जानें भैरव जी की साधना के नियम

By: Dec 5th, 2020 12:14 am

भैरवसिद्धि के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति के रोग, दुख और भूतादि बाधाओं को दूर करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। व्यापार-बाधा एवं धन संबंधी कष्टों का निवारण भी भैरवनाथ के स्मरण मात्र से ही हो जाता है। वैसे तो भैरवनाथ के अनेक रूप हैं, किंतु रुद्रयामल तंत्र साधना में बटुक भैरव को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। तंत्रशास्त्र के आचार्यों ने प्रत्येक उपासना-कर्म की सिद्धि के लिए किए जाने वाले जप और पाठादि कर्मों के आरंभ में भैरवनाथ का आदेश प्राप्त करने का निर्देश दिया है…

-गतांक से आगे…

श्रीमद्भगवद गीता के 17वें अध्याय में लिखा है- मानसं चेतनाशक्तिरात्मा चेति चतुष्टयम्। यदा प्रिये परिक्षीणं तदा तद्भैरवं वपुः। अर्थात हे प्रिय! मन, बुद्धि, प्राण तथा जीवात्मा- जब ये चारों तत्त्व परिक्षीण हो जाते हैं तो जो शुद्ध प्रकाश रूप चितिशक्ति रह जाती है, वही श्रीभैरव रूप है। योग सूत्रों के अनुसार चिति की स्वरूप स्थिति ही कैवल्य है, यही परभैरवता है, अनेक कोटि ब्रह्मांड इसी के विलासमात्र हैं। इस परभैरवता की प्राप्ति ही समस्त उपासना का लक्ष्य है जिसमें जपादि द्वारा मन संकल्पशून्य निराधार अवस्था को प्राप्त होता है तथा जीवात्मा पूर्णाहंता का अनुभव करती है। सिद्धि से पहले की क्रिया साधना कहलाती है। बिना साधना के सिद्धि नहीं मिलती। जटिल साधना के बाद सिद्धि पाने वाले साधक को अन्य सिद्धियां प्राप्त करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती। केवल पहली बार की साधना ही कठिन साध्य होती है। तांत्रिक कर्मों की सिद्धि के लिए भैरवनाथ की कृपा प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इनकी कृपा के बिना अन्य तंत्र साधनाओं में विघ्न आते रहते हैं। अतः सभी तांत्रिक साधनाओं में भैरव का स्मरण करना चाहिए।

भैरवसिद्धि के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति के रोग, दुख और भूतादि बाधाओं को दूर करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। व्यापार-बाधा एवं धन संबंधी कष्टों का निवारण भी भैरवनाथ के स्मरण मात्र से ही हो जाता है। वैसे तो भैरवनाथ के अनेक रूप हैं, किंतु रुद्रयामल तंत्र साधना में बटुक भैरव को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। तंत्रशास्त्र के आचार्यों ने प्रत्येक उपासना-कर्म की सिद्धि के लिए किए जाने वाले जप और पाठादि कर्मों के आरंभ में भैरवनाथ का आदेश प्राप्त करने का निर्देश दिया है। लेकिन बहुत से साधक तो भैरव के नाम मात्र से ही भयभीत हो जाते हैं और इनकी साधना के फेर में नहीं पड़ना चाहते क्योंकि वे भैरव को बहुत उग्र देवता मानते हैं। कुछ अन्य साधक भैरव की साधना इसलिए उपयोगी नहीं मानते क्योंकि उनकी समझ में इनकी साधना वाममार्ग से होती है। इस विषय में हमारा कहना है कि उनकी यह समझ निराधार है। प्रत्येक देवी-देवता सात्विक, राजस और तामस स्वरूप वाले होते हैं। किंतु ये स्वरूप उनके द्वारा भक्त (साधक) के कार्यों की सिद्धि के लिए ही धारण और वरण किए जाते हैं। ‘जैसी स्थिति वैसी गति’ के अनुसार भैरवनाथ इतने कृपालु एवं भक्तवत्सल हैं कि सामान्य स्मरण एवं स्तुति से ही प्रसन्न होकर भक्त के संकटों का तत्काल निवारण करके उसे अनेक शक्तियों का स्वामी बना देते हैं।

                                                   -क्रमशः


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