सेना, राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति

By: Jan 23rd, 2021 12:06 am

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

हिमाचल के पंचायती चुनाव का तीन चरणों में समापन होने के बाद हर ग्राम पंचायत की बागडोर कहीं पुराने सिपाहसलारों के आधिपत्य कायम रखने से तो कहीं नए सेनापतियों के कि़ला फतह करने से सक्षम हाथों में चली गई है। इस बार अगर पंचायती चुनाव के परिणाम का सही ढंग से आकलन किया जाए तो ज्यादातर लोगों ने जात-पात और क्षेत्रवाद की राजनीति से ऊपर उठकर पढ़े-लिखे सुशिक्षित और इलाके की तरक्की में सहयोग करने वाले युवाओं पर भरोसा जताया है। रोहड़ू पंचायत से 21 और 22 वर्षीय छात्राओं का प्रधान पद के लिए चयनित होना पंचायती राज में नए युग एवं नई संभावनाओं की दस्तक है। किसान आंदोलन के लगभग दो महीने बाद 26 जनवरी की परेड में ट्रैक्टर रैली निकालने के फैसले पर अडिग दिख रहे किसानों के आगे सरकार ने अपने अडि़यल रवैए में नरमी लाते हुए अगले डेढ़ वर्ष के लिए तीनों कृषि कानूनों को स्थगित करने या रोक लगाने का फैसला लिया है। अमरीका में जो बाइडेन तथा भारतीय मूल की कमला हैरिस ने पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के लगातार अजीबोगरीब नाटक के बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का कार्यभार संभाल लिया है। उधर भारतीय क्रिकेट टीम ने आस्ट्रेलिया की अनुभवी और ताकतवर टीम को उन्हीं के घर में हराकर नया इतिहास रच दिया है। इस सबके बीच सेना से संबंधित कुछ खबरों ने सोचने पर मजबूर कर दिया, पहला किसान आंदोलन में भूतपूर्व सैनिकों का यूनिफॉर्म तथा मेडल लगाकर आंदोलन में शामिल होना।

 इस तरह का आचरण एक हद तक सही है, अगर इस फौजी पवित्र यूनिफार्म का इस्तेमाल देश की एकता और अखंडता के लिए किया जाए, पर अगर कोई भूतपूर्व सैनिक इसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहा है तो उस पर चर्चा होना जायज है। इसके अलावा बालाकोट हवाई हमले की जानकारी एक निजी न्यूज़ चैनल के पत्रकार को पहले से होना देश की सुरक्षा पर बहुत बड़ा सवाल है, उसकी जांच होना और उसमें लिप्त पाए गए किसी भी स्तर के अधिकारी या नेता के खिलाफ  कार्रवाई होना अति आवश्यक है और दोषियों के लिए एग्जांपलरी पनिशमेंट या सजा निर्धारित होनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति भविष्य में इस तरह के कृत्य में संलिप्त होने की हिम्मत न करे। आज हमारे देश में राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति पर आए दिन निजी न्यूज चैनलों पर ज्ञान बांटा जाता है और एक स्वयंभू न्यायायल बनकर किसी को भी राष्ट्र विरोधी या देशद्रोही घोषित करने का रिवाज सा चल पड़ा है। हमें आज यह समझना जरूरी है कि न ही कोई संवाददाता चिल्ला-चिल्ला कर निजी फायदे के लिए देशभक्ति तथा देशद्रोही की बात करने से राष्ट्रवादी या राष्ट्रभक्त हो सकता है, न ही कोई भूतपूर्व सैनिक अपने राजनीतिक फायदे के लिए फौजी वर्दी और मैडल लगाकर किसी को भी देशद्रोही ठहरा सकता है। मेरा मानना है कि अपने निजी फायदे को देश से ऊपर रखकर देशभक्ति की बात करना राष्ट्रवाद नहीं हो सकता। असली राष्ट्रवाद तो जात, धर्म, क्षेत्र तथा निजी फायदे से ऊपर उठकर देश की एकता, अखंडता और विकास एवं तरक्की के लिए सच्चे भाव से अपना काम करना है और इसका सही अर्थ समझना वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है।


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