अंतरराष्ट्रीय जीत के लिए प्रशिक्षक जरूरी: भूपिंद्र सिंह, राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

By: भूपिंद्र सिंह, राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक Dec 18th, 2020 12:06 am

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

क्या हिमाचल सरकार पंजाब, गुजरात आदि राज्य की तरह उत्कृष्ट खेल परिणाम दिलाने वाले प्रशिक्षकों को यहां लगातार कई वर्षों के लिए अनुबंधित  कर  प्रदेश के खिलाडि़यों को राज्य में ही प्रशिक्षण सुविधा दिला कर खेल प्रतिभा का पलायन रोक नहीं सकती है। इससे प्रदेश में खेल वातावरण बनेगा, साथ ही हर खेल प्रशिक्षक प्रेरित होकर काम करेगा…

आज जब इनसान ने विज्ञान में बहुत प्रगति कर प्रौद्योगिकी व चिकित्सा के क्षेत्र में नए-नए सफल शोध कर जीवनशैली को काफी आसान व सुविधाजनक बना लिया है, मगर शिक्षण व प्रशिक्षण में शिक्षक व प्रशिक्षक की भूमिका का महत्त्व आज भी वही है जैसा हजारों साल पहले था। महाभारत में कृष्ण सारथी नहीं होते तो क्या अर्जुन भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण व अन्य अजेय महारथियों को हरा पाते? अरबों की आबादी में किसी खेल विशेष में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए ज्ञानवान प्रशिक्षक का होना बेहद जरूरी  होता है। हमारे प्रदेश में खेल प्रशिक्षण के लिए वह वातावरण ही नहीं बन पाया है, जिसमें प्रशिक्षक खिलाड़ी से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट परिणाम दिला सके। खेल प्रशिक्षण दस साल से भी अधिक समय तक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। इतनी समय अवधि खेल प्रशिक्षण को देकर ही किस्मत वाला खिलाड़ी अपने प्रदेश व देश को गौरव दिला पाता है।

हिमाचल प्रदेश में लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम का कोई भी प्रावधान अभी तक नहीं बन पाया है। हिमाचल प्रदेश राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के प्रशिक्षकों को कभी विभिन्न विभागों की भर्तियों में ड्यूटी तो कभी मेलों व उत्सवों में हाजिरी भरनी पड़ती है। खेल प्रशिक्षक की नियुक्ति ही उच्च खेल परिणामों के लिए की गई होती है, मगर यहां पर प्रशिक्षकों को केवल मल्टीपर्पज कर्मचारी बना दिया गया है। हिमाचल प्रदेश के मेलों व उत्सवों में किसी और खेल का प्रशिक्षक किसी और ही खेल की प्ले फील्ड में नजर आता है। इसी तरह पुलिस आदि विभागों की भर्तियों में एथलेटिक्स प्रशिक्षकों की ड्यूटी तो समझ आती है, मगर वहां तो हर खेल के प्रशिक्षक को भेज दिया जाता है। नियमानुसार इन भर्तियों के लिए एथलेटिक्स प्रशिक्षक ही सक्षम है क्योंकि इस टेस्ट में केवल एथलेटिक स्पर्धाओं को ही रखा गया है। ऐसे में एथलेटिक्स प्रशिक्षक की ड्यूटी तो समझ आती है, मगर वहां अन्य खेलों कुश्ती, मुक्केबाजी, हैंडबाल व वॉलीबाल आदि के प्रशिक्षक का क्या औचित्य है, इस बात का उत्तर किसी के भी पास नहीं है।  कई बार इस कॉलम के माध्यम से दिव्य हिमाचल इस विषय पर खेल विभाग व भर्ती कराने वाली संस्थाओं को अगाह कर चुका है।

विभिन्न सरकारों ने खेल ढांचे में काफी तरक्की भी की है, मगर  क्षमतावान प्रशिक्षकों की नियुक्ति के बारे में हिमाचल में अभी तक कुछ भी नहीं हो पाया है। स्तरीय प्रशिक्षकों के बिना उत्कृष्ट प्रदर्शन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जो प्रशिक्षक खेल प्रशिक्षण से दूर रह कर मौज-मस्ती कर रहा है, वह तो खुश रहता होगा, मगर जो सच ही में प्रशिक्षण करवा रहा होगा वह जब कई दिनों तक खेल मैदान से दूर रहेगा तो फिर कौन अभिभावक अपने बच्चे को बिना प्रशिक्षक के मैदान में भेजेगा। हद तो तब हो जाती है जब राज्य में चल रहे खेल छात्रावासों में नियुक्त प्रशिक्षकों की ड्यूटी भर्तियों में लगा दी जाती है और खेल छात्रावास में रह रहे खिलाडि़यों को भी खेल प्रशिक्षण से दूर कर दिया जाता रहा है।

क्या प्रतिभा खोज से चयनित इन अति प्रतिभाशाली खिलाडि़यों को प्रशिक्षक से कुछ समय के लिए ही सही इस तरह प्रशिक्षण कार्यक्रम से दूर करना कहां तक उचित है। खेल छात्रावासों में नियुक्त प्रशिक्षकों की ड्यूटी खेल प्रशिक्षण के सिवा और कहीं भी नहीं होनी चाहिए। आजकल हर शिक्षित मां-बाप के दो और कई जगह तो एक ही बच्चा है, ऐसे में वह उसे उस क्षेत्र में उच्चतम शिखर तक ले जाना चाहता है जिसमें बच्चे की रुचि व उस क्षेत्र के लिए पर्याप्त प्रतिभा भी हो। आज का अभिभावक अपने बच्चों के कैरियर की खातिर ही सरकार की मुफ्त शिक्षा सुविधाओं को छोड़कर निजी क्षेत्र की महंगी मगर अधिक गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए लाखों रुपए खर्च कर रहा है। आज लाखों प्रतिभाशाली विद्यार्थी निजी कोचिंग संस्थानों में डाक्टर व इंजीनियर बनने इसलिए जमा दो की परीक्षा से कई वर्ष पहले पहुंच रहे हैं। इसी तरह अब खेल क्षेत्र में भी हो रहा है।

अभिभावक अपने बच्चों के लिए खेलों में भी कैरियर तलाश रहा है और इस सब के लिए अच्छी खेल सुविधाओं के साथ-साथ उच्च स्तरीय प्रशिक्षक भी लगातार कई वर्षों तक उसके बच्चों को मिलना चाहिए ताकि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता बनने का सफर सफलतापूर्वक पूरा कर सके। इसलिए देश में निजी खेल अकादमियों का चलन भी बढ़ रहा है। गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी के विश्व स्तर के परिणाम सबके सामने हैं। यह सब लगातार अच्छे प्रशिक्षण कार्यक्रम का ही नतीजा है। इस समय विभिन्न खेलों के लिए देश में निजी स्तर पर कई अकादमियां शुरू हो चुकी हैं। इन खेल अकादमियों को अधिकतर पूर्व ओलंपियन चला रहे हैं और यहां से अच्छे खेल परिणाम भी मिल रहे हैं। इन अकादमियों में जो विशेष है वह यह है कि यहां उच्च क्षमता वाला प्रशिक्षक लगातार उपलब्ध है। हिमाचल प्रदेश के पास आज विभिन्न खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड तैयार हैं।

 वहां पर या तो प्रशिक्षक हैं ही नहीं और जहां हैं भी, वे या तो प्रशिक्षण से बेरुख हैं या उनमें अच्छे स्तर के खेल परिणाम दिलाने की क्षमता ही नहीं है।  क्या हिमाचल सरकार पंजाब, गुजरात आदि राज्य की तरह उत्कृष्ट खेल परिणाम दिलाने वाले प्रशिक्षकों को यहां लगातार कई वर्षों के लिए अनुबंधित  कर  प्रदेश के खिलाडि़यों को राज्य में ही प्रशिक्षण सुविधा दिला कर खेल प्रतिभा का पलायन रोक नहीं सकती है। इससे प्रदेश में खेल वातावरण बनेगा तो हर खेल प्रशिक्षक प्रेरित होकर चाहेगा कि उसके शिष्य भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करें। इस सबके लिए हर प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ेगा। पिछले महीने राज्य के अवार्डी खिलाडि़यों, प्रशिक्षकों व प्रशासकों की खेल मंत्री राकेश पठानिया के साथ धर्मशाला में हुई बैठक में खेल मंत्री ने धरातल पर योजनाओं को उतारने का वादा किया है, देखते हैं कहां तक पूरा करते हैं।

ईमेलः bhupindersinghhmr@gmail.com


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