लंबी मंदी को तैयार रहिए: डा. भरत झुनझुनवाला, आर्थिक विश्लेषक

By: डा. भरत झुनझुनवाला, आर्थिक विश्लेषक Dec 22nd, 2020 12:08 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

इन दोनों अनिश्चितताओं के कारण हमें सतर्क हो जाना चाहिए और लंबी मंदी के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए। यह सोच कर नहीं चलना चाहिए कि वैक्सीन बनने से यह मंदी शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी। सबसे विपरीत परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए अन्यथा वैसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर हम भारी संकट में पड़ेंगे, जैसे वर्षा पर निर्भर रहने वाला किसान कभी-कभी भारी संकट में पड़ता है। इस संबंध में हमें ऋण के उपयोग पर ध्यान देना होगा। तमाम सरकारों ने इस मंदी के दौरान भारी मात्रा में ऋण लेकर अपनी अर्थव्यवस्था के चक्कों को चालू रखा है जो कि प्रसन्नता का विषय है। लेकिन यदि यह मंदी लंबी खिंच जाती है तो सरकारों की उत्तरोत्तर ऋण लेने की क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा। ब्याज दरें बढ़ सकती हैं और सरकारों को ऋण मिलना कठिन हो सकता है। उस परिस्थिति में हम दोहरे संकट में पड़ेंगे…

इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में हमारी सकल घरेलू आय यानी जीडीपी में 24 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इसके बाद की दूसरी एवं तीसरी तिमाही में 8 से 10 प्रतिशत गिरावट रहने का अनुमान है जो कि सुधार का संकेत देता है। इसी प्रकार जून में वैश्विक संस्थाओं का आकलन था कि इस पूरे वर्ष 2020-21 में भारत की आर्थिक विकास दर ऋणात्मक 10 प्रतिशत रहेगी। लेकिन हाल में कई संस्थाओं ने इस गिरावट के अनुमान को 10 प्रतिशत से कम करके 7 प्रतिशत कर दिया है। इससे परिस्थिति में सुधार की संभावना दिख रही है। इन आकलनों के विपरीत विश्व बैंक ने कहा है कि हम वर्तमान में ही लंबी मंदी में प्रवेश कर चुके हैं। इन दोनों आकलनों के बीच हमें अपनी राह तय करनी है। अर्थशास्त्र के अनुसार चार प्रकार की मंदी होती है।

एक सामान्य मंदी होती है जैसे यदि किसी एक माह में पिछले वर्ष के उसी माह की तुलना में आय कम हो तो वह सामान्य मंदी कही जाती है। इसे आकस्मिक घटना माना जाता है और इसका दीर्घकालीन संज्ञान नहीं लिया जाता है, जैसे सिर दर्द हो जाए तो डॉक्टर के पास नहीं जाया जाता है। दूसरी मंदी एक तिमाही तक जारी रहती है। पिछले वर्ष की तिमाही एक की तुलना में इस वर्ष की उसी तिमाही में आय में गिरावट आए तो उसे ‘मंदी’ या ‘रिसेशन’ कहा जाता है। तीसरी मंदी वह होती है जो कि दो तिमाहियों तक लगातार रहे। जैसे यदि पिछले वर्ष की पहली दो तिमाहियों की तुलना में इस वर्ष की पहली दो तिमाहियों में आय में गिरावट आए तो इसे ‘तकनीकी मंदी’ अथवा ‘टेक्निकल रिसेशन’ कहते हैं। इसके बाद चौथी मंदी वह होती है जो कि कई वर्ष तक चलती है। इसे ‘डिप्रेशन’ कहा जाता है अथवा इसे हम लंबी मंदी कह सकते हैं। जैसे अमरीका में वर्ष 1929 से 1938 के 9 वर्षों में 7 वर्षों में आय में गिरावट आई थी। यह गिरावट कई वर्षों तक चली, इसलिए इसे डिप्रेशन कहते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्तमान मंदी को केवल तकनीकी मंदी यानी कि दो तिमाही की मंदी बताया है। उनके अनुसार हम फिलहाल लंबी मंदी में प्रवेश नहीं किए हैं। इसके विपरीत विश्व बैंक ने कहा है कि हम वर्तमान में ही लंबी मंदी अथवा डिप्रेशन में प्रवेश कर चुके हैं।

यह मंदी लंबी चल सकती है। इसलिए इन दोनों आकलनों के बीच हम मुद्राकोष की बात मानकर सुकून में रह सकते हैं कि दो तिमाही की यह तकनीकी मंदी शीघ्र समाप्त हो सकती है। लेकिन हमें विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसे शहर बरसात के समय अधिक वर्षा के लिए अपने नदी-नालों को सुव्यवस्थित करता है, भारी बरसात आए या न आए, उसी प्रकार हमें वर्तमान मंदी के लंबी मंदी में परिवर्तित हो जाने के लिए तैयार रहना चाहिए, लंबी मंदी आए या न आए। वर्तमान मंदी के संबंध में दो विशेष अनिश्चितताएं हैं। पहली यह कि वैक्सीन बन कर सफल होती है या नहीं? शीघ्र ही विश्व के तमाम लोगों को वैक्सीन उपलब्ध हो जाने की भी संभावना है। परंतु इसके साइड इफैक्ट भी देखे जा रहे हैं। एक संभावना यह भी है कि कोविड का वायरस अपना रूप बदल ले या म्यूटेट हो जाए और पुनः नए रूप में इस महामारी का फैलाव हो सकता है। यूरोपीय देशों में महामारी दोबारा बढ़ गई है। अमरीका में भी थम नहीं रही है। वैक्सीन से कितना लाभ होगा, यह समय ही बताएगा। अभी वैक्सीन के भरोसे रहना उचित नहीं दीखता है। दूसरी अनिश्चितता है कि कभी-कभी मंदी का प्रभाव तत्काल कम और कुछ समय बाद ज्यादा गहरा हो जाता है। जैसे वर्ष 2008 की मंदी में उस वर्ष विशेष यानी 2008 में विश्व की आय में मात्र 0.1 प्रतिशत की गिरावट आई थी, लेकिन अगले वर्ष 2009 में विश्व की आय में 2.5 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इन दोनों अनिश्चितताओं के कारण एक संभावना यह बनती है कि वर्तमान मंदी शीघ्र सामान्य हो जाए, जैसा कि मुद्राकोष ने आकलन किया है, अथवा अगले वर्ष गहरी मंदी में हम प्रवेश कर जाएं जैसी संभावना विश्व बैंक ने जताई है।

इन दोनों अनिश्चितताओं के कारण हमें सतर्क हो जाना चाहिए और लंबी मंदी के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए। यह सोच कर नहीं चलना चाहिए कि वैक्सीन बनने से यह मंदी शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी। सबसे विपरीत परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए अन्यथा वैसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर हम भारी संकट में पड़ेंगे, जैसे वर्षा पर निर्भर रहने वाला किसान कभी-कभी भारी संकट में पड़ता है। इस संबंध में हमें ऋण के उपयोग पर ध्यान देना होगा। तमाम सरकारों ने इस मंदी के दौरान भारी मात्रा में ऋण लेकर अपनी अर्थव्यवस्था के चक्कों को चालू रखा है जो कि प्रसन्नता का विषय है। लेकिन यदि यह मंदी लंबी खिंच जाती है तो सरकारों की उत्तरोत्तर ऋण लेने की क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा। ब्याज दरें बढ़ सकती हैं और सरकारों को ऋण मिलना कठिन हो सकता है। उस परिस्थिति में हम दोहरे संकट में पड़ेंगे। मंदी भी जारी रहेगी और वर्तमान में हम ऋण लेकर जिस मंदी को पार कर रहे हैं वह ऋण लेना भी कठिन हो जाएगा। इसलिए वैश्विक सलाहकारों का कहना है कि ऋण के उपयोग की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। यदि सरकारों ने ऋण लेकर सामान्य खर्च जैसे युद्ध, मूर्तियां, पुलिस अथवा सरकारी खपत इत्यादि में खर्च किए तो उस ऋण से नई आय उत्पन्न नहीं होगी, जबकि ऋण पर ब्याज का बोझ बढ़ता जाएगा।

तुलना में यदि लिए गए ऋण का हम सुनिवेश करें विशेषतः अपने देश में सुशासन लागू करने के लिए, श्रमिकों की कार्य क्षमता में सुधार करने के लिए अथवा नई तकनीकों के आविष्कार के लिए, तब उस ऋण से नया उत्पादन शुरू हो जाएगा और लिए गए ऋण कीहम अदायगी कर सकेंगे। मान लीजिए भारत सरकार ने ऋण लिया और ऋण लेकर कृषि में नए प्रकार की जैविक खाद का आविष्कार कर लिया, यदि ऐसा हुआ तो मंदी लंबी भी खिचे तो भी उस जैविक खाद के प्रभाव से हम मंदी के दौरान भी अपनी आय में वृद्धि हासिल कर सकते हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि जो ऋण लिए जा रहे हैं, उनका उपयोग सुशासन, जनता की कार्य क्षमता और नई तकनीकों के आविष्कार में करे, न कि वर्तमान सरकारी खपत को पोषित करने में।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com


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