सद्गुरु की महिमा

By: Dec 5th, 2020 12:14 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

लेकिन अगर शरीर को पानी की प्यास लगती है, तो एक गली में पहुंचता है और कहता है कि बड़े जोरों की प्यास लगी है, भाई साहब, बताइए पानी कहां मिलेगा? कोई बताता है कि यह गली, जहां आप हैं आगे दाहिने मुड़ती है, वहीं नल लगा हुआ है। वहां आपको पानी मिल जाएगा। इनसान जाता है, नल खोलता है। एक बूंद भी नहीं निकलती। तब क्या वहीं पर ठहर जाता है? नहीं।

फिर किसी से पूछता है, फिर कोई बताता है कि एक फलांग आगे चले जाओ, वहां पर भी नल लगा हुआ है पानी मिल जाएगा। वहां जाता है पानी नहीं मिलता। तब भी वह क्या वहीं बैठ जाता है कि दो-तीन फलांग चल कर भी आ गया, मुझे तो यहां पानी नहीं मिला, मैं तो बस अब यहीं बैठता हूं। प्यास उसके मन को तड़पाएगी और तब तक तड़पाएगी, जब तक उसे पानी नहीं मिलेगा। चाहे उसको कोई भागने के लिए कहे, चाहे आंधी चल रही हो, पर उसे तो चलना है, क्योंकि पानी की तड़प है। इसी तरह से अगर हरि की तड़प मन में है तो इनसान को जहां जाने को कहा जाता है, यदि वहां पर संतुष्टि नहीं होती तो आगे चलता है। अगर उसको हकीकत में आत्म साक्षात्कार नहीं कराया जाता कि ये अचल है, अमर है, अविनाशी है, कण-कण में व्याप्त है, हर जगह मौजूद है, प्रलय के साथ प्रलय नहीं होता, उत्पन्न के साथ उत्पन्न नहीं होता, जितने भी प्रभु के गुण बताए गए हैं, उस परमात्मा का अगर बोध नहीं होता, तो अवश्य इनसान को ये प्रयत्न करते रहना है।

लेकिन अगर इसकी प्यास वास्तव में इनसानों को है, तो इस कार्य को कभी कल के लिए नहीं छोडं़ेगे। अगर अभी मुझे प्यास लगी है, अभी मुझे भूख लगी है, तो क्या मैं कह दूंगा कि अभी मुझे समय नहीं है, मैं कल खा लूंगा, मैं परसों पानी पी लूंगा? नहीं जिसे वास्तव में भूख लगती है, प्यास लगती है तो थोड़ा समय व्यतीत होते ही उसका गला सूखने शुरू हो जाता है। इसी तरह इनसान को वास्तव में अगर परमात्मा की भूख और प्यास है, तो वह हमेशा परमात्मा की तरफ कदम बढ़ाएगा, वह इसे कभी भुला नहीं देगा, कभी बिसार नहीं देगा। जल के बिना मछली की जो हालत रहती है, भक्त के मन की प्रभु के बिना वही हालत हुआ करती है। इसलिए जो वास्तव में भक्त होता है, उसी के बारे में कहा जाता है।

ज्यों जल प्यारा माछरी, लोभी प्यारा दाम,

ज्यों मात प्यारा बालक, त्यों भक्त प्यारा राम। अर्थात मछली को जैसे जल प्यारा है, लोभी को दाम प्यारा है। जो लालची होते हैं, उनके लिए भी कहा जाता है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। इसी प्रकार भक्त को राम प्यारा होता है।

साधसंगत! प्यार निष्काम भाव से किया जाता है। जिस तरह से मां भी अपने बच्चे को प्यार करती है, तो उसमें कोई स्वार्थ की भावना नहीं हुआ करती है। वह यह नहीं सोचती कि बच्चे ने जन्म लिया है, ये बच्चा बड़ा होगा, कमाकर लाएगा, फिर वो मुझे खिलाएगा, इसलिए मैं इसकी परवरिश करूं, वो इसलिए परवरिश नहीं करती है। वो जानती है कि उसकी रगों का रक्त, उसकी प्रीति उसके साथ जुड़ी है।


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