प्रदेश की 50 वर्षों की औद्योगिक यात्रा

प्रदेश 60 से अधिक देशों को प्रतिवर्ष लगभग 10000 करोड़ रुपए का निर्यात करता है, जो कि एक उपलब्धि है। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में वर्ष 2014-15 से सारे देश में व्यापार में सुगमता लाने का दौर शुरू हुआ। इस क्षेत्र में भी प्रदेश की प्रगति सराहनीय रही है। प्रारंभ में प्रदेश 17वें स्थान पर था तथा सुधारों की उपलब्धि का प्रतिशत 23.95 था। बाद में यह बढ़कर 65.48 प्रतिशत व तदनंतर  94 प्रतिशत से भी अधिक हो गया।  गत वर्ष 5 सितंबर को भारत सरकार द्वारा जो रैंकिंग जारी की गई, उसमें एक लंबी छलांग लगाते हुए, प्रदेश ने पूरे देश में सातवां स्थान प्राप्त किया व ‘‘सबसे तेजी से प्रगतिशील राज्य’’ के रूप में उभरा…

यदि हम प्रदेश की 50 वर्षों की औद्योगिक यात्रा का आकलन करें तो यह कहने में कोई भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रदेश का ‘‘धरातल से शिखर की ओर’’ जाने का यह सफर काबिलेगौर है। यदि हम प्रदेश की आर्थिकी पर नजर डालें तो वर्ष 1950-51 में प्राथमिक क्षेत्र यानी कृषि एक ऐसा सेक्टर था जिसका सबसे अधिक योगदान लगभग 58 प्रतिशत था व सेकेंडरी यानी उद्योगों का योगदान मात्र 7 प्रतिशत था। धीरे-धीरे औद्योगिक क्षेत्र का योगदान बढ़ता गया व कृषि क्षेत्र का घटता गया। 1990-91 में कृषि क्षेत्र का योगदान 26.50 रह गया व औद्योगिक क्षेत्र का बढ़कर 26.50 प्रतिशत हो गया।

आज कृषि क्षेत्र का योगदान घटकर 13.22 प्रतिशत रह गया है व सेकेंडरी क्षेत्र का 42.90 प्रतिशत हो गया है। यह सूचकांक स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि गत 50 वर्षों में इस पहाड़ी राज्य ने सराहनीय औद्योगिक विकास किया है। 1971 में जब प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ, तब औद्योगिकरण के नाम पर नाहन फांउडरी, मोहन मीकिन्स बू्ररी, नाहन व बिलासपुर की रोजिन तारपीन कारखाने, मंडी की 4 छोटी बंदूक बनाने वाली इकाइयां व गिनी-चुनी फर्नीचर तथा आटा चक्की के उद्यम थे। भौगोलिक दृष्टि से कठिन प्रदेश होने के बावजूद इन 50 वर्षों में प्रदेश ने देश के औद्योगिक मानचित्र पर विशेष रूप से पहाड़ी राज्यों में एक पिछड़े औद्योगिक राज्य से एक प्रगतिशील औद्योगिक राज्य के रूप में स्थान बनाया है।

इसका खुलासा समय-समय पर होने वाले विभिन्न सर्वेक्षणों में भी हुआ है। 1971 में पूर्ण राज्य बनने के पश्चात एक सशक्त औद्योगिक ढांचे का विकास शुरू हुआ, जिसके अंतर्गत परवाणू, बद्दी, मैहतपुर, बिलासपुर, शमसी, चंबाघाट व नगरोटा बगवां में औद्योगिक क्षेत्रों व बस्तियों का विकास किया गया। 1957 में देश में जिला उद्योग कार्यालयों की स्थापना की गई, जिसके अंतर्गत प्रदेश में भी यह कार्यालय खोले गए तथा प्रारंभ में एक जिला उद्योग अधिकारी 3 से अधिक जिलों का कार्य देखता था। खंड स्तर पर प्रसार अधिकारियों को नियुक्त किया गया। 1966 में राज्य के पुनर्गठन के पश्चात प्रत्येक जिले में जिला उद्योग अधिकारियों की नियुक्ति हुई। 1978 में जब जिला उद्योग केंद्र 100 प्रतिशत केंद्रीय वित्त पोषित सहायता से स्थापित हुए, तब प्रदेश में औद्योगिक विकास ने और गति पकड़ी। जिला उद्योग अधिकारियों के स्थान पर महाप्रबंधक जिला उद्योग केंद्र की नियुक्ति हर जिला में हुई। प्रदेश सरकारों द्वारा वर्ष 1971, 1980, 1984, 1991, 1996, 1999, 2004 व वर्तमान में अगस्त 2019 में औद्योगिक नीतियों की घोषणा से एक चरणबद्ध तरीके से उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनी।  जनवरी 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी की सरकार के समय प्रदेश को पहली बार औद्योगिक पैकेज मिला, जिसके फलस्वरूप औद्योगिक विकास को एक नई गति व दिशा मिली। बद्दी-बरोटीवाला तथा पांवटा साहिब का क्षेत्र फार्मा हब के रूप में उभर कर आया। आज हिमाचल एशिया महाद्वीप में दवा निर्माण क्षेत्र के रूप में एक विशेष स्थान रखता है। कोविड आपदा के समय यहीं से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा की देश व विदेशों में आपूर्ति की गई। आज प्रदेश में डॉक्टर रेडीज लैब, सिपला, कैडिला व वॉकहार्ट जैसी नामी फार्मा कंपनियां कार्य कर रही हैं। इसके अतिरिक्त कोलगेट, जिलैट, पी. एंड जी., अल्टराटैक सीमेंट, अंबूजा सीमेंट, वर्धमान इत्यादि बड़े कॉरपोरेट अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं।

प्रदेश 60 से अधिक देशों को प्रतिवर्ष लगभग 10000 करोड़ रुपए का निर्यात करता है, जो कि एक उपलब्धि है। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में वर्ष 2014-15 से सारे देश में व्यापार में सुगमता लाने का दौर शुरू हुआ। इस क्षेत्र में भी प्रदेश की प्रगति सराहनीय रही है। प्रारंभ में प्रदेश 17वें स्थान पर था तथा सुधारों की उपलब्धि का प्रतिशत 23.95 था। बाद में यह बढ़कर 65.48 प्रतिशत व तदनंतर  94 प्रतिशत से भी अधिक हो गया।  गत वर्ष 5 सितंबर को भारत सरकार द्वारा जो रैंकिंग जारी की गई, उसमें एक लंबी छलांग लगाते हुए, प्रदेश ने पूरे देश में सातवां स्थान प्राप्त किया व ‘‘सबसे तेजी से प्रगतिशील राज्य’’ के रूप में उभरा। ऑनलाइन सिंगल विंडो व रैंडम निरीक्षण प्रणाली किए गए सुधारों में विशेष स्थान रखते हैं। वैश्विक निवेशक सम्मेलन कराने का निर्णय वर्तमान सरकार की प्रदेश के इतिहास में प्रथम सोच थी। इस सम्मेलन में 96 हजार करोड़ के 703 समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित हुए और मात्र एक माह बाद ही 27 दिसंबर को प्रथम ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह का भी आयोजन किया गया। इसमें 236 प्रोजेक्ट्स की ग्राउंड बेकिंग की गई। कोरोना की अप्रत्याशित मार के कारण निवेश आकर्षित करने की  प्रक्रिया को  झटका  लगा है, परंतु आपदा के बावजूद 116 उद्यम स्थापित हो चुके हैं व अन्य पर निर्माण  कार्य प्रगति पर है।

प्रदेश सरकार ने  जिला ऊना में 1405 एकड़ भूमि पर बल्क ड्रग पार्क तथा नालागढ़-सोलन में 265 एकड़ भूमि पर मेडिकल डिवाइस पार्क की स्थापना के लिए अपने प्रस्ताव केंद्र सरकार को भिजवाए हैं। यदि ये स्वीकृत हो जाते हैं तो प्रदेश में निवेश व रोजगार को  और अधिक बढ़ावा मिलेगा। बल्क ड्रग पार्क से लगभग 8000 करोड़  का निवेश अपेक्षित है व अनुमानतः 16,000 व्यक्तियों को रोजगार मिलने की संभावना है। मेडिकल डिवाइसिज़ पार्क से लगभग 3000 करोड़ का निवेश होगा तथा अनुमानतः 7000 लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। इन 50 वर्षों में अन्य पहाड़ी राज्यों की तुलना में हिमाचल ने निश्चय ही प्रगति की है व देश के औद्योगिक मानचित्र पर एक आकर्षक निवेश स्थल के रूप में उद्यमियों के मन में जगह बनाई है।


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