श्री गोरख महापुराण

By: Nov 7th, 2020 12:12 am

कानिफानाथ बोले कि माता जी! आपके बेटे ही ने उन्हें छुपा रखा है। यदि मेरी बात पर आपको विश्वास नहीं है, तो अपने पुत्र से ही पूछ कर  देख लो। पूरी जानकारी हासिल करके ही मैं उन्हें यहां ढूंढने आया हूं। फिर गोपीचंद की तरफ देखकर बोले, राजन अब तो बता दो कि आपने हमारे गुरु देव को कहां छुपा रखा है? राजा गोपीचंद को अपनी चोरी पकड़े जाने का काफी दुख हुआ। उनसे कोई उत्तर नहीं दिया गया। तब मैनावती ने ही पूछा यदि तुझसे कोई भूल हुई है, तो बता तो सही। उत्तर क्यों नहीं देता…

गतांक से आगे…

वह सोचने लगे यदि लोमावंती की बात गलत हुई और माता की बात सच हुई तब तो बहुत बड़ा अपराध हो गया। मुझे तो अपराध के प्रायश्चित का भी ज्ञान नहीं है। यह सोचकर वह माता से बोले अब कोई नाथ पंथी योगी इधर से आएगा, तो मैं जरूर दीक्षा ले लूंगा। यह वचन देने के पश्चात ही उन्हें कानिफानाथ योगी के आने की सूचना मिली।

तभी वह अपने दरबारियों के साथ जाकर कानिफानाथ को राज भवन में ले आए। मंत्री ने कानिफानाथ के शिष्यों के रहने की व्यवस्था कर दी। कानिफानाथ को रत्नजडि़त सिंहासन पर विराजमान कर गोपीचंद ने योगी की तन, मन, धन से पूजा-अर्चना की। जब मैनावती को पता चला कि मेरा बेटा कानिफानाथ योगी को राजभवन में ले आया है, तो वह अपनी शय्या से उठकर राजभवन में आ पधारीं। जहां कानिफानाथ सिंहासन पर विराजमान थे।

जब कानिफानाथ का राजभवन में अधिक आदर सत्कार हो गया तब मैनावती कानिफानाथ के नजदीक आइर्ं और हाथ जोड़कर चरण रज लेकर प्रणाम किया। इसके उपरांत प्रार्थना के स्वर में बोली, हे योगीनाथ! मेरे अहोभाग्य जो आप इस नगरी में पधारे हैं। अब से लगभग बारह वर्ष पूर्व यहां एक योगी जालंधरनाथ आए थे, जिनके सिर के ऊपर घास का गट्ठर अधर रहा करता था। उन्होंने मेरी कितनी परीक्षाएं लेने के उपरांत दीक्षा देकर अपनी शिष्या बनाया था और मेरे सिर पर हाथ रखकर अमरत्व प्रदान किया था। जब से वह गए हैं तब से उनके दर्शन नसीब नहीं हुए। कानिफानाथ बोले, आपने भी उनकी कोई सुध नहीं ली और न ही उन्हें तलाश किया। इतना सुनकर मैनावती बोली वह तो मुझे बिना बताए ही कहीं चले गए। मेरी तो मनोकामना भी मन में ही रह गई। मैं तो अपने बेटे गोपीचंद को उनके चरणों में डाल अमरत्व दिलवाती।

राज माता की बात सुनकर कानिफानाथ बोले, माता! हम दोनों के गुरु जालंधरनाथ योगी ही हैं। वह अब भी आपके राज्य की सीमा में हैं। जब आपने उनकी सुध नहीं ली, तो मैं गुरु जी को खोजता हुआ आपकी नगरी तक आ पहुंचा। राजा गोपीचंद पास ही में बैठे थे।  कानिफानाथ की बात सुनकर उनका मुख पीला पड़ गया। मैनावती बोली, यह तो समझ से बाहर की बात है कि गुरु जी इस नगरी में हैं और किसी को उनका पता ही नहीं। कानिफानाथ बोले कि माता जी! आपके बेटे ने ही उन्हें छुपा रखा है। यदि मेरी बात पर आपको विश्वास नहीं है तो अपने पुत्र से ही पूछ कर देख लो। पूरी जानकारी हासिल करके ही मैं उन्हें यहां ढूंढने आया हूं।

फिर गोपीचंद की तरफ देखकर बोले, राजन अब तो बता दो कि आपने हमारे गुरु देव को कहां छुपा रखा है? राजा गोपीचंद को अपनी चोरी पकड़े जाने का काफी दुख हुआ। उनसे कोई उत्तर नहीं दिया गया। तब मैनावती ने ही पूछा यदि तुझसे कोई भूल हुई है तो बता तो सही। उत्तर क्यों नहीं देता?

राजा गोपीचंद की तो बुद्धि ही खो गई थी। उनके  मुंह से कोई बात नहीं निकली। उन्होंने लज्जित होकर अपनी गर्दन झुका ली। अपने बेटे की करतूत सुन कर मैनावती को बड़ा दुःख हुआ। पुत्र होकर माता को धोखा दिया। न मालूम इसने मेरे गुरु का क्या अनिष्ट किया हो। वह आंखों में आंसू भरकर बोली, बेटा शीघ्र बता मेरे गुरु को कहां छिपाया है।

                                 – क्रमशः


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