पंचायती चुनाव में हिमाचल

By: Jan 19th, 2021 12:05 am

पंचायत चुनाव में हिमाचल के दर्शन करता समाज खुद से भी रू-ब-रू है, जबकि बनती बिगड़ती कहानियों के बीच राजनीति और राजनेता खड़े हैं। सभी ने जोर लगाया और पहले चरण की भूमिका में करीब 78 प्रतिशत मतदान के मायने लोकतंत्र की पृष्ठभूमि को प्रदेश में सुदृढ़ कर गए। नारी सशक्तिकरण के परिदृश्य में पंचायत चुनावों ने पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की दर बढ़ा दी। परिणामों की फेहरिस्त में तमाम अर्जित शाबाशियों में कहीं 22 वर्षीया रोहड़ू क्षेत्र की अवंतिका चौहान, तो कहीं बिलासपुर जिला की जागृति की बल्ले-बल्ले गूंज रही है। पंचायती राज चुनाव में खबरों के कई समुद्र बनेंगे और कहीं कोई तैर कर दूर किनारे तक पहुंच जाएगा, तो कोई डूब जाएगा।

ऐसे में मंडी के सांसद राम स्वरूप के भाई का पंच न बन पाना खासी चर्चा में आया है। चर्चाएं अपने कठोर नाखूनों से गिनती कर रही हैं, इसलिए शहरी निकायों का गठन करवटें बदल रहा है। कहीं कुछ तो छीना जा रहा है या इस छीना झपटी में कहीं हमारा मत ही तो नहीं लुट रहा। समीकरण बदलते नेताओं की तारीफ करें या यह चिंता करें कि किस तरह हमारे प्रतिनिधि पाले बदल-बदल कर हमारी आंखों में सुरमा डाल जाते हैं। नालागढ़, परवाणू या श्री नयना देवी नगरपरिषदों के हालिया चित्रण में किसे श्रेष्ठ मानें। कहां कतरब्यौंत सही या कहां जनता ने पासा पलट दिया। खैर जब चर्चा होगी, तो हाथ मलते सत्तारूढ़ दल को नयना देवी सरीखी नगरपरिषदों में लुटते समीकरणों का पश्चाताप होगा। श्री नयना देवी में कांगेस ने जो बटोर लिया, क्या इसके जवाब में भाजपा ने चूडि़यां पहन रखी थीं। नहीं, वहां भी खाते बदले जा रहे हैं और जब हम चुनावी मंथन में खोजा-पाया पर गौर से तवज्जों देंगे, तो जरूर सोचेंगे कि आखिर हमने बदला क्या। यह दीगर है कि इन तमाम कसरतों में नए मतदाता का जोश सिर चढ़ कर बोला। विजयी चिन्ह बनाते युवा प्रत्याशियों की भीड़ के बीच हम पल भर के लिए बेरोजगारी के आंकड़े भूल सकते हैं। परिणामें में झांकती सियासत के पास दूसरे पक्ष को हराने के तर्क और तरीका सामने आएगा, लेकिन मतदाता के सामने जो आएगा उसी से प्रदेश बदलेगा। गांव के मुद्दे कितने परवान चढ़े या ग्रामीण नीतियों के आधार पर चुनाव मुकम्मल हो पाएंगे, इस पर गौर करना होगा। मतदाताओं ने अपने भीतर कितनी जातियां, धर्म व वर्ग बांट लिए। मतभेद की वजह में स्वार्थ की कितनी दीवारें खड़ी कीं। यहां मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का यह आह्वान कि चुनाव की वजह से रिश्तेदारी खराब न करें, काफी अहमियत रखता है। विडंबना भी यही है कि पंचायत चुनाव अब सामाजिक चौपाल का नजरिया नहीं, बल्कि सत्ता और सम्मान की ऐसी इकाई बन चुके हैं, जहां प्रभाव और प्रभुत्व के लिए हर तरह की जंग जायज मानी जा रही है।

इसकी एक वजह पंचायत तक पहुंच रहे राष्ट्रीय संसाधनों पर एकाधिकार जमाने की जद्दोजहद भी बन रही है। गांव की विरासत में विकास चुनने का सामर्थ्य और वित्तीय हुकूमत को प्रदर्शित करने और अवसर पाने की रस्साकशी अब गली-मोहल्ले से घर-परिवार तक पहुंच गई है। बहरहाल पहले चरण के चुनाव परिणाम समाज के भीतर कई आईने खड़े कर रहे हैं। हम चाहें तो समाज को देख लें या समाज के भीतर पनपते आकाश को देख लें। सियासत इनमें अपना दस्तूर ढूंढ रही है और इसी आशय की घोषणाएं सामने आने भी लगी हैं। भाजपा दावा कर रही है सत्तर फीसदी चुनावी जीत में उसके अक्स की नुमांइंदगी है यानी जीत के बहुमत में भाजपा समर्पित लोगों का जमावड़ा है। बहुमत तो है और साथ ही साथ कहीं राजनीति के बाहुबली भी हैं। हर तरह के लोगों के संगम के बीच पंचायती चुनाव की सीमित परिपाटी में ही सही, कई पंचायतों ने समाज का दिल जीत लिया। निर्विरोध चुनी गई पंचायतों की शिनाख्त में समाज का कद बड़ा होता है, तो परिणाम के लक्ष्य भी उम्मीदों से भर जाते हैं। वहां राजनीति से ऊपर समाज के दर्पण में हम लोकतंत्र का वास्तविक आधार देख सकते हैं।


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