कोचिंग में पिछड़ा घुमारवीं

By: Jan 13th, 2021 12:06 am

हिमाचल प्रदेश में हर जगह कोचिंग सेंटर्स व अकादमियों की भरमार है। 90 के दशक से इक्का-दुक्का अकादमियों के साथ शुरू हुआ सिलसिला अब सैकड़ों का आंकड़ा पार कर गया है। बड़ी नौकरी की ख्वाहिश लिए बाहर जाने वाले छात्रों के लिए ये अकादमियां कहीं न कहीं उनके लिए घर में तैयारी कर एचएएस-आईएएस-डाक्टर-इंजीनियर बनने की उम्मीद दे रही हैं। इन सभी के बीच अब सवाल यह उठता है कि बोर्ड परीक्षाओं में हर बार मैरिट में धाक जमाने वाला घुमारवीं क्यों अभी भी कोचिंग सेंटर्स के मामले में पिछड़ा हुआ ही है। हैरानी है कि यहां अभी भी इक्का-दुक्का ही संस्थान छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार कर रहे हैं। हालांकि जो संस्थान हैं, वे बेहतरीन काम कर रहे हैं, लेकिन जिला स्तर पर भी बच्चे एचएएस-आईएएस जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं से महरूम हैं। घुमारवीं में वर्तमान में क्या है कोचिंग सेंटर्स की स्थिति बता रहे हैं

संवाददाता — राजकुमार सेन, अनिल पटियाल

स्पोर्ट्स के बाद शिक्षा हब के तौर पर उभर रहे जिला बिलासपुर में कोचिंग सेंटर कम, लेकिन ट्यूशन सेंटर्स की भरमार है। जिला बिलासपुर के घुमारवीं कस्बे में दो कोचिंग सेंटर स्टूडेंट्स का भविष्य तराश रहे हैं। घुमारवीं में खुले इन कोचिंग सेंटर्स का इतिहास भी बहुत ज्यादा लंबा नहीं है, जबकि बैंकिंग सहित अन्य प्रकार की ट्यूशन देने के लिए कई सेंटर बच्चों के भविष्य तराशने में मददगार साबित हो रहे हैं। जिला बिलासपुर में कोचिंग सेंटर खुलने से पहले निजी स्कूलों व ट्यूशन सेंटर्स का प्रचलन था। ट्यूशन सेंटर के बाद नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं सहित प्रवेश परिक्षाओं के लिए बढ़े कंपीटीशन के बाद कोचिंग सेंटर खुलने का सिलसिला शुरू हुआ। छात्र प्रतियोगी सहित अन्य परीक्षाओं की तैयारियों के लिए इन कोचिंग सेंटर्स को तवज्जो दे रहे हैं। बिलासपुर जिला के घुमारवीं में कोचिंग सेंटर्स को खुले हुए अधिक समय नहीं हुआ है। ये दोनों कोचिंग सेंटर सात-आठ वर्ष के भीतर ही खुले हैं, लेकिन ये कोचिंग सेंटर बच्चों की पसंद बने हुए हैं। बिलासपुर जिला में कोचिंग सेंटर न होने के कारण यहां के बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं व प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग के लिए हिमाचल प्रदेश से बाहर चंडीगढ़ या फिर राजस्थान के कोटा में जाते थे। घुमारवीं में कोचिंग सेंटर खुलने के बाद स्टूडेंट्स को अध्ययन व कोचिंग करने का अवसर यहीं मिलने लगा। अब पहले की अपेक्षा कम बच्चे ही हिमाचल से बाहर जा रहे हैं।

डाक्टर इंजीनियर्स  बनने की होड़

बिलासपुर जिला के घुमारवीं के कोचिंग सेंटर्स में बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ भविष्य बनाने को भी तवज्जो दे रहे हैं। कोचिंग सेंटर्स में स्टूडेंट्स की ज्यादा दौड़ डाक्टर व इंजीनियर बनने के लिए लगी रहती है। कोचिंग सेंटर में ज्यादातर बच्चे नीट-जेईई की तैयारी के लिए पहुंच रहे हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं द्वारा जॉब प्राप्त करने वाले विषय, जिसमें बैंक क्लर्क, बैंक पीओ, आर्मी, पटवारी भर्ती, हिमाचल प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन से निकलने वाले पदों सहित अन्य विभागों में समय-समय पर निकलने वाले पदों के लिए छात्रों का रुझान कोचिंग व ट्यूशन सेंटर्स में अध्ययन की ओर दिखता है।

क्वालिटी पर सवाल क्यों…?

जिला में अभी तक आईएएस, एचएएस कोचिंग को लेकर कोई भी संस्थान नहीं खुल पाया है। इस तरह का बड़ा संस्थान न खुलने से अभी तक जिला के होनहार बच्चों को आईएएस, एचएएस के अलावा अन्य प्रकार की कोचिंग प्राप्त करने के लिए चंडीगढ़ या फिर दिल्ली का रुख करना पड़ रहा है। हालांकि जिला में बच्चों को अभी तक नीट और एनडीए के अलावा अन्य कोचिंग मिल रही है, जिसके सकारात्मक परिणाम ह्यभी सामने आए हैं, लेकिन बड़े स्तर का संस्थान न होने के चलते जिला के बच्चों को बाहरी राज्यों का रुख करना पड़ रहा है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चों को कोचिंग मुहैया करवाने के मसले में अभी तक जिला बिलासपुर पिछड़ चुका है। हालांकि जिला में अभी तक कुछेक ही कोचिंग संस्थान हैं। वहीं, अन्य अकादमियों में भी कोचिंग मुहैया करवाई जा रही है, लेकिन एक तरह से यहां गुणवत्ता को लेकर कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा। यह कोचिंग संस्थान बच्चों को स्थानीय स्तर पर ही रोकने में पूरी तरह से असफल साबित हो रहे हैं। अभिभावक भी गुणवत्ता को लेकर चिंतित हैं। अभिभावक स्थानीय स्तर पर भी अपने बच्चे को कोचिंग मुहैया करवाने के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन अधिकतर अभिभावक स्थानीय स्तर पर अपने बच्चों को कोचिंग मुहैया करवाने से किनारा करते हैं। इसमें सबसे मुख्य कारण गुणवत्ता को माना जा रहा है। बहरहाल, अभी तक जिला में केवल नीट, एनडीए या फिर अन्य स्तर की कुछ एक प्रतियोगी परीक्षाओं की ही कोचिंग ही मिल पा रही है, जिसके चलते बच्चों को बाहरी राज्यों में कोचिंग के लिए जाना पड़ रहा है, लेकिन यदि जिला में ही कोई नामी संस्थान खुल जाए, तो यहां के बच्चों को स्थानीय स्तर पर ही लाभ मिलेगा।

कम हुई दिल्ली-कोटा की दौड़

मेडिकल, इंजीनियरिंग, एनडीए, एनटीएसई व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए स्टूडेंट्स की पहली पसंद चंडीगढ़ या कोटा नहीं, बल्कि घुमारवीं बना हुआ है। विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परिक्षाओं के लिए स्टूडेंट्स को कोचिंग लेने के लिए सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ या फिर राजस्थान के कोटा को जाना पड़ता था। घर से दूर बड़े शहरों में रहने, खाने तथा पढ़ाई का खर्चा अधिक होता था, जिससे बड़े घरानों के बच्चे ही पढ़ाई कर पाते थे, जबकि मध्यम व गरीब वर्ग के लोगों के बच्चों के लिए इतना खर्चा उठाना मुश्किल हो जाता था, जिससे इन वर्गों के बच्चे कोचिंग सेंटर में नहीं पहुंच पाते थे। घर से दूर होने के कारण कई लोग लड़कियों को भी यहां से बाहर नहीं भेजते थे, लेकिन बिलासपुर के घुमारवीं में कोचिंग सेंटर खुलने से अभिभावकों व बच्चों की चिंताओं को काफी हद तक दूर किया है। अभिभावकों व बच्चों का इन शैक्षणिक संस्थानों में विश्वास बढ़ा है। यहां के बच्चे अभी यहीं तैयारी करके डाक्टर, इंजीनियर व सेना में ऑफिसर सहित विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं में पास होकर सेवाएं दे रहे हैं। छोटे बच्चों से लेकर बड़ी आयु तक के युवाओं को कोचिंग दी जा रही है। घुमारवीं में चल रहे इन कोचिंग सेंटर्स का सबसे अधिक लाभ युवतियों व आम परिवार से संबंध रखने वाले मेधावी बच्चों को मिल रहा है। इन वर्गों के बच्चे अकसर चंडीगढ़ या कोटा में जाकर महंगी पढ़ाई करने में वंचित रह जाते थे, लेकिन अब यहीं  यह सुविधा मिलने से लोगों को बड़ी राहत मिली है।

कोचिंग सेंटर कम…. ट्यूशन सेंटर ज्यादा

बिलासपुर जिला में बेशक कोचिंग सेंटर कम हों, लेकिन यहां ट्यूशन सेंटर्स की भरमार है। जिला के घुमारवीं में दो कोचिंग सेंटर खुले हुए हैं, जबकि तीन ट्यूशन सेंटर्स में बच्चों के भविष्य को तराशा जा रहा है। घुमारवीं में खुले इन कोचिंग सेंटर्स में पढ़ाई के लिए बिलासपुर जिला से ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश से स्टूडेंट्स पहुंच रहे हैं, लेकिन जिस तरह प्रतियोगी व एंट्रेंस एग्जाम का चलन बढ़ा है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि भविष्य में जिला बिलासपुर में कई कोचिंग सेंटर खुलेंगे। बिलासपुर जिला में अभी तक कोचिंग सेंटर्स का प्रचलन अधिक नहीं बढ़ पाया है। यहां निजी स्कूलों व ट्यूशन सेंटर्स की भरमार है। निजी स्कूलों के खुलने के बाद जिला बिलासपुर स्पोर्ट्स के बाद एजुकेशन हब बनने की ओर अग्रसर हुआ। खासकर घुमारवीं कस्बे में निजी स्कूल खुलने के बाद यहां प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारियों के लिए कोचिंग लेने का चलन भी बढ़ा, जिसके बाद घुमारवीं में मिनर्वा स्टडी सर्किल कोचिंग सेंटर शुरू हुआ। इसके बाद शिवा अकादमी ने भी प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारियों के लिए कोचिंग सेंटर खोला। इसके अलावा अन्य कई सेंटर भी बच्चों के भविष्य संवारने में मददगार साबित हो रहे हैं, जिससे प्रतियोगी सहित अन्य परीक्षाओं की तैयारी करने को जिला से बाहर जाने वाले स्टूडेंट्स यहीं परीक्षाओं की तैयारी करने लगे।

2013 में खुला पहला संस्थान

घुमारवीं में सबसे पहले मिनर्वा स्टडी सर्किल ने कोचिंग सेंटर शुरू किया। साल 2013-2014 से खुले इस कोचिंग सेंटर में स्टूडेंट्स को हर प्रकार के अध्ययन व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने का अवसर मिल रहा है। इसके बाद घुमारवीं में शिवा एकेडमी में भी बच्चे अध्ययन व प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए पहुंच रहे हैं। इसके अलावा बैंकिंग परिक्षाओं सहित अन्य परीक्षाओं की तैयारी के लिए कई सेंटर्स में बच्चों को अध्ययन करवाया जा रहा है, जिनमें एपीसी, माइन रूट व अध्ययन सहित अन्य कोचिंग सेंटर घुमारवीं में बच्चों का भविष्य बनाने में जुटे हैं।

मिनर्वा ने कर दिखाया

बिलासपुर जिला के घुमारवीं में खुले कोचिंग सेंटर्स व ट्यूशन सेंटर सहित अन्य सभी संस्थान बेहतर हैं, लेकिन मिनर्वा स्टडी सर्किल ने अपना अलग ही रुतबा बना रखा है। इस संस्थान में प्रवेश के लिए छात्रों में अच्छा खासा उत्साह देखा जा सकता है। स्कूल के बाद स्टडी सर्किल में बेहतर रिजल्ट प्रदान कर रहे मिनर्वा स्टडी सर्किल में तैयारी करके निकले सैकड़ों बच्चे डाक्टर, इंजीनियर व एनडीए सहित अन्य पदों पर सेवाएं दे रहे हैं, जिससे जिला बिलासपुर में मिनर्वा स्टडी सर्किल बच्चों व अभिभावकों की पहली पसंद बना हुआ है। जिला बिलासपुर के घुमारवीं में बेहतर संस्थान खुलने से छात्रों को अब कोचिंग प्राप्त करने के लिए बाहरी राज्यों की ओर दौड़ नहीं लगानी पड़ रही। घुमारवीं में मिनर्वा स्टडी सर्किल के अलावा शिवा एकेडमी, एपीसी एकेडमी, माइन रूट व अध्ययन सहित अन्य कई शिक्षण संस्थान बच्चों का भविष्य संवारने में मददगार साबित हो रहे हैं।

प्रवेश परीक्षा पास करने की होड़

कोचिंग व ट्यूशन सेंटर्स में आने वाले बच्चों में प्रवेश परिक्षा पास करने का भी क्रेज बना हुआ है। भविष्य संवारने के लिए बेहतर संस्थान में पढ़ाई कर करियर को उड़ान देना चाहते हैं। प्रवेश परिक्षाएं पास करने के लिए क्रैश कोर्स के साथ-साथ कई वर्षों का अध्ययन स्कूली समय से ही चल रहा है। छात्र स्कूलों के साथ-साथ कोचिंग सेंटर व ट्यूशन सेंटर्स में अध्ययन करते हैं। स्कूलों में पढ़ाई के बाद या पहले छात्र सेंटर्स में पढ़ाई करते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के कारण ट्यूशन व कोचिंग सेंटर्स में छात्रों की भीड़ कम हुई है।

हर विषय का अलग फीस पैकेज

कोचिंग सेंटर का फीस निर्धारण अपने स्तर पर ही होता है। जिला बिलासपुर के कोचिंग सेंटर्स में क्लास स्ट्रेंथ व छात्रों को प्रदान की जा रही स्टडी मटीरियल को ध्यान में रखकर फीस निर्धारण किया जाता है। संस्थानों में प्रति माह के हिसाब से फीस ली जाती है। कई कोचिंग सेंटर्स में सालाना पैकेज भी होता है। हर विषय की कोचिंग का खर्चा अलग होता है।

जीएसटी नंबर-कंपनी एक्ट के तहत चल रहे सेंटर

कोचिंग सेंटर चलाने के लिए कोई भी नियम निर्धारित नहीं है, जिस कारण इन्हें कंपनी एक्ट के तहत ही चलाया जा रहा है। सरकार, शिक्षा विभाग व प्रशासन के पास कोई भी रजिस्ट्रेशन व संबद्धता देने का प्रावधान नहीं है। कंपनी एक्ट व जीएसटी नंबर के आधार पर ही सिस्टम में अकादमियां चलाई जा रही हैं।

इंटरव्यू के बाद रखी जाती है फैकल्टी

कोचिंग सेंटर्स में फैकल्टी को भर्ती करने के लिए कोई विशेष नियम निर्धारित नहीं किए हैं। संस्थान अपनी मर्जी से ही स्टाफ भर्ती करता है। भर्ती के लिए बाकायदा इंटरव्यू रखा जाता है। घुमारवीं में खुले कोचिंग सेंटर्स में प्रोफेशनल फैकल्टी रखी गई है। कोचिंग सेंटर्स में फैकल्टी के लिए कोई कड़े मापदंड नहीं हैं। अलग-अलग संस्थान विषयों के हिसाब से ही फैकल्टी रखता है। इसके लिए किसी तरह के नियम तय नहीं किए गए हैं। हालांकि कोचिंग सेंटर्स की फैकल्टी क्वालिटी एजुकेशन पर ज्यादा फोकस करती है और साथ ही ऐसे स्टाफ को तवज्जो दी जाती है, जो बच्चों को स्मार्ट स्टडी के साथ एग्जाम करने के ट्रिक्स सीखा सके।

सरकार को भी करने चाहिए प्रयास

अभिभावक राजेश गौतम का कहना है कि एक ओर जहां जिला में बड़े स्तर का कोचिंग संस्थान नहीं है, वहीं दूसरी ओर कुछेक अकादमियां संचालित की जा रही हैं। वहां भी कहीं न कहीं गुणवत्ता की कमी नजर आती है। एक तरह से व्यापारीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिला में सरकार को कोचिंग इंस्टीच्यूट खोलने के लिए प्रयास करने चाहिए, ताकि बच्चों को बेहतर कोचिंग सुविधा मिल सके।

जिला स्तर पर एचएएस-आईएएस की कोचिंग के लिए कोई संस्थान नहीं

घुमारवीं के शिक्षाविद राजेंद्र कुमार का कहना है कि स्थानीय स्तर पर बेहतर कोचिंग न मिलने के चलते बच्चों को कोचिंग के लिए बाहर भेजना पड़ता है। स्थानीय स्तर पर संचालित कोचिंग इंस्टीच्यूट में कुछ गुणवत्ता की भी कमी रहती है। हालांकि जिला में कोई भी बड़ा संस्थान नहीं है, जिसके चलते अभिभावकों को फिर मजबूरी में अपने बच्चों को कोचिंग के लिए बाहर भेजना पड़ता है, जिससे खर्चा और ज्यादा उठाना पड़ता है।

एचएएस-आईएएस की कोचिंग नहीं मिलती

शिक्षाविद केडी लखनपाल के मुताबिक जिला में बच्चों को अभी तक मात्र नीट या फिर एनडीए के लिए ही कोचिंग सुविधा मिल पा रही है। वहीं, जिला में एचएएस या फिर आईएएस स्तर की कोचिंग सुविधा नहीं है, लेकिन जो अकादमियां कोचिंग दे रही हैं, वहां गुणवत्ता का ध्यान रखा जाना चाहिए, ताकि बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके।

एकेडमी में क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस

शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त ज्वाइंट डायरेक्टर सुशील पुंडीर ने कहा कि जिला में कुछेक अकादमियां ही संचालित की जा रही हैं, लेकिन अभी तक एचएएस व आईएएस कोचिंग की सुविधा नहीं है। वहीं, इसके अलावा मिनर्वा स्टडी सर्किल में नीट या फिर एनडीए की कोचिंग प्रदान की जा रही है। यहां बच्चों की शिक्षा को लेकर गुणवत्ता का ध्यान रखा जा रहा है। कई बच्चे उच्च पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वहीं, अन्य अकादमियों को भी गुणवत्ता का ध्यान रखना चाहिए।

जिला में कोई भी बड़ा इंस्टीच्यूट नहीं

विवेकानंद मॉडल स्कूल गेहड़वीं की प्रधानाचार्या नीरज चंदेल का कहना है कि स्थानीय स्तर पर बाहरी राज्यों की अपेक्षा कोचिंग की सुविधा नहीं मिल पा रही है। मात्र मिनर्वा स्टडी सर्किल ही अभी तक कोचिंग के लिए सफल रही है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, लेकिन अन्य बड़े स्तर का कोचिंग संस्थान जिला में नहीं है। इसके चलते बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा या फिर चंडीगढ़ का रुख करना पड़ रहा है।

फिलहाल मिनर्वा सेंटर से ही चल रहा काम

पीजी कालेज बिलासपुर के प्रो. सुरेश कुमार का कहना है कि जिला में अभी तक बड़े स्तर का कोचिंग संस्थान नहीं खुल पाया है। मिनर्वा अकादमी द्वारा ही कोचिंग दी जा रही है। वअन्य जो भी कोचिंग संस्थान हैं, उन्हें भी गुणवत्ता की ओर ध्यान देना चाहिए, ताकि बच्चों को बेहतर कोचिंग सुविधा मिल सके। बेहतर कोचिंग संस्थान न होने से बच्चों को कोचिंग के लिए बाहरी राज्यों का रुख करना पड़ रहा है।

…तो होगी आसानी

विजय मेमोरियल ग्रुप ऑफ इंस्टीच्यूट के पूर्व एसोसिएट प्रो. संदीप सांख्यान का कहना है कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बच्चों को कोचिंग मुहैया करवाना बहुत आवश्यक हो गया है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे स्टूडेंट्स कड़ी मेहनत करते हैं और इसके बाद ही उन्हें सफलता मिल पाती है, लेकिन जिला में स्थानीय स्तर पर ही कोचिंग सुविधा मिल जाए, तो बच्चों को और सुविधा मिल सकेगी। जिला में अभी तक एचएएस, आईएएस कोचिंग के लिए संस्थान नहीं खुल पाया है, जिसके चलते बच्चों को कोचिंग के लिए बाहरी राज्यों में जाना पड़ रहा है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App