बोल कि लब आजाद हैं तेरे : पी. के. खुराना, राजनीतिक रणनीतिकार

By: पी. के. खुराना, राजनीतिक रणनीतिकार Dec 10th, 2020 12:10 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

भारतीय खाद्य निगम पर भी अडानी का बोर्ड लग गया है और पानीपत के पास नौल्था गांव में लगभग सौ एकड़ जमीन पर अडानी का विशाल गोदाम बन रहा है जहां हरियाणा और आसपास के राज्यों से खरीदी गई फसल का भंडारण होगा। भंडारण शायद एक गलत शब्द है, सही शब्द जमाखोरी है, तो अब पूंजीपतियों को जमाखोरी की इजाजत है। एक सीमा से ऊपर का भंडारण जमाखोरी होता है और अब वर्तमान सरकार ने पूंजीपतियों पर से भंडारण की सीमा हटाकर उन्हें जमाखोरी की छूट दे दी है…

‘बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे, बोल जबां अब तक तेरी है’- फैज़ अहमद फैज़ की यह क्रांतिकारी नज्म और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगौर की कविता ‘चित जेथा भय-शून्य’ मेरे लिए हमेशा से प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। स्वतंत्रता हमारी स्वाभाविक भूख है, स्वतंत्रता हमारी उन्नति की कारक है, स्वतंत्रता हमारे विकास की सूचक है और आज चारों ओर से इस स्वतंत्रता पर वार हो रहे हैं। आज स्थिति यह है कि सच जानना सबसे कठिन काम हो गया है। झूठ के इस साम्राज्य के खतरे अनगिनत हैं जिन्हें हम समझने को तैयार नहीं हैं। अधिकांश भारतीय अमरीका को एक आदर्श देश के रूप में देखते हैं जहां ताकत है, वैभव है, सामर्थ्य है, उन्नति है, प्रगति है, आधुनिकता है, खुलापन है, आज़ादी है।

अमरीका में अगर ये खासियतें हैं, ये विशेषताएं हैं तो उसका एक खास कारण है और वह कारण वहां के लोगों का स्वतंत्रता के प्रति उद्दात्त प्रेम। स्वतंत्रता की अवधारणा में असीम विश्वास। इसे थोड़ा ध्यान से समझना होगा। अमरीका की ताकत उसके पैसे, उसके विकास या उसके वैभव के कारण नहीं है। अमरीका की ताकत है वहां के लोग जिनकी तासीर में स्वतंत्र रहने और आगे बढ़ने की जिद कूट-कूट कर भरी है। एक समाज के रूप में जीवट और संकल्प की ऐसी कहानी केवल कुछ ही और देशों में देखने को मिलती है।

जोखिम, उद्यम और हरदम कुछ नया देखने, करने और पाने की आकांक्षा अमरीकन लोगों के मानो डीएनए में ही है। लेकिन एक बात और भी है, जिसने अमरीका को एक वैभवशाली और सफल देश बनाया है। उसे भी समझे बिना पूरी तस्वीर समझना मुश्किल है। यह एक जाना-माना सच है कि सफलता आपको आपके किसी एक काम से नहीं मिलती, लगातार किए गए कई छोटे-छोटे प्रयासों के कारण सफलता मिलती है। पत्थर पर अगर हथौड़ा मारें तो हो सकता है कि वह पहली ही बार में न टूटे और अगर हम उस पर लगातार हथौड़ा चलाते रहें तो वह अंततः टूट ही जाएगा। सेहतमंद शरीर किसी एक काम का परिणाम नहीं होता, हो ही नहीं सकता। व्यायाम, सही भोजन और मानसिक शांति मिलकर हमें स्वस्थ बनाते हैं और इसके लिए लगातार प्रयास करना होता है। रिश्तों की मजबूती किसी एक काम से नहीं होती बल्कि लगातार के प्रयासों से ही, ईमानदार प्रयत्नों से ही संभव हो पाती है। हम व्यवसाय में किसी एक काम से सफल नहीं होते बल्कि कई छोटे-छोटे प्रयास मिलकर बड़ी सफलता का कारण बनते हैं। इन सब उदाहरणों का एक ही अर्थ है कि सफलता हमें सिर्फ किसी एक प्रयास से नहीं मिलती बल्कि वह उन कई छोटे-छोटे और कई बार अलग-अलग किए गए प्रयासों का फल होती है जिन्हें हम लगातार अंजाम देते रहते हैं। सफलता बस किसी काम का ही परिणाम नहीं होती, यदि किसी एक काम से कोई सफलता कभी मिल भी जाए तो वह स्थायी नहीं होगी। स्थायी सफलता के लिए हमें लगातार प्रयास करने होंगे, सही निर्णय लेने होंगे, सही कामों का चुनाव करना होगा और सही आदतें अपनानी होंगी। अमरीका ने जो कई तरह के अलग-अलग काम किए, उनमें से एक है हर जगह चैक्स और बैलेंसेज़ का प्रबंधन। स्वतंत्रता है तो जवाबदेही भी है। स्वतंत्र इतना कि रचनात्मकता की, क्रिएटिवेटी की हर छूट और जवाबदेही ऐसी कि खरबपति हो या राष्ट्रपति, मनमानी करे तो एक्सपोज हो जाए और रोक दिया जाए।

राष्ट्रपति तक को छोटी अदालत भी जवाबदेह बना सकती है। व्यक्तिगत जिम्मेदारी और जवाबदेही वहां की सबसे बड़ी खासियत है। ट्रंप का उदय और पतन अमरीकी व्यवस्था की शानदार सफलता है। राष्ट्रपति रहते हुए भी शक्तियों के मामले में ट्रंप सीमा से बाहर नहीं जा पाए और उनके अपने ही दल के सीनेटर ने भी उनकी योजना पर पानी फेर दिया। ट्रंप की शिकायत यह रही कि वे देशहित और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए काम कर रहे है और मीडिया उन्हें काम नहीं करने दे रहा। उनकी शिकायत थी कि अखबार उन्हें समर्थन नहीं दे रहे हैं, बल्कि उनसे सवाल कर रहे हैं, उन्हें अनावश्यक रूप से जवाबदेह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आज सात दशक लंबी आजादी के बावजूद हम विकासशील देश हैं और अगस्त 1945 में अमरीकी बमबारी से तबाह हुए शहरों हिरोशिमा और नागासाकी वाला जापान आज विकसित देश है तो इसका एक कारण यह भी है कि हमने धीरे-धीरे उन आदतों को स्वीकार कर लिया है जो हमारी अवनति का कारण बनी हैं। हम आज भी गुलामी की मानसिकता के शिकार हैं और सच और झूठ को परखने की शक्ति गंवा बैठे हैं। भारतीय खाद्य निगम पर भी अडानी का बोर्ड लग गया है और पानीपत के पास नौल्था गांव में लगभग सौ एकड़ जमीन पर अडानी का विशाल गोदाम बन रहा है जहां हरियाणा और आसपास के राज्यों से खरीदी गई फसल का भंडारण होगा।

भंडारण शायद एक गलत शब्द है, सही शब्द जमाखोरी है, तो अब पूंजीपतियों को जमाखोरी की इजाजत है। एक सीमा से ऊपर का भंडारण जमाखोरी होता है और अब वर्तमान सरकार ने पूंजीपतियों पर से भंडारण की सीमा हटाकर उन्हें जमाखोरी की छूट दे दी है। फार्म बिल की खूबियों और खामियों पर जाए बिना भी यह समझना मुश्किल नहीं है कि कुछ गिने-चुने बड़े पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की नीयत से किए जाने वाले काम अंततः इस देश की आम जनता की क्रयशक्ति पर ऐसा कुठाराघात करेंगे कि घर का बजट संभाले रखना ही एक परियोजना हो जाएगा। जवाबदेही का अभाव हमारे पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है। जवाबदेही के अभाव के कारण हमारी पूरी शासन व्यवस्था खोखली हो गई है और भ्रष्टाचार का दीमक बहुत गहरे तक पहुंच कर देश को बर्बाद कर रहा है। पिछले छह वर्षों में इसमें एक तत्व और जुड़ गया है और वह है व्यवस्थित ढंग से झूठ का प्रसार। एक पूरी सेना झूठ गढ़ने, उसे संवारने और देश के कोने-कोने तक पहुंचाने में व्यस्त है। यह सेना इतनी बड़ी है कि उसके निस्तारण के लिए भी वैसी ही बड़ी और सशक्त सेना चाहिए, जो कि संभव नहीं दिखती। हम झूठ के ऐसे मायाजाल में फंसे हैं कि झूठ और सच का निर्धारण ही असंभव होता जा रहा है। ट्रंप अगर यह शिकायत करते हुए रुखसत होने वाले हैं कि मीडिया उनकी नहीं सुन रहा तो भारत में स्थिति यह है कि मीडिया जनता की बात नहीं सुन रहा।

सरकारी दमनतंत्र से पस्त मीडिया जनता की आवाज़ होने के बजाय सरकारी भोंपू बन गया है। यही कारण है कि आज फिर से फैज़ अहमद फैज़ की नज्म और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की कविता और भी प्रासंगिक हो गई है। अब जनजागरण का समय है। अब हमारे जागने का समय है। सरकारों से आशा करना व्यर्थ है। किसी भी सरकार से आशा करना व्यर्थ है। किसी भी दल की सरकार से आशा करना व्यर्थ है। सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। इसलिए अब जनजागरण ही एकमात्र उपाय है। आइए, अलख जगाते हैं।

 ईमेलःindiatotal.features@gmail.com


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