढ़ावा देने के लिए बागबान विभाग द्वारा विश्व बैंक पोषित सहित अन्य कई बड़ी योजनाएं शुरू की गई हैं। राज्य सरकार बागबानों को विभिन्न वैरायटी के पौधे उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा विभाग द्वारा बागबानों को फसलों के संरक्षण सहित बागबानी के उपकरण मुहैया करवाए जा रहे हैं। इसके लिए विभाग द्वारा सबसिडी प्रदान की जा रही है।

पैदावार के नए आयाम

घुमारवीं की पनोह पंचायत के सनौर गांव के जीत राम ने सब्जी उत्पादन के साथ ही अन्य पैदावार में भी नए आयाम स्थापित किए हैं। वह हिमाचल प्रदेश फसल विविधिकरण प्रोत्साहन परियोजना चरण-एक के तहत बकरोआ उपयोजना के एक लाभार्थी हैं। उनके पास 1.45 हेक्टेयर कृषि भूमि है, जिसमें से 1.35 हेक्टेयर पर वह खेती करते हैं। बकरोआ उपयोजना की सनौर गांव की 10.37 हेक्टेयर कृषि भूमि और 48 कृषक परिवारों को लाभ हुआ है। जीतराम का कहना है कि सरकार को बागबान, किसानों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए बेहतर प्रयास करने चाहिए।

ज़मीन पर नज़र नहीं आता सरकारी स्कीम का फायदा

हिमाचल प्रदेश में राज्य सरकार की सेब सहित मशरूम, कीवी, चेरी और अन्य फलों के विस्तार के लिए कई स्कीमें हैं। राज्य सरकार बागबानी को लेकर गंभीर भी है, मगर स्कीमें जमीन पर वैसे नहीं उतर पाई हैं, जैसा स्वरूप होना चाहिए था। फल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष व बागबान हरीश चौहान का कहना है कि प्रदेश में बागबानी उत्थान के लिए चलाए गए प्रोजेक्ट उतनी गति नहीं पकड़ पाए हैं, जितनी इनकी गति होनी चाहिए थी। प्रदेश में सेब के अलावा अन्य फलों के विस्तार के लिए भी राज्य सरकार गंभीर है।

इसके लिए करोड़ों का शिवा प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। हिमाचल सेब राज्य बन सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार की मंशा होनी चाहिए और चलाए जा रहे प्रोजेक्ट्स को धरातल पर उतारा जाना चाहिए। इसमें सरकार को सबसे पहले बागबानी बोर्ड का गठन करना चाहिए। बोर्ड में वैज्ञानिकों, बागबानों और प्रशासन को मिल कर कार्य करना पडे़गा। सभी प्रोजेक्ट्स को स्पीडअप किया जाना चाहिए, जमीनी स्तर पर उतारा जाना चाहिए। मार्केट की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। छोटे-छोटे गांव में सीए स्टोर ग्रेडिंग फोटिंग मशीन और प्रोसेसिंग यूनिट लगाए जाने चाहिए। इसके लिए राज्य सरकार द्वारा 50 प्रतिशत सबसिडी प्रदान की जानी चाहिए।

नहीं मिल पाता उतना लाभ

शिमला के बागबान विनोद नेगी का कहना है कि प्रदेश सरकार ने बागबानी विस्तार के लिए कई प्रोजेक्ट लाए हैं, मगर ये प्रोजेक्ट पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। ऐसे में बागबानों को इसका उतना लाभ नहीं मिल पा रहा, जितना मिलना चाहिए था। राज्य सरकार विस्तार के लिए प्रोजेक्ट तो शुरू कर देती है, मगर वे गति नहीं पकड़ पाते हैं। इससे में राज्य सरकार के गंभीरता पर सवाल खडे़ हो जाते हैं।

कमाल का है यह शिवा प्रोजेक्ट

राष्ट्रपति आवार्ड प्राप्त कर चुके बिलासपुर के प्रगतिशील बागबान हरिमन शर्मा का कहना है कि प्रदेश सरकार द्वारा एचपी शिवा के नाम से जो प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। उसका लाभ बागबानों को मिलेगा। करोड़ों रुपए की राशि प्रोजेक्ट के तहत स्वीकृत हुई है। वहीं, साथ ही इस प्रोजेक्ट में बागबानों की समस्या को ध्यान में रखते हुए कई नए प्रावधान भी किए गए हैं, ताकि बागबानों को इसका लाभ मिल सके। इस प्रोजेक्ट के तहत जहां विभिन्न किस्मों के पौधे लगाए जाएंगे। वहीं, मौसमी के उत्पादन को लेकर जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे सराहनीय हैं।

 वहीं, अब निचले हिमाचल में सेब की पैदावार भी होने लगी है। यदि एचपी शिवा प्रोजेक्ट को सरकार द्वारा लागू किया जाएगा, तो इसका लाभ बागबानों को मिलेगा। एचपी शिवा प्रोजेक्ट बागबानों के लिए वरदान साबित होगा। सरकार को जिला में बेहतर पैदावार होने वाले फलों के राजा आम के उत्पादन के साथ ही मार्केटिंग सुविधा मुहैया करवाने को लेकर भी उचित कदम उठाने चाहिए।

बिलासपुर में स्थिति पहले से बेहतर

जिला बिलासपुर में बागबानी की स्थिति पहले से बेहतर हो रही है। बागबानी में नए प्रोजेक्ट आ रहे हैं, जो कि बागबानों के लिए वरदान बन रहे हैं। एक ओर जहां पैदावार बढ़ रही है, वहीं, दूसरी ओर साथ ही बागबान भी लाभान्वित हो रहे हैं।  जिला में एचपी शिवा प्रोजेक्ट के अंतर्गत भी फलों के विस्तारीकरण का कार्य किया जा रहा है, जिसमें जिला में लीची की खेती को बढ़ावा देने को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं। बागबानी विभाग की मानें तो हर साल जिला में 8398 क्षेत्र में फलों की पैदावार होती है, जिसमें फलों के राजा आम, लीची, अमरूद, नींबू की पैदावार होती है। हर साल 66 सौ मीट्रिक टन फलों का उत्पादन जिला में होती है, जिसमें अकेले फलों के राजा आम की पैदावार 44 सौ हेक्टेयर पर होती है।

 यहां आम की पैदावार 45 सौ मीट्रिक टन आम का उत्पादन होता है।  फलों के राजा आम की रिकॉर्ड पैदावार होती है, लेकिन मार्केटिंग सुविधा नहीं मिलने के चलते आम की फसल की बेकद्री होती है। अन्य लीची, अमरूद, नींबू की कम पैदावार होती है। आम की फसल की बात करें, तो यहां बेहतर पैदावार होने के बाद भी बागबान निराश होते रहते हैं। हालांकि सरकार की ओर से हिमफैड के माध्यम से किसानों की सुविधा के लिए कलेक्शन सेंटर भी खोले जाते हैं, लेकिन उचित दाम नहीं मिल पाने के चलते बागबानों को निराशा होती है, लेकिन पहले से अधिक दाम बागबान को मिलते हैं।  पिछले करीब एक दशक में आम और लीची की पैदावार में वृद्धि हुई है। अब लीची की पैदावार बढ़ाने के लिए विभाग प्रयास कर रहे हैं, जिसमें अभी हाल ही में सरकार द्वारा राज्य के लिए स्वीकृत किया गया करीब 1688 करोड़ का एचपी शिवा प्रोजेक्ट कारगर साबित होगा।

सरकार की ओर से बागबानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई गई हैं। अभी हाल ही में बागबानों के लिए एचपी शिवा प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, जिसके तहत बागबानों को लाभान्वित किया जाएगा। यह प्रोजेक्ट बागबानों की आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए मील का पत्थर साबित होगा

विनोद कुमार, उपनिदेशक, उद्यान विभाग बिलासपुर

बागबानी बजट के दो हिस्से…प्लान और नॉन प्लान

बागबानी विभाग की ओर से अपने बजट को प्लान और नॉन प्लॉन दो भागों में बांटा गया है। प्लान में सभी सरकारी योजनाएं रखी गई हैं, जिसमें विभिन्न योजनाआें के तहत पैसा रिलीज किया जाता है। इसके अलावा नॉन प्लान में भी कुछ योजनाएं रखी जाती हैं, लेकिन इसमें ज्यादातर कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन, मेडिकल बिल समेत अन्य ऐसे खर्चें हैं, जो कि कार्यालय चलाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। नॉन प्लान में इस साल के बजट में ऑफिस ईमारत के रखरखाव के लिए 10.89 लाख का बजट पारित किया गया है। मार्केटिंग और क्वालिटी कंट्रोल के लिए 78.49 लाख, मुख्यमंत्री किवी प्रोत्साहन और मधु विकास योजना के लिए 0.01 लाख, सेब बागबानों के लिए एंटी हेलनट स्ट्रक्चर के लिए 2000.00 लाख, शहद प्रोडक्शन और प्रोसेसिंग योजना के लिए 667.00 लाख, जबकि महक योजना के लिए 500.00 लाख का बजट रखा गया है।

इसी तरह नॉन प्लान में और भी कई तरह की ऐसी योजनाएं हैं, जिनके लिए विभाग की और से अगल-अलग बजट का प्रावधान किया गया है। नॉन प्लान का बजट 21764.01 लाख रखा गया है। दूसरी तरफ प्लान बजट में कई स्कीमें रखी गई हैं। इस बार प्लान बजट के लिए 33194.00 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है। किसानों की ट्रेनिंग के लिए विभाग की ओर से 30.00 लाख रुपए, मशरूम की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 293.56 लाख, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए 2500.00 लाख रुपए, विश्व बैंक की ओर से चलाए जा रहे देव प्रोजेक्ट के लिए 12000.00 लाख, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के लिए 900.00 लाख, नेशनल बेंबू मिशन के तहत 2.00 लाख, जबकि अन्य मेजर कार्यों के लिए 680.00 लाख रुपए का बजट रखा गया है।

रिसर्च के लिए पैसा

रिसर्च और एजुकेशन के लिए 10000.00 लाख का बजट अलग से रखा गया है। विभाग की ओर से प्लान और नॉन प्लान के लिए मिलाकार 54958.01 लाख का बजट रखा गया है। विभाग द्वारा बजट जिला को योजनाओं के तहत ही बजट प्रदान किया जाता है। इसके अलावा डिमांड पर जिला में तैनात उपनिदेशकों व एसएमएस को बजट उपलब्ध करवाया जाता है।


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