श्री गोरख महापुराण

By: Dec 5th, 2020 12:15 am

आखिर गुरु ने उपदेश दे गोपीचंद को बद्रिकाश्रम जाकर तप करने की आज्ञा दी और पटरानी के बेटे मुक्तचंद को राजगद्दी सौंप दी। प्रधान सरदारों को उनकी योग्यता के अनुसार पुरस्कार वितरण किए और अंतपुर की स्त्रियों को दिलासा देकर समझाया कि अब आप मुक्तचंद को ही अपना सब कुछ समझो। छह महीने तक जालंधरनाथ और कानिफानाथ वहीं रहें और राज्यपाल की प्रबंध की व्यवस्था की…

 

गतांक से आगे…

पहली ब्रह्मचार रहना, दूसरी भूख लगने पर ही भोजन करना और तीसरी जब नींद ज्यादा सताने लगे तभी सोना। जालंधरनाथ बोले, तुम्हें अनमोल शिक्षाएं प्राप्त हुई हैं। अब तुम्हें अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होगी। परंतु तुम्हारी माता ने जो त्याग मार्ग अपनाया है और निवृत्ति मार्ग ग्रहण किया है। ऐसी नारी मैंने संसार में पहली बार देखी है। तुम्हारी माता ने सुमित्रा रानी की तरह ही ब्रह्म को प्यार किया है। मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक नमस्कार करता हूं। तभी मैनावती ने वहां आकर अपने गुरु और पौत्र को तीन दिन तक रोके रखा।

आखिर गुरु ने उपदेश दे गोपीचंद को बद्रिकाश्रम जाकर तप करने की आज्ञा दी और पटरानी के बेटे मुक्तचंद को राजगद्दी सौंप दी। प्रधान सरदारों को उनकी योग्यता के अनुसार पुरस्कार वितरण किए और अंतपुर की स्त्रियों को दिलासा देकर समझाया कि अब आप मुक्तचंद को ही अपना सब कुछ समझो। छह महीने तक जालंधरनाथ और कानिफानाथ वहीं रहें और राज्यपाल की प्रबंध की व्यवस्था की।

श्री गोरख महापुराण— 16वां भाग प्रारंभ

राजा गोपीचंद गुरु की आज्ञा के अनुसार बद्रिकाश्रम में तपस्या के लिए जाते हुए अपनी भूख मिटाने के लिए रास्ते में भिक्षा मांगकर उदरपूर्ति कर सफर करते जाते थे। जो भी गोपीचंद योगी को देखता वही आदर सम्मान करता। लोग कुछ समझाने का आग्रह करते परंतु गोपीचंद किसी भी बात पर ध्यान न देकर आगे चल पड़ते थे।

चलते-चलते गोपीचंद गौड़ बंगाले की निरमा नगरी के कुंए पर जा पहुंचे। यहां पर उनकी बहन चंपावती और राजा हुकमचंद राज्य करते थे। जो गोपीचंद के समान ही धनाड्य थे। चंपावती की दासी से जब गोपीचंद ने पानी पिलाने को कहा तो उसने गोपीचंद को पहचान लिया और महल में आकर उसने चंपावती तथा राजा हुकमचंद को गोपीचंद के योगी बन जाने की बात बताई।

राजा हुकमचंद अपनी पत्नी चंपावती को डांटने- फटकारने लगे कि —‘‘गोपीचंद के इस प्रकार नगरी में आने से लोग क्या कहेंगे। महाराज हुकमचंद का साला घर-घर भिक्षा मांगता फिर रहा है। तुम्हारा भाई मूर्ख है। क्षत्रिय के घर जन्म लेकर शूरवीर बनने के बजाय संत बन गया। इसने अपने धर्म का नाश तो किया ही साथ ही हमारा कुल भी लजाया है। ऐसे नालायकों को तो जन्म लेते ही मर जाना चाहिए।’’

अपने पति और ससुराल वालों की बातें चंपावती को पसंद नहीं आई। जब घर के दूसरे लोग भी बुरा-भला कहने लगे तो राजा हुकमचंद ने कहा, अब बुरा-भला कहने से कोई फायदा नहीं। वह हमारे दरवाजे पर आकर भिक्षा मांगे और पास-पड़ौस के लोग हमारे ऊपर अंगुली उठाएं इससे तो अच्छा यही है कि उसे अपने घुड़साल में ठहराकर खाना खिलाकर बाहर ही विदा कर दिया जाए।’’

यह सोचकर राजा ने दासी को भली प्रकार समझा कर गोपीचंद के पास भेजा कि बहन चंपावती से भेंट करने के लिए राजा ने आपको बुलाया है। राजा की आज्ञानुसार दासी गोपीचंद के पास जाकर कहने लगी, आपको बहन और बहनोई ने बुलाया है। पहले तो गोपीचंद ने सही नहीं समझा फिर बहन से मिलने की चाह में वह दासी के साथ चल पड़े।

                                       – क्रमशः


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