महर्षि मेतार्य

By: Jan 16th, 2021 12:16 am

हमारे ऋषि-मुनि, भागः 46

जैनधर्म के प्रवर्त्तक महावीर भगवान के एक अनुयायी थे, महर्षि मेतार्य। उन्होंने जैनधर्म के पांचों सिद्धांतों को स्वीकार किया तथा जीवन में पूरी तरह धारण भी किया। ये पांच सिद्धांत हैं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, त्याग और ब्रह्मचर्य।

  भिक्षा के लिए गए नगर में

मेतार्य का जन्म एक शूद्र कुल में हुआ था। इन्होंने घर से विरक्त होकर बाल्यकाल में ही वन में जाकर घोर तपस्या की और सिद्धि लाभ भी पाया। भीषण गर्मी के दिन थे। मेतार्य ऋषि ने अभी-अभी एक मास का उपवास व्रत पूरा किया था। राजगृह, मगध देश की राजधानी थी। वह भिक्षा मांगने इस नगरी में एक सुनार के दरवाजे पर जा खड़े हुए। उस समय वह किसी आभूषण के लिए छोटे-छोटे, गोल-गोल दाने तैयार कर रहा था। ये दानें पूरी तरह शुद्ध सोने के थे। अपने दरवाजे पर भिक्षुक को देखकर उन्हें आसन लेने को कहा। स्वयं कुछ खद्य सामग्री का प्रबंध करने अंदर चला गया। जब भोजन आदि लेकर लौटा, तो सोने के मोती गायब थे।

सोने की बनी सारी गोलियां गायब

जैसे ही सुनार लौटा, मोती गायब पाकर उसे इसी साधु पर संदेह हुआ। वह इसे एक तपस्वी न मानकर अब पाखंडी, ढोंगी, चोर, पापात्मा आदि विशेषण लगाकर अलंकृत करता रहा। क्योंकि उसका नुकसान हुआ था तथा वहां पर उस समय कोई अन्य था नहीं, संदेह हो जाना वाजिब भी था।

सुनार ने उसे डांट भी दिया। शीघ्र ही सोने की गोलियां वापस करने का आदेश दिया अन्यथा उसे दंडित करने की चेतावनी भी दे दी। साधु ने देखा था कि कोई पक्षी इन्हें अनाज समझकर चुग गया, वह उड़ न सका। साधु यह सब सुनार को बता नहीं सके। साधु मुस्कराए। वह अहिंसा धर्म की पालना में घोर कष्ट सहने को तैयार थे।

बहुत दंडित किया महर्षि को सुनार ने

साधु को मुस्कराता देख सुनार को और भी क्रोध आ गया। उसने भद्दी गालियां भी दे डालीं। अब यदि महर्षि मेतार्य पक्षी का नाम लेते हैं, तो उसकी हत्या कर मोती निकाले जाने थे। इससे उस संन्यासी पर हिंसा का पाप लगता। यदि वह अपने को निर्दोष कहते हैं, तो कोई नहीं मानता। जब महर्षि चुप रहे, तो सुनार ने उनके हाथ-पांव बांधकर उनकी पिटाई की और धूप में फेंका। एक भीगी खाल को उनके मस्तक पर बांध दिया। बार-बार गाली देता, बुरा-भला सुनाता रहा। जैसे-जैसे गीली खाल सूखने लगी, महर्षि की नसें दबने लगीं, बहुत पीड़ा होने लगी। शरीर की त्वचा बुरी तरह जल गई।

मिल गई गोलियां, पा लिया परमधाम

थोड़ी ही देर में मेतार्य ने स्माधि ले ली। अतः बाह्य कष्टों का पता न चला। कुछ देर बाद सामने बैठे पक्षी ने विष्ठा की। इसी के साथ सोने की गोलियां भी निकलकर गिर पड़ीं। भारी होने के कारण ये विष्ठा से अलग हो गईं। सुनार ने देखा, अब वह पश्चाताप की आग में जलने लगा। महर्षि को खोला। जब उन्हें होश आया, स्माधि टूटी, तो देखा कि सुनार उनके पांव में पड़ा क्षमा मांग रहा है। बिना विलंब संत ने क्षमा कर दिया। कुछ ही देर में उन्होंने भौतिक शरीर को त्याग परमधाम पा लिया।

– सुदर्शन भाटिया


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