बेनकाब हो गई जिंदगी

By: Jan 14th, 2021 12:08 am

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रयोग के कारण अब इनसान के बजाय मशीनें आपस में ज्यादा बातें करेंगी और प्राइवेसी की समस्या और भी गहराएगी। यहां तक तो ठीक था, पर अब हमारी निजता ही नहीं, हमारा धन भी चोरों-ठगों-हैकरों के निशाने पर है। हम जानते हैं कि कुछ माह पूर्व दक्षिण कोरिया की लगभग आधी आबादी के क्रेडिट कार्डों का ब्योरा चोरी हो गया था। दक्षिण कोरिया के इन दो करोड़ लोगों के क्रेडिट कार्डों के ब्योरे के अलावा उनके नाम और सोशल सिक्योरिटी नंबर जैसी अहम जानकारियां भी चुरा कर उन्हें विभिन्न मार्केटिंग कंपनियों को बेच दिया गया था। दरअसल अधिकतर सरकारी एजेंसियां, टेलिकॉम कंपनियां और बैंक आदि अपना काम आगे अलग-अलग कंपनियों को ठेके पर देते हैं। इन कंपनियों के कर्मचारी ‘उधार के सिपाही’ हैं जो कुछ पैसों के लिए किसी भी तरह की जानकारी बांटने, बेचने आदि के लिए स्वतंत्र हैं…

तकनीकी प्रगति ने हमारे जीवन में क्रांति ला दी है और हमारे जीवन को कदरन आसान बना दिया है। कंप्यूटर का आविष्कार एक बड़ा मील-पत्थर था, फिर इंटरनेट ने इसमें एक और क्रांति ला दी। हालांकि इंटरनेट की क्रांति ज्यादातर शहरों तक सीमित रही, पर मोबाइल फोन ने इंटरनेट को गांवों तक पहुंचा दिया। गूगल के जादुई प्रभाव ने हमारे कामकाज को और भी आसान बना दिया। गूगल को ज्यादातर लोग विश्व का सर्वाधिक उन्नत सर्च इंजन ही मानते हैं जो हमें हमारी मनचाही जानकारी तुरंत उपलब्ध करवाता है। मोबाइल फोन आए तो हमारे कामकाज के तरीके में एक और बड़ा बदलाव आया और मोबाइल फोन और इंटरनेट के जुड़ जाने से जीवन फिर बदला। अब स्मार्टफोन के कारण मोबाइल ऐप्स ने तो मानो जादू ही कर दिया है। हम कहीं भी रहें, स्मार्टफोन के जरिए हमारा आफिस हमारे साथ चलता है।

दरअसल अब हमारी जिंदगी स्मार्टफोन से चलती है। स्मार्टफोन के सहारे हम दुनिया भर के अखबार पढ़ सकते हैं, खरीद-फरोख्त कर सकते हैं, किसी शो, बस, रेल, हवाई जहाज़ आदि की टिकटें बुक करवा सकते हैं, शेयर खरीद और बेच सकते हैं, फोन बैंकिंग के माध्यम से धन का लेन-देन कर सकते हैं। स्मार्टफोन की ही तरह प्लास्टिक मनी, यानी क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। हमारी जेब में क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड होने का मतलब है कि हमारा बैंक हमारे साथ चलता है। प्लास्टिक मनी का ही जलवा है कि बैंक में जमा हमारे धन के लेन-देन के लिए अब हमें बैंक जाने की आवश्यकता नहीं रही। स्मार्टफोन और क्रेडिट-डेबिट कार्ड के कारण हमारे जीवन को पर लग गए हैं, लेकिन फोन और क्रेडिट कार्ड के ही कारण हमारा जीवन बेनकाब और असुरक्षित भी हो गया है। इसे ज़रा विस्तार से समझने की आवश्यकता है। गूगल अब सिर्फ एक सर्च इंजन ही नहीं रह गया है, बल्कि यह एक डेटा और इंटरनेट कांग्लोमेरेट बन गया है। यह एक ऐसा दैत्य है जो अभी हमें बोतल में बंद नज़र आ रहा है जबकि यह बोतल से बाहर है और हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित कर रहा है। गूगल ने ऐसी कई कंपनियों का अधिग्रहण किया है जो हमारे जीवन पर कई तरह से निगाह रख सकती हैं और हमारे स्मार्टफोन जानते हैं कि हम कब कहां हैं, किस से बात करते हैं, कितनी बार बात करते हैं और कितनी देर बात करते हैं।

हमारे क्रेडिट कार्ड के कारण बैंकों को मालूम है कि हमारी खरीददारी का तरीका क्या है, हम कितनी खरीददारी करते हैं, कहां से खरीददारी करते हैं, कितनी बार और कितने मूल्य के सामान की खरीददारी करते हैं। कोविड के इस दौर में ऑनलाइन शॉपिंग में बेतरह उछाल आया है। इस प्रकार इंटरनेट, स्मार्टफोन और क्रेडिट कार्ड ने मिलकर हमारा जीवन आसान किया है, पर हमारी निजता भी समाप्त कर दी है। निजता पर हमला कई और तरीकों से भी होता है। आज हम तरह-तरह की मार्केटिंग कंपनियों के कॉल से परेशान रहते हैं। अजनबी फोन नंबरों से हर दिन हमें न जाने कितने फोन आते हैं। हम झुंझलाएं, बच निकलने की कोशिश करें, फोन काट दें, तो भी दोबारा फोन आ जाता है। विज्ञापनी फोन कॉल्स के इस अतिक्रमण के लिए बहुत हद तक हम खुद भी जिम्मेदार हैं। किसी मॉल या शोरूम में जाकर उनकी गेस्ट बुक भर कर, किसी अच्छे रेस्त्रां में उनको फीडबैक देकर हम उन्हें अपने संपर्क सूत्र यानी मोबाइल नंबर, ईमेल, जन्म तिथि आदि सार्वजनिक कर देते हैं। फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करते हुए भी हम अपनी लोकेशन का पता बताते हैं, अपनी रुचियों की जानकारी देते हैं और अपनी निजता को खुद ही बेपर्दा करते हैं। स्मार्टफोन और ई-कामर्स दोनों का बाजार तेजी से बढ़ ही रहा था, मोबाइल से लेन-देन में तेजी आई थी, लेकिन कोविड के इस दौर में ऑनलाइन शॉपिंग में कल्पनातीत उछाल आया है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रयोग के कारण अब इनसान के बजाय मशीनें आपस में ज्यादा बातें करेंगी और प्राइवेसी की समस्या और भी गहराएगी। यहां तक तो ठीक था, पर अब हमारी निजता ही नहीं, हमारा धन भी चोरों-ठगों-हैकरों के निशाने पर है। हम जानते हैं कि कुछ माह पूर्व दक्षिण कोरिया की लगभग आधी आबादी के क्रेडिट कार्डों का ब्योरा चोरी हो गया था। दक्षिण कोरिया के इन दो करोड़ लोगों के क्रेडिट कार्डों के ब्योरे के अलावा उनके नाम और सोशल सिक्योरिटी नंबर जैसी अहम जानकारियां भी चुरा कर उन्हें विभिन्न मार्केटिंग कंपनियों को बेच दिया गया था। दरअसल अधिकतर सरकारी एजेंसियां, टेलिकॉम कंपनियां और बैंक आदि अपना काम आगे अलग-अलग कंपनियों को ठेके पर देते हैं। इन कंपनियों के कर्मचारी ‘उधार के सिपाही’ हैं जो कुछ पैसों के लिए किसी भी तरह की जानकारी बांटने, बेचने आदि के लिए स्वतंत्र हैं। बहुत सी मार्केटिंग कंपनियों ने ऐसे लोगों की टीम बना रखी है जो विभिन्न मॉल्स तथा ऐसे ही अन्य स्रोतों से उनके ग्राहकों की जानकारी इकट्ठी करते हैं। इससे हमारी जिंदगी बेनकाब तो हुई ही है, कुछ और असुरिक्षत भी हो गई है। हैकरों का आतंक अलग से चिंता का विषय है, कभी ये फेसबुक से जानकारियां चुराते हैं, कभी किसी बैंक के रिकार्ड चुरा लेते हैं और कभी हमारे क्रेडिट कार्ड का दुरुपयोग करना आरंभ कर देते हैं।

अपने ऐप्स की बदौलत स्मार्टफोन अब हमारी जि़ंदगी का अहम हिस्सा है और सुबह उठते ही और रात को सोने से पहले तक यह अक्सर हमारे हाथ में होता है। यह हमारी जि़म्मेदारी है कि हम अपनी संवेदनशील जानकारी सार्वजनिक न करें, सार्वजनिक न होने दें और स्मार्टफोन, सोशल मीडिया व इंटरनेट के प्रयोग के समय प्राइवेसी सेटिंग्स का ध्यान रखें तथा क्रेडिट कार्ड के प्रयोग के समय आवश्यक सावधानियों का ध्यान रखें। दुनिया में ठगों की कमी नहीं है, उनका ध्यान हमेशा हमारी जेब पर है और अपनी जेब की सुरक्षा करना हमारी ही जिम्मेदारी है।

ईमेलः indiatotal.features@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App