जानें भैरव जी की साधना के नियम

By: Jan 16th, 2021 12:16 am

शृणु देवि, महमंत्रमापदुद्धारहेतुमकम्। सर्वदुः खप्रशमनं सर्व शत्रु विनाशनम्।। अपस्मारादिरोगाणां ज्वरादीनां विशेषतः। नाशनं स्मृतिमात्रेण मंत्रराजमिमं प्रिये।। ग्रहराज भयानां च नाशनं सुखवर्धनम्। स्नेहाद् वक्ष्यामि ते मंत्रं सर्वसारमिमं प्रियम्।। प्रणवं पूर्व मुद्धृत्य देवी प्रणव मुद्धरेत्। बटुकायेति वै पश्चादापदुद्धारणाय च।। कुरुद्वयं ततः पश्चाद् बटुकाय पुनर्वतेत्। देवी प्रणव मुद्धृत्य मंत्रोद्धारमिमं प्रिये।। मंत्रोद्धारमिमं पुण्यं त्रैलोक्य चाअतिदुर्लभम्। अप्रकाश्यमिमं मंत्रं सर्वशक्ति समंवितम्।। स्मरणादेव मंत्रस्य भूत-प्रेत पिशाचिकाः। विद्रवत्यतिभीता वै काल रुद्रादिव प्रजाः।।…

-गतांक से आगे…

जिस प्रकार प्राचीन काल में शत्रु से लड़ते समय अपने शरीर के बचाव के लिए कवच पहना जाता था, ठीक यही स्थिति इस कवच की है। तंत्रादि की सभी साधनाओं में साधक अथवा साधना स्थल पर आने वाले किसी भी प्रकार के संकटों को यह कवच दूर रखता है। यह सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धियां देने वाला और साधनाओं को निर्विघ्न सफल करने वाला है।

श्रीबटुक भैरव स्तोत्र

आपदुद्धारक बटुक भैरव स्तोत्र शीघ्र फल देने वाला है। इस स्तोत्र का पाठ और साधना विधान निम्नलिखित है –

सूत उवाच-

मेरुपृष्ठे सुखासीनः देवदेवं त्रिलोचनम्।

शंकरं परिपप्रच्छ पार्वती परमेश्वरम्।।

पार्वत्युवाच-

भगवन् सर्वधर्मज्ञ सर्वशास्त्रागमादिषु।

आपदुद्धारणं मंत्रं सर्वसिद्धिविधायकम्।।

सर्वेषांचैव भूतानां हितार्थं वांछितं मया।

विशेषतस्तु राज्ञां वै शांतिपुष्टिप्रसाधनम्।।

अंगन्यास करन्यास देहन्यास समंवितम्।

वक्तुमर्हसि देवेश, मम हर्ष विवर्धनम्।।

ईश्वरोवाच-

शृणु देवि, महमंत्रमापदुद्धारहेतुमकम्।

सर्वदुः खप्रशमनं सर्व शत्रु विनाशनम्।।

अपस्मारादिरोगाणां ज्वरादीनां विशेषतः।

नाशनं स्मृतिमात्रेण मंत्रराजमिमं प्रिये।।

ग्रहराज भयानां च नाशनं सुखवर्धनम्।

स्नेहाद् वक्ष्यामि ते मंत्रं सर्वसारमिमं प्रियम्।।

प्रणवं पूर्व मुद्धृत्य देवी प्रणव मुद्धरेत्।

बटुकायेति वै पश्चादापदुद्धारणाय च।।

कुरुद्वयं ततः पश्चाद् बटुकाय पुनर्वतेत्।

देवी प्रणव मुद्धृत्य मंत्रोद्धारमिमं प्रिये।।

मंत्रोद्धारमिमं पुण्यं त्रैलोक्य चाअतिदुर्लभम्।

अप्रकाश्यमिमं मंत्रं सर्वशक्ति समंवितम्।।

स्मरणादेव मंत्रस्य भूत-प्रेत पिशाचिकाः।

विद्रवत्यतिभीता वै काल रुद्रादिव प्रजाः।।

 (साधना की इस सीरीज में हम विभिन्न देवताओं की उपासना के नियम पाठकों को बता रहे हैं। भिन्न-भिन्न देवताओं की उपासना के नियम भी भिन्न-भिन्न हैं। यह एक तथ्य है कि किसी देवता की उपासना से पहले उसकी साधना के नियम जान लेना अनिवार्य होता है। इससे साधना का रास्ता सहज हो जाता है। साधना के मार्ग में आनी वाली कठिनाइयों को तभी दूर किया जा सकता है, अगर आपने पहले से ही साधना के नियमों का अध्ययन किया हो। इस तरह साधना तभी सहज है, जब आप उसके नियमों से पूरी तरह वाकिफ हों।)


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