हम यह भी मानते हैं कि गरीबी के जीवन में कोई शान नहीं है और उद्यमी होने में कहीं कोई बुराई नहीं है, बशर्ते कि हम झूठ न बोलें, किसी को गुमराह न करें, अपने काम और अपनी सेवाओं के बारे में जानबूझकर अधूरी या गलत जानकारी न दें, किसी का शोषण न करें, किसी को धोखा न दें, लेकिन गरीबी में फाके काटते हुए लोगों से दया की उम्मीद रखना सही नहीं है। बद्रिका आश्रम के संस्थापक महान संत ओम स्वामी जी के पिता को दिल का दौरा पड़ा तो ओम स्वामी के बार-बार अनुनय के बावजूद अस्पताल वालों ने उनके पिता का इलाज तब तक शुरू नहीं किया जब तक उन्हें एडवांस पैसे नहीं मिल गए। हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, वहां न तो हर कोई संत है, न हो सकता है, इसलिए यह अच्छा ही है कि हम दया के पात्र भिखारी होने के बजाय पुरुषार्थ करें और समर्थ उद्यमी बनकर अपने और समाज के विकास में योगदान करने के काबिल हो सकें...
नीयत अच्छी है, और नीयत में सेवा भाव है, प्रेम का भाव है तो इतना ही काफी है। ‘सहज संन्यास मिशन’ के चार मूल स्तंभों में से आखिरी दो- जन की सेवा और मनन की सेवा का अभिप्राय भी यही है। जन की सेवा से आशय है कि हम अपने आसपास के लोगों की सेवा और सहायता करें, निस्वार्थ रहकर उनसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करें, और मनन की सेवा से आशय है कि हम आत्मचिंतन करें, अपनी गलतियां सुधारें, अपना कौशल बढ़ाने के उपाय सोचें, लेकिन साथ ही यह भी देखें कि अपने आसपास के लोगों के लिए और वृहत्तर समाज के लिए नया क्या कर सकते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला हो सके। यह कर सकें तो फिर हम भी ‘चाय, गर्रम चाय’ बांटने वाले लोगों की जमात में शामिल हो जाते हैं...
विनीत पंछी की माता जी सिख धर्म की सच्ची अनुयायी हैं। सिख परंपरा में सेवा धर्म का खुलासा करते हुए जिस आदर्श वाक्य का पालन किया जाता है, वह है .. ‘नाम जपो (परमात्मा का स्मरण), किरत करो (मेहनत और ईमानदारी की कमाई), वंड छको (मिल-बांट कर खाओ)’। विनीत पंछी किसी पूजास्थल पर नहीं जाते, भक्ति का दिखावा नहीं करते, पर वे मेहनत और ईमानदारी की कमाई खाते हैं और नौजवानों का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें जीवन में सफलता के मंत्र सिखाते हैं, रोजगार के साधनों और अवसरों की जानकारी देते हैं। यह एक ऐसा प्रशिक्षण है जो देहरादून व आसपास के युवाओं के जीवन में क्रांतिका
सहज जीवन के इन चार स्तंभों को जीवन में उतार लें, इनका पालन करें तो हम शारीरिक और मानसिक व्याधियों से बच सकते हैं, खुश रह सकते हैं, खुशहाल रह सकते हैं और आत्मविश्वास से भरपूर जीवन बिताते हुए समाज के भले का कारण बन सकते हैं। कहते हैं कि यात्रा के समय सामान जितना कम होगा, यात्रा उतनी सुखद होगी। सहज सरल जीवन का मतलब ही यही है कि हम संग्रह नहीं करते, बीते कल का पछतावा नहीं करते, आने वाले कल की फिक्र नहीं करते, जो
चिंता से बचने का तरीका यह है कि हम देखें कि समस्या क्या है, उसे कितने छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा जा सकता है, समस्या के उस छोटे टुकड़े के हल के लिए हम क्या कर सकते हैं, उसके लिए हमारे पास क्या साधन होने चाहिएं, समस्या के उस हिस्से के समाधान के लिए हम किसकी सहायता ले सकते हैं, इस चिंतन से, इस विश्लेषण से समस्या का समाधान संभव है। समस्या नहीं रहेगी तो चिंता खुद-ब-खुद गायब हो जाएगी। यानी, चिंता से बचने के लिए चिंतन की, समस्या के विश्लेषण की आवश्यकता है। चिंता हमारा दिमाग बंद कर देती है और हमें असहाय बना देती है, जबकि चिंतन से हम नए हल खोज सकते हैं और समस्या का निदान पा सकते हैं...
हमें जो प्राप्त है, उसे ही पर्याप्त मानकर संतुष्ट हों, जीवन के प्रति कृतज्ञ हों तो फिर हम पूजा करें या न करें, हम एक परिपूर्ण और सुखी जीवन जी सकते हैं। यह जीवनशैली अपना लें तो मानसिक रोग नहीं होते और मन हमेशा प्रसन्न-प्रफुल्लित रहता है। अध्यात्म कहता है कि हम दुनियादारी के सारे काम करें, ईष्र्या, द्वेष और लालच से मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियां निभाएं, फिर हमारा मन ही मंदिर हो जाता है। जब हम सब इस बात पर एकमत हैं कि हम जीवन में आनंद चाहते हैं और यदि हम ‘जो प्राप्त है, पर्याप्त है’ की धारणा से संतुष्टि भरा जीवन जिएं, अपनी जिम्मेदारियां ईमानदारी से निभाएं, सदा सच ही बोलें और किसी का दिल न दुखाएं तो हम एक स्वस्थ जीवन जीते हुए सदैव आनंदित रह सकते हैं। सवाल यह है कि जब यह इतना आसान है तो लोग इसे अपनाते क्यों नहीं...
आज हममें से बहुत से लोग वास्तव में आध्यात्मिक होने के बजाय केवल आध्यात्मिक दिखने की परवाह करते हैं। निश्चित रूप से, एक फैंसी, आध्यात्मिक सोशल मीडिया पोस्ट लिखना आसान है, लेकिन वास्तव में उस उद्धरण पर खरा उतरना, उसे जीवन में उतारना, अपने व्यवहार में लाना कठिन हो सकता है। हमारे जीवन की असली सफलता इसी में है कि हम प्रेम का पाठ पढ़ लें, प्रेम के अढ़ाई अक्षरों को जीवन में उतार लें। यह एक मानसिक यात्रा है, यह मन के विचारों के बदलाव की यात्रा है, यह एक आंतरिक परिवर्तन है और इसके लिए कोई और दिखावा, या किसी और परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है...
भजन-कीर्तन करते हों तो करें। माला जपते हों तो जपें। उसमें कुछ भी बदलने की आवश्यकता नहीं है। समझना सिर्फ ये है कि ये सब अध्यात्म की शुरुआती सीढिय़ां हैं। अध्यात्म में आगे तब बढ़ेंगे जब हम खुद भगवान हो जाएंगे, तो हमारा हर काम खुद-ब-खुद परमात्मा को समर्पित होता चला जाएगा। जीवन सिर्फ स्वस्थ ही नहीं होगा, खुशनुमा भी होगा और खुशहाल भी होगा। स्पिरिचुअल हीलिंग, यानी आध्यात्मिक उपचार इस मामले में हमारे लिए सबसे उपयुक्त साधन है, जो हमें हमारी मानसिकता
हम मानें या न मानें, हमें मालूम हो या न हो, पर हम किसी न किसी चिंता से, परेशानी से, दुख से, पछतावे से, नफरत से, गिले वाले विचार से घिरे ही रहते हैं। ये विचार ही हमारी मानसिक व्याधियों का कारण बनते हैं जो बाद में शारीरिक बीमारी के रूप में बदल जाते हैं और जीवन दूभर बना देते हैं। स्पिरिचुअल हीलिंग इनकी रोकथाम का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक अनुभवी स्पिरिचुअल
बेटी के जन्म पर दुखी होने वालों को समझना होगा कि हम बेटों को बुढ़ापे का सहारा मानते हैं तो समाज में ऐसे बेटों की भी कमी नहीं है जिन्होंने मां-बाप के जीवन को नर्क बना दिया और ऐसी बेटियों की भी कमी नहीं है जिन्होंने अपने मां-बाप में से किसी एक के अकेले रह जाने पर उनको सहारा दिया, साथ दिया, प्यार दिया, बेटी के बजाय मां बनकर देखभाल की। गुरु नानक देव जी ने बहुत ही सटीक बात कही है - ‘सो क्यों मंदा आखिए, जिन जम्मे राजे’, यानी हम महिलाओं को नीची नजर से कैसे देख सकते हैं ज