पीके खुराना

आज हममें से बहुत से लोग वास्तव में आध्यात्मिक होने के बजाय केवल आध्यात्मिक दिखने की परवाह करते हैं। निश्चित रूप से, एक फैंसी, आध्यात्मिक सोशल मीडिया पोस्ट लिखना आसान है, लेकिन वास्तव में उस उद्धरण पर खरा उतरना, उसे जीवन में उतारना, अपने व्यवहार में लाना कठिन हो सकता है। हमारे जीवन की असली सफलता इसी में है कि हम प्रेम का पाठ पढ़ लें, प्रेम के अढ़ाई अक्षरों को जीवन में उतार लें। यह एक मानसिक यात्रा है, यह मन के विचारों के बदलाव की यात्रा है, यह एक आंतरिक परिवर्तन है और इसके लिए कोई और दिखावा, या किसी और परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है...

भजन-कीर्तन करते हों तो करें। माला जपते हों तो जपें। उसमें कुछ भी बदलने की आवश्यकता नहीं है। समझना सिर्फ ये है कि ये सब अध्यात्म की शुरुआती सीढिय़ां हैं। अध्यात्म में आगे तब बढ़ेंगे जब हम खुद भगवान हो जाएंगे, तो हमारा हर काम खुद-ब-खुद परमात्मा को समर्पित होता चला जाएगा। जीवन सिर्फ स्वस्थ ही नहीं होगा, खुशनुमा भी होगा और खुशहाल भी होगा। स्पिरिचुअल हीलिंग, यानी आध्यात्मिक उपचार इस मामले में हमारे लिए सबसे उपयुक्त साधन है, जो हमें हमारी मानसिकता

हम मानें या न मानें, हमें मालूम हो या न हो, पर हम किसी न किसी चिंता से, परेशानी से, दुख से, पछतावे से, नफरत से, गिले वाले विचार से घिरे ही रहते हैं। ये विचार ही हमारी मानसिक व्याधियों का कारण बनते हैं जो बाद में शारीरिक बीमारी के रूप में बदल जाते हैं और जीवन दूभर बना देते हैं। स्पिरिचुअल हीलिंग इनकी रोकथाम का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक अनुभवी स्पिरिचुअल

बेटी के जन्म पर दुखी होने वालों को समझना होगा कि हम बेटों को बुढ़ापे का सहारा मानते हैं तो समाज में ऐसे बेटों की भी कमी नहीं है जिन्होंने मां-बाप के जीवन को नर्क बना दिया और ऐसी बेटियों की भी कमी नहीं है जिन्होंने अपने मां-बाप में से किसी एक के अकेले रह जाने पर उनको सहारा दिया, साथ दिया, प्यार दिया, बेटी के बजाय मां बनकर देखभाल की। गुरु नानक देव जी ने बहुत ही सटीक बात कही है - ‘सो क्यों मंदा आखिए, जिन जम्मे राजे’, यानी हम महिलाओं को नीची नजर से कैसे देख सकते हैं ज

स्पिरिचुअल हीलिंग कोई जादू-टोना नहीं है, कोई अंधविश्वास नहीं है, बल्कि एक प्रभावी टूल है जो हमारे दिल, दिमाग और आत्मा से कूड़ा चुनकर उसे निर्मल बना देती है। स्पिरिचुअल हीलिंग की सबसे बड़ी खूबी यह है कि स्पिरिचुअल हीलर को आपकी उंगली भी छूने की आवश्यकता नहीं है और यह ऑनलाइन भी हो सकती है। मैं मीडिया घरानों का शुक्रगुजार हूं कि उनकी सीख के कारण परमात्मा ने मुझ पर कृपा की और स्पिरिचुअल हीलर बनकर समाज सेवा करने के काबिल हो सका। जीवन की यह समझ मुझे ‘दिव्य हिमाचल’ स

सहज संन्यास घर छोडऩे, परिवार छोडऩे, दुनिया छोडऩे, कपड़े रंगवाने, सिर मुंडाने या बाल बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। हम जैसे हैं, वैसे ही रहें। हम जो काम कर रहे हैं, वो पूरी तन्मयता से, पूरी ईमानदारी से, पूरी लगन से, पूरी मेहनत से, पूरी निष्ठा से, पूरी काबलियत से करें। जो करें वह ऐसा हो जो सबके भले के लिए हो, तो हम संन्यासी हैं। जब हम लालच छोड़ दें, क्रोध छोड़ दें, ईष्र्या छोड़ दें, ऊंच-नीच का विचार

मैं फिर से दोहराता हूं कि हमारी कामना के फलीभूत होने का सीक्रेट, यानी रहस्य यह है कि हम इच्छा करें, सपने देखें, और ग्रेटेस्ट सीक्रेट यह है कि हम जिस चीज के सपने देख रहे हों, उसे पाने के लिए सार्थक प्रयत्न भी करें, क्योंकि असली काम तो काम ही है। इसके बिना जो कुछ है वो केवल मुंगेरी लाल के हसीन सपने, या यूं कहें कि शेखचिल्ली के सपनों के समान है, जिसका अंत निराशा और हताशा में होने की संभावना सबसे ज्यादा है।

उनकी क्लास के कुछ बच्चे स्कूल के बाद ट्यूशन पढऩे चले जाते हैं, कुछ बच्चे डे-केयर सेंटर में चले जाते हैं और स्कूल में जितना समय बिताते हैं, उतना अपने मां-बाप के साथ भी नहीं बिता पाते। वे अलग-अलग बच्चों का, उनके स्वभाव का, उनकी खूबियों का और उनकी समस्याओं का आकलन करती हैं। यही नहीं, पेरेंट-टीचर मीट के समय बच्चों के मां-बाप के साथ घुलमिल कर बच्चों के बारे में और जानकारी लेकर सभी बच्चों की जरूरतों के मु

जब कोई व्यक्ति हमें कोई ऐसी बात बताए जो हमें पहले से मालूम हो तो यह कहने के बजाय कि मुझे पता है, हम अगर कहें कि आप सही कह रहे हैं तो कितना अच्छा होगा? किसी के साथ बहस के समय अगर हम ऐसा करें तो बहस की गर्मी और कड़वाहट खत्म हो जाती है। तब वह बहस के बजाय एक-दूसरे का नजरिया समझने का जरिया बन जाती है। इसी तरह अगर हम किसी को अपनी बात समझा रहे हों तो यह कहने के बजाय कि आपके कोई सवाल हों तो पूछ लीजिए, हम अगर यह कहें कि आपके सवाल क्या हैं, तो सामने वाले को अपनी बात कहने में झिझक नहीं होगी,

निश्चल बैठ कर सांसों पर नियंत्रण और साथ में मौन, मानो सोने पर सुहागा है। मौन रहने का अभ्यास हमें अंतर्मन की यात्रा में ले चलता है, हम बाहरी जगत की ओर से ध्यान हटाकर अपने ही भीतर जाने लगते हैं। पूजा, भजन, कीर्तन आदि क्रियाएं अच्छी हैं, पर ये शुरुआती साधन हैं। आध्यात्मिकता में आगे बढऩे के लिए माइंडफुलनेस, गहरी लंबी सांसें और मौन बहुत लाभदायक हैं। अध्यात्म की अगली सीढ़ी है निश्छल प्रेम, हर किसी से प्रेम, बिना कारण, बिना आशा के हर किसी से प्रेम। मानवों से ही नहीं, पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों से भी प्रेम, जीवित लोगों से ही नहीं, जीवन रहित मानी जाने वाली चीजों से भी प्रेम। एक बार जब हम प्रेममय हो गए तो आध्यात्मिकता की गहराइयों में चले जाते हैं...