लापरवाही की एसओपी

By: Dec 4th, 2020 12:02 am

इस वक्त सुशासन के आलेख ही सख्ती के आदेश न हुए, तो कोरोना के संदर्भों में हिमाचल पहले से कमजोर व अति घातक वातावरण की गिरफ्त में है। स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी मान चुके हैं कि पिछले दो महीनों की लापरवाही ने कोरोना को सिर पर बैठा दिया। नवंबर में संक्रमण की दर का चौदह फीसदी तक पहुंचना, हमारी व्यवस्था की पोेल खोलता है। कहने को हम कुछ दोषारोपण कर सकते या बहाने गिन सकते हैं, लेकिन कहीं न कहीं निर्देशों का अतिक्रमण और हिदायतों का स्खलन हुआ है। जो प्रदेश अपनी भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियों के कारण देश भर में कोरोना से लगभग अछूता समझा जा रहा था, वह नवंबर आते-आते राष्ट्रीय आंकड़ों में सबसे अधिक दोषपूर्ण व्यवहार में संलिप्त कैसे हो गया, इसके साक्ष्य हम सभी को अंगीकार करने होंगे और ये हमारे आसपास हैं। नवंबर में 320 लोगों की मौत का बड़ा कारण कोरोना बना, तो यह लापरवाही का ऐसा सिलसिला है जिसे सामाजिक से प्रशासनिक स्तर तक देखा जा सकता है। मार्च महीने के लॉकडाउन से अनलॉक के नवंबर तक की यात्रा में आरंभिक चौकसी, सतर्कता व इंतजामों की रोशनी में पूरा प्रदेश एकजुट था, लेकिन अब बिखराव, अवज्ञा, उल्लंघन व शिथिलता का माहौल स्पष्ट है।

बेशक सामाजिक समारोहों ने आवश्यक बेडि़यां खोल दीं या नागरिक समूहों ने सरकारी आदेशों की सरेआम अवहेलना की, लेकिन सार्वजनिक समारोहों की फेहरिस्त में राजनीतिक वर्चस्व की अठखेलियां भी कम घातक नहीं। कितने ही राजनीतिक समारोह इस दौरान जनता को निरंकुश मिजाज पालने को प्रेरित करते रहे, इसका भी हिसाब करें। यह प्रमाणिक तथ्य इसलिए भी है कि मुख्यमंत्री से लेकर विधायकों तक पॉजिटिव आने के सिलसिले कहीं न कहीं कसूरवार हैं। कसूरवार तो रोहतांग टनल का उद्घाटन समारोह भी माना जाएगा, क्योंकि वहां काफिलों के भीतर चौकसी व एसओपी में छेद देखे गए। कौन विधायक, पत्रकार, प्रशासनिक अधिकारी या नेता क्यों कोरोना पॉजिटिव हुआ, यह विश्लेषण प्रमाणित करता है कि आवश्यक शर्तें किस कद्र तोड़ी-मरोड़ी गईं। एसओपी के बावजूद सरकारी कार्यालयों में कोरोना की आसान घुसपैठ कैसे हुई। कमोबेश हर सार्वजनिक समारोह ने एसओपी का मजाक उड़ाया और इसके प्रमाण कोरोना आंकड़ों में दर्ज हैं। दूसरी ओर सामाजिक व्यवहार ने लॉकडाउन की रिक्तता में बेशर्मी ओढ़ ली या झूठे दिखावे के फ्रेम में खुद को नंगा छोड़ दिया।

तीसरा पक्ष यह भी कि प्रशासन भी ठहर सा गया या थका हुआ दिखाई दिया, जिसके कारण कोरोना काल की लक्ष्मण रेखा का घोर अपमान होता गया। लापरवाही की चौथी कड़ी में चिकित्सा का नेटवर्क अपनी सेवाओं में असफल हुआ। आरंभ में लगता था कि कोरोना से निपटने के लिए प्रदेश का चिकित्सा ढांचा सुदृढ़ होगा, लेकिन आज भी अगर आक्सीजन आपूर्ति से महरूम कोविड सेंटर या अस्पताल चल रहे हैं, तो इन नौ महीनों में क्या किया। मार्च महीने में हिमाचल पहुंचे एक तिब्बती की कोरोना से मृत्यु ने जो जलजला पैदा किया, क्या नवंबर के झटकों में तीन सौ बीस लोगों की मौत के प्रति हमारी वैसी संवेदना तत्पर है। बेशक इस स्थिति की पृष्ठभूमि में आर्थिक लाचारी, सामाजिक अनिश्चितता, वित्तीय मजबूरियां तथा सरकारों के ढुलमुल फैसले भी रहे। अपने-अपने भविष्य के प्रश्नों से लड़ रहे नागरिकों को कोरोना पाबंदियों के साथ सरकार से जो आश्वासन चाहिएं, उन पर भी गौर करना होगा। सरकारें अगर धीरे-धीरे विफलताओं का ठीकरा समाज पर ही फोड़ने लगेंगी या अपनी-अपनी खैर मनाओ जैसे संकेत पैदा होंगे, तो हर अनिश्चय की परिणति घातक ही होगी। बहरहाल एक बार पीछे मुड़कर देखने की जरूरत है और संयम के बीच कार्यशील बने रहने की हर चुनौती को दिल से स्वीकार करने का धर्म निभाना ही पड़ेगा।


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